कोरोना@काम की खबरः वेंटिलेटर नहीं है तो टेंशन लेने की जरूरत नहीं, अब इस मशीन से होगा कोरोना का इलाज

कोरोना से संक्रमित मरीजों की तादाद बढ़ती जा रही है। मौजूदा समय में 8.5 लाख लोग कोरोना की चपेट में है। यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन के वैज्ञानिकों ने सांस लेने में मदद करने के लिए सी-पैप डिवाइस बनाया है। इसके आने के बाद अब वेंटीलेटर की जरूरत नहीं पड़ेगी। 

Asianet News Hindi | Published : Apr 1, 2020 10:17 AM IST

नई दिल्ली. दुनिया के 195 से अधिक देशों में कोरोना का संकट बढ़ता जा रहा है। कोरोना से संक्रमित मरीजों की तादाद बढ़ती जा रही है। मौजूदा समय में 8.5 लाख लोग कोरोना की चपेट में है। कोरोना के बढ़ते संक्रमण को रोकने के लिए दुनिया के कई देशों के वैज्ञानिकों ने जंग छेड़ रखा है। वे लगातार नई खोज कर रहे हैं ताकि वायरस को खत्म किया जा सके या मरीजों को जल्द से जल्द ठीक किया जा सके। इसी क्रम में यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन के वैज्ञानिकों को बड़ी कामयाबी मिली है। उन्होंने सांस लेने में मदद करने के लिए एक नया उपकरण बनाया है जिससे मरीज बिना एनेस्थीसिया के सांस ले सकेंगे। इसे सी-पैप (Cpap) डिवाइस नाम दिया गया है। 

दरअसल, कैपप असल में ऑक्सीजन मास्क और वेंटिलेटर के बीच का उपकरण है। इसे Medicines and Healthcare products Regulatory Agency से मान्यता भी मिल चुकी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि हफ्तेभर के भीतर इस उपकरण के 1000 मॉडल तैयार हो जाएंगे। UCLH के प्रोफेसर मेर्यान सिंगर के अनुसार सी-पैप डिवाइस की मदद से अस्पतालों पर दबाव कम होगा और थोड़े बेहतर स्वास्थ्य वाले मरीज, तो सांस लेने के लिए संघर्ष कर रहे हों, उन्हें सी-पैप से ऑक्सीजन दी जाएगी, जबकि क्रिटिकल हालत वाले मरीजों के लिए वेंटिलेटर का इस्तेमाल होगा। 

कैसे काम करती है सी-पैप मशीन

इस मशीन के जरिए मरीज मुंह से ही मरीज के फेफड़ों तक ऑक्सजीन की पर्याप्त मात्रा पहुंच जाएगी। इसके बाद मरीज खुद ही कार्बन डाइऑक्साइड को निकाल सकेगा। ये उपकरण युवा और कम गंभीर बीमार मरीजों की मदद करेगा, जो कोरोना पॉजिटिव होने के कारण सांस की तकलीफ से तो जूझ रहे हैं लेकिन जिनकी हालत दूसरे अधिक उम्र के रोगियों से बेहतर है। इस प्रक्रिया में मरीज को बेहोश करने के लिए एनेस्थीसिया नहीं दिया जाएगा जैसा कि आमतौर पर ICU में भर्ती मरीजों के साथ होता है। 

वेंटिलेटर का कैसे होता है प्रयोग?

ये गंभीर मरीजों को सांस लेने में मदद करता है। आमतौर पर आईसीयू में भर्ती मरीज जो जीवन बचाने वाले उपकरणों पर निर्भर होते हैं, उन्हें वेटिंलेटर से ही सांस दी जाती है। इसमें सांस लेने के लिए खुद कोशिश नहीं करनी होती है। ऑक्सजीन सीधे मरीज के फेफड़े में जाती है और कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकलती है। दूसरी तरफ सी-पैप में मरीज को सांस बाहर निकालने के लिए खुद मेहनत करनी होता है। यानी सी-पैप अपेक्षाकृत स्वस्थ और युवा मरीजों को दिया जा सकता है।

अब वेंटिलेटर की नहीं पड़ेगी जरूरत

Royal United hospital Bath NHS में एनेस्थिशिया और इंटेसिव केयर के प्रोफेसर का कहना है कि इस नई मशीन के जरिए आईसीयू पर दबाव कम हो जाएगा, वहां केवल क्रिटिकल हालत वाले मरीज रखे जाएंगे, जबकि बाकी मरीजों को सी-पैप डिवाइस के साथ सामान्य कोरोना वार्ड में रखा जा सकता है। डॉक्टरों का दावा है कि ह्यूमन क्लिनिकल ट्रायल के सफल होने के बाद हफ्तेभर के भीतर ऐसी 1000 सी-पैप मशीनें बना ली जाएंगी। इससे वेंटिलेटर की कमी से जूझ रहे अस्पतालों पर दबाव कम होगा। साथ ही एनेस्थिशिया के कारण होने वाले साइड इफैक्ट जैसे सांस का अटकना, शरीर में जकड़न और मिचली लगना या उल्टियां होने जैसी परेशानियों से बचाव हो सकेगा। 

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