New Parliament House India: गौरवशाली रहा है पुराने संसद भवन का इतिहास, वह तारीखें जो कभी नहीं भूलेंगी?

नया संसद भवन तैयार है और 28 मई को इसे पीएम मोदी देश के नाम समर्पित कर देंगे। इसी बीच पुराने संसद भवन की यादें और भी मजबूत होती जा रही हैं क्योंकि कुछ दिनों बाद इसे भुला दिया जाएगा।

History Of Parliament House. नए संसद भवन की इमारत का बड़ा शोर है, जिसे हम छोड़ रहे हैं, उसका भी गौरवशाली इतिहास रहा है, जिसे भुलाया नहीं जा सकता। पुराने संसद भवन का निर्माण 1921 से 1927 के बीच हुआ था। तब इसकी आधारशिला किंग जॉर्ज पंचम का प्रतिनिधित्व करने वाले ड्यूक ऑफ कनॉट द्वारा रखी गई थी। 8 सालों में पुराने संसद भवन का निर्माण कार्य पूरा हुआ था।

संसद भवन का इतिहास और महत्वपूर्ण तिथियां

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15 अगस्त 1947 को आजादी मिलने से लेकर 1950 तक भारतीय संविधान लागू होने तक इस संसद भवन ने अस्थायी तौर पर काम किया। संविधान लागू होने के बाद ही विधायिका को पहली बार भारतीय संसद का नाम दिया गया। यह इमारत वही भारतीय संसद है, जिसमें कभी अंग्रेजों के प्रतिनिधि बैठते थे और संविधान लागू होने के बाद यह पूरी तरह से भारतीय संसद भवन में तब्दील हो गया। भारतीय संसद भवन के दो सदन हैं। लोकसभा और राज्यसभा। राष्ट्रपति भारतीय संसद का महत्वपूर्ण अंग माने जाते हैं।

पुराने संसद भवन में हुई हैं बड़ी बहसें, बने हैं कानून

पुराने संसद भवन की इमारत कई महत्वपूर्ण बहसों की गवाह है। यहां देश हित से जुड़े कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस हुई और कई बड़े कानून भी पास किए गए। संविधान में संसोधनों की लंबी प्रक्रिया भी इसी संसद भवन में तय की गई। भारत में कानून का राज स्थापित करने देश कल्याण के लिए योजनाएं बनाने के लिए संसद का इस्तेमाल किया गया। यहां कई ऐसे ऐतिहासिक क्षण, कई बहसें और विधायी सुधार हुए हैं, जो अब इतिहास के पन्ने पर दर्ज हो चुके हैं।

पुराने संसद भवन की संरचना कैसी है

17 लोकसभा चुनावों का मूकदर्शक रहा पुराना संसद भवन

पुराने संसद भवन की उम्र 96 साल हो चुकी है लेकिन इसने 75 साल से भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने का काम किया है। अब तक देश में कुल 17 बार लोकसभा के चुनाव हो चुके हैं। जिसका गवाह यह संसद भवन रहा है। इस दौरान कांग्रेस की सरकार सबसे ज्यादा समय तक रही। बीच में जनता दल की सरकार बनी लेकिन ज्यादा समय नहीं टिक पाई। कई सरकारें तो अपना 5 साल का कार्यकाल भी पूरा नहीं कर पाईं। लेकिन यह संसद भवन अकेले खड़ा भारतीय लोकतंत्र की नींव को मजबूत करता रहा। अब शायद 18वीं लोकसभा चुनाव के बाद नए सांसद इस संसद भवन में न आएं लेकिन जितने सांसदों ने यहां शपथ ली है, उनकी एक-एक निशानियां पुराने संसद भवन ने अपने सीने में समेट रखी है।

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