अफजल गुरु, कसाब को फांसी दे चुके हैं ये जल्लाद, आखिरी वक्त में पैर तक पकड़ लेते हैं अपराधी

जल्लाद हर जेल में नहीं पाए जाते, कई बार इन्हें एक जेल से दूसरी जेल बुलाया जाता है। फांसी का समय तय होता है इतने बजे, इतने मिनट, इतने सेकेंड तयशुदा समय पर जल्लाद को फांसी देनी होती है। कई बार मुजरिम जल्लाद के सामने दहाड़े मारकर रोने लगते हैं तो उनका काम मुश्किल हो जाता है। 

नई दिल्ली. निर्भया केस में सुप्रीम कोर्ट चारों दोषी मुकेश, पवन, अक्षय और विनय को सुप्रीम कोर्ट मौत की सजा सुना चुका है। अब इस फांसी की सजा का ट्रायल चल रहा है। फांसी के लिए बिहार के बक्सर सेंट्रल जेल में फंदा बनाने का ऑर्डर दिया जा चुका है। वहीं एक और जरूरत है जल्लाद। दरअसल फांसी से पहले जल्लाद की व्यवस्था भी करनी पड़ेगी। 

पिछले एक दशक में भारतीय न्यायपालिका ने 1300 से ज्यादा लोगों को मौत की सजा सुनाई, लेकिन इनमें से फांसी सिर्फ याकूब मेमन, अफ़ज़ल गुरु और कसाब को दी गई। फांसी देते वक्त जेल अधीक्षक, एग्जीक्यूटिव मैजिस्ट्रेट और ‘जल्लाद’ मौजूद रहते हैं। इनमें से कोई एक भी कम हुआ, तो फांसी नहीं दी जा सकती। जल्लाद मुजरिमों को फांसी देता है लेकिन, क्या किसी जल्लाद के लिए लोगों को फांसी देना आसान है?

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जल्लाद के सामने दहाड़े मारकर रोते हैं कैदी

फांसी की सजा पर लोग जल्लाद के बारे में सुनकर कांप उठते हैं, गांव में किसी सख्त और गुस्सैल इंसान को जल्लाद कहकर चिढ़ाया जाता है। पर क्या आप जानते हैं कि ये जल्लाद होते कौन होते हैं? जल्लाद जेल में नियुक्त नहीं होते हैं, बस इन्हें विशेषतौर पर फांसी की सजा के लिए बुलाया जाता है। ये हर जेल में नहीं पाए जाते हैं। जल्लाद को कई बार एक जेल से दूसरी जेल बुलाया जाता है। फांसी का समय तय होता है इतने बजे, इतने मिनट, इतने सेकेंड तयशुदा समय पर जल्लाद को फांसी देनी होती है। कई बार मुजरिम जल्लाद के सामने दहाड़े मारकर रोने लगते हैं तो उनका काम मुश्किल हो जाता है। 

हिंदुओं को राम-राम मुस्लिमों को सलाम

जैसी ही कैदी को डेथ वारंट पढ़कर सुनाया जाता है तभी जल्लाद मुजरिम के हाथ पीछे से बांध देता है और दोनों पैर भी बांध दिए जाते हैं। इसी वक्त जल्लाद मुजरिम के सिर पर काला कपड़ा डालता है और अपनी प्रार्थना पढ़ता है। प्रार्थना होती है- हिंदुओं को राम-राम मुस्लिमों को सलाम, मैं अपने फर्ज के आगे मजबूर हूं, मैं आपके स्तय की राह पर चलने की कामना करता हूं। इसके बाद तयशुदा वक्त पर जैसे ही जल्लाद के हाथों लीवर खींचा जाता है, मुजरिम लटक जाता है।

देश का एकमात्र पुश्तैनी जल्लाद 

अपने देश में एकमात्र पुश्तैनी जल्लाद हैं जिनका नाम है पवन जल्लाद। देश के चर्चित अपहरण कांड के दोषी रंगा-बिल्ला को फांसी पवन के दादा कल्लू जल्लाद ने ही दी थी। पवन के परिवार की तीन पीढ़ियों से फांसी देने का काम होता रहा है। वह अपने बेटे को भी यही काम सिखाएगा।

देश की इकलौती जल्लाद फैमिली

पवन देश की इकलौती जल्लाद फैमिली से है, जहां यह काम पीढ़ी-दर-पीढ़ी होता चला आ रहा है। परदादा से लेकर पोते तक ने इस पेशे को अब तक कायम रखा है। उसके दादा कल्लू जल्लाद ने दिल्ली की सेंट्रल जेल में रंगा-बिल्ला को फांसी दी थी। कल्लू ने ही इंदिरा गांधी के हत्यारों को भी फांसी दी थी। भगत सिंह को भी फांसी देने के लिए उसके परदादा मजबूर हुए थे। तब कल्लू जल्लाद को मेरठ से दिल्ली की सेंट्रल जेल बुलाया गया था। यही नहीं, इंदिरा गांधी के हत्यारों सतवंत सिंह और बेअंत सिंह को भी कल्लू ने ही फांसी का फंदा पहनाया था। पवन पांच बार अपने दादा कल्लू सिंह को फांसी देते हुए देख चुके हैं।

याकूब को फांसी देना चाहता था पवन जल्लाद

पवन जल्लाद चाहता था कि 1993 मुंबई बॉम्ब ब्लास्ट के दोषियों में से एक याकूब मेमन को फांसी दे, इसलिए उसने नागपुर जेल को मेल भेजा है कि याकूब को फांसी देने के लिए उसे बुलाया जाए। दिन-रात तैयारी उसने जंगल में रस्सी से फांसी का फंदा बनाकर तैयार किया था। 30 जुलाई, 2015 को महाराष्ट्र के नागपुर सेंट्रल जेल में एक कॉन्स्टेबल ने उसे फांसी दी।

ऐंजल ऑर्फ डेथ

नाटा मलिक कोलकाता की अलीपुर जेल के जल्लाद हैं। धनंजय चटर्जी को बलात्कार के जुर्म में 14 अगस्त, 2004 को कोलकाता की अलीपोर जेल में फांसी दी थी। उन्होंने लगभग सौ लोगों को फांसी दी होगी। उन्हें ऐंजल ऑर्फ डेथ कहा जाता है।

जेल के कॉन्स्टेबल ने कसाब को लटकाया

26/11 हमले के आरोपी मोहम्मद अजमल आमिर क़साब को 21 नवंबर, 2012 को फांसी दी गई थी। यहां भी यरवदा सेंट्रल में जल्लाद मम्मू सिंह ने उसे फांसी पर लटकाया था। ये फांसी लगाने को अपने काम का हिस्सा मानते है, और कसाब को फांसी देने पर गर्व महसूस करते हैं।

पैर पकड़ गिड़गिड़ाते हैं कैदी

हमको सुनने-जानने में अजीब लगे कि कैसे किसी को मौत के घाट उतार दें लेकिन ये जल्लाद इस बात के लिए खुद को लकी मानते हैं। वो मानते हैं ऐसे आरोपियों को सज़ा देना सौभाग्यशाली है। इन अपराधियों की वजह से मासूमों की जान गई हो। जल्लाद बताते हैं कि, फांसी के वक्त कैदी का आखिरी समय होता है। उनकी हालत तब बहुत खराब रहती है। कई बार ऐसा ये भी हुआ कि कैदी रो-रोकर बेहाल हो जाते हैं, पैर पकड़ गिड़गिड़ाते हैं कि हमें मत मारो। पर उन मुजरिमों को जैसे-तैसे खड़ा करके फांसी लगाई ही जाती है। 

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