NSA meeting on Afghanistan:आतंकवाद और ड्रग्स के मुद्दे पर 7 देशों ने मोदी की मौजूदगी में बनाई रणनीति

अफगानिस्तान में तालिबान (Taliban) की सरकार बनने के पैदा हुए संकट से निपटने 10 नवंबर को नई दिल्ली में 8 देशों के नेशनल सिक्योरिटी एडवायजर(MSA) अहम बैठक हुई। इसमें आतंकवाद, कट्टरपंथ और ड्रग्स के अवैध कारोबार को रोकने पर विचार-विमर्श किया गया। बैठक में PM मोदी भी मौजूद थे।
 

Amitabh Budholiya | Published : Nov 10, 2021 3:09 AM IST / Updated: Nov 10 2021, 02:21 PM IST

नई दिल्ली. अफगानिस्तान के मुद्दे पर 10 नवंबर को दिल्ली में 8 देशों के नेशनल सिक्योरिटी एडवायजर (NSA) की बैठक हुई। बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी(Prime Minister Narendra Modi) भी मौजूद थे। बैठक में पाकिस्तान और चीन ने शामिल होने से मना कर दिया था। बैठक में रूस, ईरान, उज़्बेकिस्तान, कजाखिस्तान, किर्गिस्तान ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शामिल हुए। NSA अजीत डोभाल ने अपने तजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान के समकक्षों के साथ बैठक की। बैठक में तालिबान को मान्यता देने या न देने पर भी विचार हुआ। बैठक में उज्बेकिस्तान और भारत ने तय किया कि तालिबान को मान्यता के लिए अफगानिस्तान के नागरिकों की मान्यता का भरोसा जीतना होगा।कजाकिस्तान की NSA के अध्यक्ष करीम मासीवोम(Karim Massimov) ने कहा कि हम अफगानिस्तान की मौजूदा स्थिति को लेकर चिंतित हैं। अफगानों की सामाजिक अंत आर्थिक स्थिति बिगड़ रही है और देश मानवीय संकट का सामना कर रहा है। मानवीय सहायता बढ़ाने की आवश्यकता है।

इन मुद्दों पर चर्चा
दिल्ली सुक्षा डायलॉग के एजेंडे में अफगानिस्तान में तालिबान के शासन के बाद पैदा हुई चुनौतियों से निपटने कर रणनीति पर विचार हुआ। इनमें आतंकवाद एक बड़ा मुद्दा है। अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के बाद से आतंकवादी गतिविधियां तेजी से बढ़ी हैं। सिर्फ अफगानिस्तान ही नहीं, दूसरे देशों में भी आतंकवादी संगठन अपने पैर पसारने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरा बड़ा मुद्दा कट्टरपंथ है। कट्टरपंथी संगठन दूसरे धर्मों के खिलाफ हिंसा कर रहे हैं। तीसरा मुद्दा ड्रग्स का अवैध कारोबार है। अफगानिस्तान ड्रग्स के अवैध कारोबार का एक बड़ा गढ़ है। अफगानिस्तान से अवैध हथियारों की तस्करी भी होती है। बता दें कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के साथ ही तालिबान ने 15 अगस्त को काबुल पर कब्जा करते ही अपनी सरकार का ऐलान कर दिया था।

पाकिस्तान और चीन नहीं आए
इस बैठक में पाकिस्तान और चीन को भी बुलाया गया था, लेकिन उन्होंने आने से मना कर दिया। कारण कुछ भी बताए हों, लेकिन अफगानिस्तान में राजनीति संकट को बढ़ावा देने के पीछे पाकिस्तान और चीन की भूमिका किसी से छुपी नहीं है। पाकिस्तान पहले ही बैठक से साइड हो गया था। फिर चीन ने मीटिंग के शेड्यूल में कुछ दिक्कतों का हवाला देकर आने से मना करा दिया। सोमवार शाम को चीन ने इसकी जानकारी दी थी। हालांकि चीन ने यह भी कहा कि वो अफगानिस्तान के मुद्दे पर भारत से बातचीत करने और हर तरह का सहयोग करने को तैयार है। भारत ने तालिबान को बैठक में नहीं बुलाया है, क्योंकि भारत ने उसे अभी मान्यता नहीं दी है।

पहले भी हो चुकी हैं बैठकें
बात दें कि इस तरह की बैठकें पहले भी हो चुकी हैं। एक बैठक सितंबर, 2018 को और दूसरी दिसंबर, 2019 को हुई थी। तीसरी बैठक कोरोना संक्रमण के चलते टाल दी गई थी। यह बैठक ऐसे समय में हो रही है, जब भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने दे हफ्ते पहले मास्को में अफगानिस्तान के अंतरिम सरकार के उप प्रधानमंत्री अब्दुल सलाम हनफी से मुलाकात की थी। इसका नेतृत्व विदेश मंत्रालय के पाकिस्तान-अफगानिस्तान-ईरान डिविजन के संयुक्त सचिव जेपी सिंह ने किया था। इसमे संकट में फंसे अफगानिस्तान को मदद देने की बात कही गई थी।
 

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