भारत में कोविड 19 वैक्सीनेशन मिशन की निगरानी करने वाले राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (NTAGI) के अध्यक्ष डॉ एनके अरोड़ा ने कोविशील्ड की दो डोज के बीच अंतर बढ़ाए जाने को लेकर उठे सवालों पर कहा है कि यह फैसला वैज्ञानिक तरीके से लिया गया है। उन्होंने यूके में अपनाए गए इसी तरह के मॉडल का भी जिक्र किया।
नई दिल्ली. कोरोना वैक्सीन कोविशील्ड के 2 डोज में गैप बढ़ाकर 84 दिन किए जाने पर काफी सवाल उठ रहे हैं। हालांकि इसे वैज्ञानिक तरीके से लिया गया फैसला माना गया है। भारत में कोविड 19 वैक्सीनेशन मिशन की निगरानी करने वाले राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (NTAGI) यानी नेशनल टेक्निकल एडवाइज़री ग्रुफ ऑन इम्युनिसेशन के अध्यक्ष डॉ एनके अरोड़ा भी यही मानते हैं। डीडी न्यूज से बातचीत में उन्होंने इस गैप को वैज्ञानिक तरीके से सही ठहराते हुए कई उदाहरण दिए।
इंग्लैंड का उदाहरण दिया
डॉ. अरोड़ा ने बताया कि COVISHIELD की दो खुराक के बीच के अंतर को 4-6 सप्ताह से बढ़ाकर 12-16 सप्ताह करने का निर्णय एडिनोवेक्टर टीकों (adenovector vaccines) के व्यवहार को देखते हुए लिया गया है। बता दें कि एडिनो एक एक ऐसा वायरस है, जो जुकाम की वजह बनता है। जबकि वेक्टर कोशिकाओं तक आनुवांशिक सामग्री(दवा) पहुंचाने का तरीका है। वैक्सीन इसी पर आधारित हैं। डॉ. अरोड़ा ने अप्रैल, 2021 के अंतिम सप्ताह में यूके के हेल्थ डिपार्टमेंट की कार्यकारी एजेंसी पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड द्वारा जारी आंकड़ों का जिक्र करते हुए कहा कि अगर वैक्सीन के दो डोज में 12 हफ्ते का अंतर रखा जाए, तो उसका असर
65-88% तक होता है। यूके ने इसी अंतर का फायदा उठाया और महामारी के प्रकोप पर काबू पा लिया। इसलिए हमने भी इसी तरीके को अपनाया। गैप बढ़ाने से एडिनोवेक्टर टीके बेहतर असर करते हैं। इसलिए 13 मई को कोविशील्ड के दो डोज में अंतर बढ़ाकर 12-16 सप्ताह किया गया।
फिर से हो सकता है विचार
डॉ. अरोड़ा ने कहा है कि कोविशील्ड वैक्सीन के गैप को लेकर हम पारदर्शी सिस्टम से काम करते हैं। इसके आधार पर ही वैज्ञानिक तरीके से यह फैसला लिया गया। NTAGI ने जो फैसला लिया है, उसमें किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं है। डॉ. अरोड़ा ने कहा है कि एस्ट्रेजेनका की सिंगल डोज से 33 प्रतिशत, जबकि डबल डोज से 60 प्रतिशत सुरक्षा की बात सामने आई है। इसे देखते हुए हम फिर से कोविशील्ड के दो डोज के गैप पर विचार कर रहे हैं। अगर वैज्ञानिक रिसर्च सबूत देती हैं कि गैप करने से फायदा होगा, तो हम इसे कम कर देंगे। लेकिन यह फायदा 10 फीसदी भी है। अगर पता चलता है कि मौजूदा गैप ही फायदेमंद है, तो इसे ही कायम रखेंगे।
डॉ. अरोड़ा ने दिए कई उदाहरण
डॉ. अरोड़ा ने बताया कि यूके जैसे कुछ देशों में दिसंबर, 2020 में वैक्सीन की शुरुआत में 12 हफ्ते का समय रखा गया था। इसी डेटा के आधार पर हमें भी अपना निर्णय लेना था। हालांकि बाद में हमें नए वैज्ञानिक और लैब डेटा मिले, इसके आधार पर हमने दो डोज के गैप को 8 सप्ताह करने पर विचार किया। इसका रिजल्ट 57 प्रतिशत मिला था।
चंडीगढ़ पीजीआई के डेटा का हवाला
डॉ. अरोड़ा ने चंडीगढ़ पीजीआई की एक रिसर्च का हवाला दिया। इसमें आंशिक और पूर्ण टीकाकरण के प्रभावों पर अध्ययन किया गया था। इससे मालूम चला कि आपने पहला डोज लिया हो या दूसरा, दोनों की प्रभावशीलता 75 प्रतिशत थी। यह रिसर्च वायरस के अल्फा वेरिएंट पर निकला था। इसमें पंजाब, दिल्ली आदि से डेटा जुटाया गया था। डॉ. अरोड़ा ने बताया कि तमिलनाडु के सीएमसी वैल्लोर (CMC Vellore) की एक स्टडी सामने आई है। इससे मालूम चलता है कि अप्रैल और मई में महामारी ने देश के अधिकांश हिस्से पर अपना असर दिखाया था। इसमें COVISHIELD वैक्सीन की प्रभावशीलता 61 प्रतिशत रही। जबकि दोनों डोज लेने के बाद यह प्रभावशीलता 65 प्रतिशत तक देखने को मिली। यानी दोनों डोज के गैप के बावजूद अंतर मामूली था।