One Nation One Election को लेकर बनी समिति की पहली बैठक आज, रामनाथ कोविंद के घर जुटेंगे सदस्य

एक देश, एक चुनाव (One Nation One Election) को लेकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनाई गई समिति की पहली बैठक आज होगी।

नई दिल्ली। एक देश, एक चुनाव (One Nation One Election) को लेकर केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई समिति की पहली बैठक आज होने वाली है। समिति के अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद हैं। बैठक उनके सरकारी आवास पर बुलाई गई है। दोपहर तीन बजे से शुरू होने वाली इस बैठक में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी शामिल हो सकते हैं।

एक साथ चुनाव करना चाहती है मोदी सरकार

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दरअसल, पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार चाहती है कि विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ होने चाहिए। सरकार का कहना है कि इससे समय और पैसे की बर्बादी रुकेगी। केंद्र सरकार ने लोकसभा, विधानसभा, नगर पालिकाओं और पंचायतों का चुनाव एक साथ कराने की संभावनाओं की तलाश करने और इसके बारे में सुझाव देने के लिए आठ सदस्यों वाली समिति बनाई है। समिति के अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद हैं। केंद्र सरकार ने गृह मंत्री अमित शाह, लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी, राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद और वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एन के सिंह को सदस्य बनाया था। अधीर रंजन चौधरी ने सदस्य बनने से इनकार कर दिया है।

18 सितंबर से बुलाया गया है संसद का विशेष सत्र
केंद्र सरकार द्वारा 18 सितंबर से पांच दिन के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाया गया है। सत्र शुरू होने से पहले एक देश, एक चुनाव को लेकर सरकार द्वारा समिति बनाए जाने से इस बात पर चर्चा शुरू गई है कि सरकार विशेष सत्र में चुनाव को लेकर कोई बड़ा फैसला सामने लाने वाली है। हालांकि अभी तक सत्र के एजेंडा को लेकर आधिकारिक रूप से कोई जानकारी नहीं दी गई है।

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विपक्ष ने एक देश, एक चुनाव का विरोध किया है। देश में एक बार में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव कराने की बात पहले से कही जा रही थी। लॉ कमीशन ने 2018 में अपनी रिपोर्ट में इसकी वकालत की थी। लॉ कमीशन के कहा था कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराया जाना चाहिए। इससे देश लगातार चुनाव मोड में रहने से बचेगा। इससे सरकारी पैसे की बचत होगी और प्रशासनिक व्यवस्था व सुरक्षा बलों पर बोझ कम होगा। एक साथ चुनाव होने से सरकारी नीतियों का बेहतर कार्यान्वयन सुनिश्चित होगा। राजनीतिक पार्टियां चुनाव प्रचार के बजाय विकास पर ध्यान केंद्रित कर पाएंगी।

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