पीएम मोदी के नेतृत्व में हुए शांति समझौतों से बदला पूर्वोत्तर, वीडियो में देखें ग्राउंड रिपोर्ट

पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूर्वोत्तर में हुए शांति समझौते से बड़ा बदलाव आया है। लोगों को अब उम्मीद की किरण दिख रही है।

 

नई दिल्ली। देश में लोकसभा के चुनाव हो रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने तीसरे कार्यकाल के लिए जनता के पास जा रहे हैं और वोट मांग रहे हैं। इस दौरान वह अपनी सरकार द्वारा 10 साल में किए गए काम गिना रहे हैं। नरेंद्र मोदी सरकार को मिली बड़ी उपलब्धियों में से एक पूर्वोत्तर में शांति है। पीएम मोदी के नेतृत्व में 11 से अधिक शांति समझौते हुए हैं। इससे पूरे उत्तर पूर्व में बड़ा बदलाव आया है। New India Junction द्वारा इन शांति समझौतों के प्रभाव पर ग्राउंड रिपोर्ट तैयार किया गया है।

 

Latest Videos

 

उत्तर पूर्व में आई है शांति

बता दें कि बीते कुछ वर्षों में उत्तर पूर्व में शांति आई है। भारत के उत्तर पूर्व क्षेत्र में आठ राज्य (असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा) हैं। इस क्षेत्र की सीमाएं भूटान, चीन, म्यांमार और बांग्लादेश के साथ है। यह भारत के सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में से एक रहा है। 1947 के बाद से इस क्षेत्र का इतिहास विद्रोह से भरा रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने क्षेत्र में उग्रवाद और हिंसा खत्म करने के लिए प्रयास किया। इसके साथ ही क्षेत्र के तेजी से विकास के काम किए गए। इसका असर जमीन पर दिख रहा है।

केंद्र सरकार ने उत्तर पूर्व क्षेत्र के लिए तीन मुख्य उद्देश्यों की पहचान की

1- इसकी बोलियों, भाषाओं, नृत्य, संगीत, भोजन और संस्कृति को संरक्षित करना और पूरे भारत में इसके प्रति आकर्षण पैदा करना।

2- उत्तर पूर्व में सभी विवादों को समाप्त करना और इसे एक शांतिपूर्ण क्षेत्र बनाना।

3- उत्तर पूर्व को विकसित क्षेत्र बनाना। इसे शेष भारत के बराबर लाना।

किए गए हैं कई शांति समझौतें

उत्तर पूर्व के राज्यों में शांति के लिए कई समझौते किए गए हैं। इसके अलावा सशस्त्र बलों की मदद से विदेशी धरती से सक्रिय विद्रोही समूहों के शिविरों को भी बड़े पैमाने पर नष्ट किया गया है।

पूर्वोत्तर में शांति के लिए किए गए प्रमुख समझौते

बोडो समझौता: 1960 के दशक के दौरान बोडो और असम की अन्य जनजातियों ने अलग उदयाचल राज्य की मांग की। 1980 के दशक के अंत में बोडो लोगों के लिए एक अलग राज्य- बोडोलैंड और असम को "50-50" में विभाजित करने की एक और मांग उठी। इन मांगों के चलते हिंसा हुई। असम में पांच दशक पुराने बोडो मुद्दे को हल करने के लिए 27 जनवरी 2020 को बोडो समझौते पर साइन किया गया।

ब्रू-रियांग समझौता: अक्टूबर 1997 में मिजोरम के पश्चिमी भाग में जातीय हिंसा के कारण 1997-1998 में बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक ब्रू (रियांग) परिवार उत्तरी त्रिपुरा में चले गए। 23 साल पुराने ब्रू-रियांग शरणार्थी संकट को हल करने के लिए 16 जनवरी 2020 को एक समझौते पर साइन किए गए। इसके द्वारा 37,000 से अधिक आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों को त्रिपुरा में बसाया जा रहा है।

नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा समझौता: 1989 में गठित नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (NLFT) अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के पार अपने शिविरों से हिंसा में शामिल रहा है। भारत सरकार और असम सरकार के साथ कई वर्षों की बातचीत के बाद अगस्त 2019 में नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (एसडी) के साथ समझौता किया गया।

कार्बी आंगलोंग समझौता: कार्बी असम का एक प्रमुख जातीय समूह है। असम के कार्बी क्षेत्रों में लंबे समय से चल रहे विवाद को सुलझाने के लिए 4 सितंबर 2021 को कार्बी आंगलोंग समझौते पर साइन किए गए। इसमें 1000 से अधिक सशस्त्र कैडर हिंसा त्याग कर समाज की मुख्यधारा में शामिल हुए।

यह भी पढ़ें- तमिलनाडु से शुरू हुई एकता यात्रा के आयोजक थे नरेंद्र मोदी, तिरंगे झंडे के पीछे थी रोचक स्टोरी, देखें खास तस्वीरें

असम-मेघालय सीमा समझौता: असम और मेघालय राज्यों के बीच अंतरराज्यीय सीमा विवाद के कुल बारह क्षेत्रों में से छह क्षेत्रों पर विवाद को निपटाने के लिए 29 मार्च 2022 को समझौते पर साइन किए गए। इस समझौते ने दोनों राज्यों के बीच लगभग 65 प्रतिशत सीमा विवादों का समाधान कर दिया।

Read more Articles on
Share this article
click me!

Latest Videos

43 साल बाद कुवैत पहुंचे भारतीय पीएम, जमकर लगे मोदी-मोदी के नारे
20वां अंतरराष्ट्रीय अवॉर्ड, कुवैत में 'द ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर' से सम्मानित हुए पीएम मोदी
जयपुर हादसे में सबसे बड़ा खुलासा: सच हिलाकर रख देगा, पुलिस भी हो गई शॉक्ड
सचिन तेंदुलकर ने बॉलिंग करती लड़की का वीडियो शेयर किया, बताया भविष्य का जहीर खान #shorts
चुनाव से पहले केजरीवाल ने खेला दलित कार्ड, लॉन्च की अंबेडकर स्कॉलरशिप योजना