एक्सपर्ट पैनल ने कहा है कि बहुविवाह इस्लाम का मूल आधार नहीं है। इसपर अगर रोक लगाई जाती है तो यह धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं होगा।
नेशनल डेस्क। एक्सपर्ट पैनल ने कहा है कि बहुविवाह इस्लाम का मूल आधार नहीं है। इसपर अगर रोक लगाई जाती है तो यह धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं होगा। बहुविवाह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 15 (लिंग के आधार पर भेदभाव न करना) और 21 (जीवन और सम्मान का अधिकार) के तहत मुस्लिम महिलाओं को दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। इसे रोकने के लिए कानून बनाना जरूरी हो गया है।
गुवाहाटी हाईकोर्ट की रिटायर जज रूमी कुमारी फुकन की अध्यक्षता वाली एक विशेषज्ञ समिति ने दावा किया है कि चूंकि बहुविवाह इस्लाम के तहत एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है, इसलिए इस तरह की प्रथा पर रोक लगाने वाले किसी भी कानून से संविधान के अनुच्छेद 25 (अपने धर्म का पालन करने और उसके प्रचार का अधिकार) का उल्लंघन नहीं होगा।
असम सरकार ने गठित की है समिति
असम सरकार ने यह जानने के लिए कि क्या राज्य के पास बहुविवाह को समाप्त करने के लिए कानून बनाने की विधायी क्षमता है एक समिति गठित की थी। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मुस्लिम पुरुषों द्वारा चार महिलाओं से शादी करने की प्रथा इस्लाम में एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है।
समिति ने कहा, "मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत बहुविवाह की अनुमति है, लेकिन यह अनिवार्य नहीं है। यह एक आवश्यक प्रथा नहीं है, जिसके लिए प्रत्येक मुस्लिम व्यक्ति को अनिवार्य रूप से चार पत्नियां रखना जरूरी हो। चूंकि बहुविवाह इस्लाम के तहत एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है, इसलिए इसे रोकने के लिए कोई कानून बनाना संविधान के अनुच्छेद 25 (धर्म का पालन करने, मानने और प्रचार करने का अधिकार) का उल्लंघन नहीं होगा।"
विशेषज्ञ समिति ने कहा- बहुविवाह रोकने के लिए कानून जरूरी
विशेषज्ञ समिति के अनुसार बहुविवाह से अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 15 (लिंग के आधार पर भेदभाव न करना) और 21 (जीवन और सम्मान का अधिकार) के तहत मुस्लिम महिलाओं को दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। इसे रोकने के लिए कानून बनाना जरूरी है।
एक्सपर्ट पैनल ने कहा कि विवाह और तलाक समवर्ती सूची में आते हैं। इसपर केंद्र और राज्य दोनों के पास दो कानून बनाने की क्षमता है। चूंकि विवाह और तलाक के मुद्दे पहले से मौजूद केंद्रीय कानून के अंतर्गत आते हैं, इसलिए राज्य द्वारा बनाए गए कानून को केवल राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त होने पर ही अपने अधिकार क्षेत्र में लागू किया जा सकेगा।
एक्सपर्ट पैनल ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955 तैयार किए जाने के बाद हिंदुओं, बौद्धों और सिखों में बहुविवाह को समाप्त कर दिया गया। ईसाइयों में विवाह अधिनियम 1872 द्वारा और पारसी विवाह और तलाक अधिनियम 1936 के द्वारा पारसियों में बहुविवाह समाप्त किया गया। मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अधिनियम 1937 द्वारा संरक्षण के कारण मुसलमानों द्वारा अभी भी बहुविवाह किया जा रहा है।
हिमंत बिस्वा सरमा बोले बनाएंगे बहुविवाह विरोधी कानून
बहुविवाह की प्रथा का उल्लेख पवित्र कुरान के सूरह 4:3 में किया गया है। कुरान में इसकी अनुमति है लेकिन इसे प्रोत्साहित नहीं किया गया है। समिति ने पिछले सप्ताह मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को अपनी रिपोर्ट सौंप दी। इसके बाद सीएम ने कहा कि यदि समान नागरिक संहिता पर अंतिम निर्णय नहीं लिया गया तो चालू वित्तीय वर्ष (2023-24) के भीतर नया बहुविवाह विरोधी कानून लाया जाएगा।
रिटायर जस्टिस रूमी कुमारी फुकन की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति में असम के महाधिवक्ता देवजीत सैकिया, असम के वरिष्ठ अतिरिक्त महाधिवक्ता नलिन कोहली और गुवाहाटी हाईकोर्ट के सीनियर वकील नेकिबुर जमान जैसे सदस्य शामिल हैं।
नोट- यह लेख मूल रूप से AwazTheVoice में प्रकाशित हुआ था। इसे स्पष्ट अनुमति के साथ पुन: प्रस्तुत किया गया है।