बचपन में बच्चे ने आंख में मार दी थी पेंसिल, दोनों आंखों से दिखना बंद हो गया था, लेकिन अब हैं IAS

भारत की पहली दृष्टिबाधित महिला IAS प्रांजल पाटिल ने तिरुवनंतपुरम की उप कलेक्टर के रूप में पदभार संभाला। छह साल की उम्र में उन्होंने अपनी दृष्टि खो दी थी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रांजल सिर्फ छह साल की थी जब उनके एक साथ के बच्चे ने उनकी एक आंख में पेंसिल मारकर उन्हें घायल कर दिया था।

Asianet News Hindi | Published : Oct 14, 2019 8:50 AM IST / Updated: Oct 14 2019, 02:31 PM IST

केरल. भारत की पहली दृष्टिबाधित महिला IAS प्रांजल पाटिल ने तिरुवनंतपुरम की उप कलेक्टर के रूप में पदभार संभाला। छह साल की उम्र में उन्होंने अपनी दृष्टि खो दी थी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रांजल सिर्फ छह साल की थी जब उनके एक साथ के बच्चे ने उनकी एक आंख में पेंसिल मारकर उन्हें घायल कर दिया था। इससे उनके एक आंख से दिखना बंद हो गया। डॉक्टर ने बताया कि हो सकता है उन्हें दूसरी आंख से दिखना बंद हो जाए। आगे चलकर डॉक्टर की बात सच साबित हुई। इसके बावजूद उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारी बनने का सपना पूरा किया। 

प्रांजल पाटिल ने जेएनयू से पढ़ाई की 
28 साल की प्रांजल महाराष्ट्र के उल्हासनगर की रहने वाली हैं। साल 2016 में उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा पास की। प्रांजल ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) से अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। इसके बाद M.Phil और Ph.D किया। इसके बाद उन्होंने सिविल सेवा में अपना करियर बनाने का फैसला किया। 

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कैसे की यूपीएससी की तैयारी ?
प्रांजल ने एक टीवी इंटरव्यू में बताया था कि यूपीएससी की पढ़ाई में स्क्रीन रीडर सॉफ्टवेयर जॉब एक्सेस विद स्पीच (JAWS) की मदद ली। यह खासतौर पर नेत्रहीन और बहरे लोगों के लिए बनाया गया है। इसके लिए पहले किताब लेकर उसे स्कैन करती, क्योंकि JAWS पर मैं सिर्फ प्रिंटेड किताबें ही पढ़ सकती थी। इसी के चलते अपने हाथ से लिखे गए नोट्स को पढ़ना मुश्किल था।

पहले प्रयास में बनीं आईआरएएस
पहले प्रयास में यूपीएससी परीक्षा को पास करने के बाद पाटिल को भारतीय रेलवे खाता सेवा (IRAS) में नौकरी की पेशकश की गई थी। हालांकि  रेलवे ने उसकी कम दृष्टि के कारण नियुक्त करने से इनकार कर दिया। पाटिल ने इसके बारे में बताया था कि रेलवे के इनकार के बाद मैं निराश थी, लेकिन लड़ाई छोड़ने के लिए तैयार नहीं था। मैंने फिर से दूसरे प्रयास में अपनी रैंकिंग में सुधार करने के लिए कड़ी मेहनत की।

अवसर के दरवाजे सभी के लिए खुले होने चाहिए : प्रांजल
उन्होंने कहा था कि अवसर के दरवाजे सभी के लिए खुले होने चाहिए और शारीरिक सीमाओं तक सीमित नहीं होने चाहिए। उन्होंने दूसरे प्रयास में यूपीएससी की परीक्षा में 124 वां स्थान हासिल किया। उन्हें एर्नाकुलम में सहायक कलेक्टर नियुक्त किया गया था।  
 

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