प्रेसिडेंट रामनाथ कोविंद ने अंतिम बार देश को किया संबोधित, बोले-21वीं सदी भारत की सदी होगा, हम इसके लिए तैयार

President Ram Nath Kovind address to nation राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल रविवार को पूरा हो रहा है। नई राष्ट्रपति सोमवार को शपथ लेंगी। राष्ट्रपति कोविंद ने कार्यकाल के अंतिम दिन देश के नाम अपना संबोधन दिया। 

नई दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (President Ram Nath Kovind) अपने कार्यकाल के आखिरी दिन रविवार को राष्ट्र को संबोधित किया। राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि आज से पांच साल पहले, आप सबने मुझ पर अपार भरोसा जताया था और अपने निर्वाचित जन-प्रतिनिधियों के माध्यम से मुझे भारत के राष्ट्रपति के रूप में चुना था। मैं आप सभी देशवासियों के प्रति तथा आपके जन-प्रतिनिधियों के प्रति हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करता हूं। राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान पूरे देश में पराधीनता के विरुद्ध अनेक विद्रोह हुए। देशवासियों में नयी आशा का संचार करने वाले ऐसे विद्रोहों के अधिकांश नायकों के नाम भुला दिए गए थे। अब उनकी वीर-गाथाओं को आदर सहित याद किया जा रहा है। हमारे पूर्वजों और हमारे आधुनिक राष्ट्र-निर्माताओं ने अपने कठिन परिश्रम और सेवा भावना के द्वारा न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुता के आदर्शों को चरितार्थ किया था। हमें केवल उनके पदचिह्नों पर चलना है और आगे बढ़ते रहना है।

उन्होंने कहा कि कानपुर देहात जिले के परौंख गांव के अति साधारण परिवार में पला-बढ़ा राम नाथ कोविन्द आज आप सभी देशवासियों को संबोधित कर रहा है, इसके लिए मैं अपने देश की जीवंत लोकतांत्रिक व्यवस्था की शक्ति को शत-शत नमन करता हूं। उन्होंने कहा कि संविधान सभा में पूरे देश का प्रतिनिधित्व करने वाले अनेक महानुभावों में हंसाबेन मेहता, दुर्गाबाई देशमुख, राजकुमारी अमृत कौर तथा सुचेता कृपलानी सहित 15 महिलाएं भी शामिल थीं। संविधान सभा के सदस्यों के अमूल्य योगदान से निर्मित भारत का संविधान, हमारा प्रकाश-स्तम्भ रहा है। प्रेसिडेंट कोविंद ने कहा कि तिलक और गोखले से लेकर भगत सिंह और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस तक; जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल और श्यामा प्रसाद मुकर्जी से लेकर सरोजिनी नायडू और कमलादेवी चट्टोपाध्याय तक - ऐसी अनेक विभूतियों का केवल एक ही लक्ष्य के लिए तत्पर होना, मानवता के इतिहास में अन्यत्र नहीं देखा गया है।

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जड़ों से जुड़े रहना भारत की संस्कृति

प्रेसिडेंट रामनाथ कोविंद ने कहा कि राष्ट्रपति के कार्यकाल के दौरान अपने पैतृक गांव का दौरा करना और अपने कानपुर के विद्यालय में वयोवृद्ध शिक्षकों के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेना मेरे जीवन के सबसे यादगार पलों में हमेशा शामिल रहेंगे। अपनी जड़ों से जुड़े रहना भारतीय संस्कृति की विशेषता है। मैं युवा पीढ़ी से यह अनुरोध करूंगा कि अपने गाँव या नगर तथा अपने विद्यालयों तथा शिक्षकों से जुड़े रहने की इस परंपरा को आगे बढ़ाते रहें।

21वीं सदी हमारी होगी: प्रेसिडेंट कोविंद

उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन का संकट हमारी धरती के भविष्य के लिए गंभीर खतरा बना हुआ है। हमें अपने बच्चों की खातिर अपने पर्यावरण, अपनी जमीन, हवा और पानी का संरक्षण करना है। कहा कि अपने कार्यकाल के पांच वर्षों के दौरान, मैंने अपनी पूरी योग्यता से अपने दायित्वों का निर्वहन किया है। मैं डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, डॉक्टर एस. राधाकृष्णन और डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम जैसी महान विभूतियों का उत्तराधिकारी होने के नाते बहुत सचेत रहा हूं। उन्होंने कहा कि 21वीं सदी को भारत की सदी बनाने के लिए हमारा देश सक्षम हो रहा है, यह मेरा दृढ़ विश्वास है। अपने संबोधन का समापन करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि  मैं सभी देशवासियों के प्रति हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करता हूं। भारत माता को सादर नमन करते हुए मैं आप सभी के उज्ज्वल भविष्य की मंगल कामना करता हूं। 

सोमवार को नई राष्ट्रपति लेंगी शपथ

सोमवार को नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु देश की 15वीं राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के साथ कार्यभार ग्रहण करेंगी। भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना उनको शपथ दिलाएंगे। मुर्मु देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति होंगी।

शनिवार को दी गई रामनाथ कोविंद को विदाई

शनिवार शाम को संसद में अपने विदाई भाषण में रामनाथ कोविंद ने पार्टियों से राष्ट्रहित में दलगत राजनीति से ऊपर उठने की अपील की थी। उन्होंने कहा था कि लोगों के कल्याण के लिए पार्टियों को दलगत राजनीति से दूर रहना चाहिए। उन्होंने नागरिकों से विरोध व्यक्त करने और अपनी मांग पूरा कराने के लिए गांधीवादी तरीकों का इस्तेमाल करने को कहा। राष्ट्रपति ने भारतीय संसदीय प्रणाली की तुलना एक बड़े परिवार से की और सभी "पारिवारिक मतभेदों" को हल करने के लिए शांति, सद्भाव और संवाद के मूल्यों पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि नागरिकों को अपना विरोध व्यक्त करने और अपनी मांगों के समर्थन में दबाव बनाने का संवैधानिक अधिकार है, लेकिन उन्हें गांधीवादी साधनों का उपयोग करके अपने अधिकारों का शांतिपूर्वक उपयोग करना चाहिए। राजनीतिक दलों को अपने संदेश में राष्ट्रपति ने कहा, "जैसा कि किसी भी परिवार में होता है, संसद में कभी-कभी मतभेद होते हैं और आगे के रास्ते पर विभिन्न राजनीतिक दलों के अलग-अलग विचार हो सकते हैं। हम सभी इस संसदीय परिवार के सदस्य हैं। इनकी सर्वोच्च प्राथमिकता राष्ट्र के हित में लगातार काम करना है।

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