फोन में व्हाट्सएप डाउनलोड करना अनिवार्य नहीं, जानें कोर्ट ने प्राइवेसी पॉलिसी पर सुनवाई में क्या कहा?

दिल्ली हाईकोर्ट ने व्हाट्सएप की नई प्राइवेसी पॉलिसी पर सुनवाई करते हुए कहा कि फोन में व्हाट्सएप डाउनलोड करना अनिवार्य नहीं है। ये स्वैच्छिक है। जज संजीव सचदेवा ने मामले की सुनवाई की।

नई दिल्ली. दिल्ली हाईकोर्ट ने व्हाट्सएप की नई प्राइवेसी पॉलिसी पर सुनवाई करते हुए कहा कि फोन में व्हाट्सएप डाउनलोड करना अनिवार्य नहीं है। ये स्वैच्छिक है। जज संजीव सचदेवा ने मामले की सुनवाई की। अगली सुनवाई 1 मार्च को होगी।

याचिकाकर्ता के वकील मनोहर लाल ने कहा, यह एक गंभीर मामला है। यदि हम पॉलिसी को देखें तो  सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा। कोर्ट ने कहा, दो मुद्दे हैं। पहला की व्हाट्सएप इस्तेमाल करना स्वैच्छिक है। यदि आप नहीं करना चाहते हैं, तो इसे हटा दें। आपके लिए डाउनलोड करना अनिवार्य नहीं है। दूसरा न केवल इस एप्लिकेशन बल्कि हर दूसरे एप्लिकेशन में समान नियम और शर्तें हैं। यह आवेदन आपको कैसे पूर्वाग्रहित करता है? 

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केंद्र ने कोर्ट में क्या-क्या कहा?

केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट में कहा, नई प्राइवेसी पॉलिसी लागू करने को लेकर व्हाट्सएप यूरोप के मुकाबले भारतीय यूजर्स के साथ भेदभाव कर रहा है। यह चिंता का विषय है। 

जज संजीव सचदेवा ने केंद्र सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर चेतन शर्मा ने कहा, व्हाट्सएप ने भारतीय यूजर्स की पॉलिसी बदलने को लेकर एकतरफा फैसला लिया है। व्हाट्सएप ने भारतीय यूजर्स के डेटा को फेसबुक की अन्य कंपनियों के साथ शेयर करने का विकल्प दिया है। इससे लगता है कि व्हाट्सएप भारतीय यूजर्स को कुछ नहीं समझता है।

1 मार्च को अगली सुनवाई
जज संजीव सचदेवा ने व्हाट्सएप की प्राइवेसी पॉलिसी को चुनौती देने वाली याचिका पर अब 1 मार्च को सुनवाई होगी। सुनवाई के दौरान एडिशनल सॉलिसीटर जनरल चेतन शर्मा ने कोर्ट को बताया, व्हाट्सएप को नोटिस और कई सवालों की लिस्ट भेजी गई है।
 

18 जनवरी को कोर्ट ने क्या कहा था? 

कोर्ट ने कहा कि अगर आपकी निजता प्रभावित हो रही है तो आप Whatsapp  डिलीट कर  दीजिए। कोर्ट ने कहा कि किसी दूसरे एप्लिकेशन पर चले जाएं। जज सचदेवा ने कहा था, व्हाट्सएप ही नहीं, सभी एप्लिकेशन ऐसा करते हैं। क्या आप Google मैप का उपयोग करते हैं? क्या आप जानते हैं कि यह आपके डेटा को कैप्चर और शेयर करता है? व्हाट्सएप की प्राइवेसी नीति को लागू करने के खिलाफ एक वकील ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका लगाई है। याचिका में कहा गया है कि ये संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकार के खिलाफ है।

 

 

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