एक तरफ पाकिस्तान में आर्थिक संकट गहरा गया है, वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (Pak-Occupied Kashmir) और गिलगित-बाल्टिस्तान में लोगों की दुर्दशा कई गुना बढ़ गई है। यहां के लोग बिजली की किल्लत और गेहूं की भारी कमी से जूझ रहे हैं।
Pak-Occupied Kashmir. घोर आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान के हालात काफी खराब हो चुके हैं। वहीं पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान के लोगों की समस्या और बड़ी हो गई है। यहां के लोग अंधेरे में रहने को मजबूर हैं और खाने के लिए गेंहू की कमी का सामना कर रहे हैं। छोटे व्यवसाय ठप हो चुके हैं और फैक्टरियों के बंद होने की वजह से सैकड़ों परिवारों के सामने भूखमरी जैसे हालात बन गए हैं। करीब 1 साल से यह संकट जारी है, जिसकी वजह से यहां रोजाना विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। यह विरोध दिनों दन बढ़ता ही जा रहा है।
भयंकर ठंड में भी धरना-प्रदर्शन जारी
पाक अधिकृत कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान के हालात ऐसे बन चुके हैं कि माइनस 20 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी लोग धरना-प्रदर्शन करने पर मजबूर हैं। सरकारी खजाना खाली हो चुका है। इसकी वजह से इन दोनों प्रदेशों में कई महीनों से पेशनरों को पेंशन तक नहीं मिल पाया है। पाक अधिकृत कश्मीर में पिछले तीन महीने से सरकारी कर्मचारियों को वेतन तक नहीं दिया जा रहा है। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान में बीते 5 फरवरी को पाकिस्तान का समर्थन करने के उद्देश्य से कश्मीर एकजुटता दिवस मनाने का प्रयास किया गया लेकिन यह विफल हो गया। उस दिन भी कई शहरों में विरोध-प्रदर्शन हुए। इस दौरान वक्ताओं ने पाकिस्तान के उस दावे को पूरी तरह से खारिज कर दिया कि भारत के केंद्र शासित प्रदेश में कश्मीरियों के साथ दुर्व्यहार किया जा रहा है। कश्मीर घाटी और पीओजेके के बीच आटा, प्याज, टमाटर जैसे दैनिक जरूरत की चीजों की कीमतों की तुलना हो रही है और यह चर्चा गांव-कस्बों तक की जा रही है।
आईएमएफ टीम पाकिस्तान पहुंची
इसी बीच अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की भी टीम पाकिस्तान पहुंच चुकी है। साथ ही इस्लामाबाद को सेना और नौकरशाही के विशेषाधिकारों, भत्तों में भारी कटौती करने का निर्देश दे रही है। आईएमएफ कई और सुधार करने की मांग कर रहा है। आईएमएफ ने पिछले साल नवंबर से 1.3 बिलियन डॉलर का लोन रोक रखा है। कुछ समय से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में जबरदस्त गिरावट देखी जा रही है। वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान की सेना ने फौजी फर्टिलाइजर कंपनी लिमिटेड द्वारा 109 अरब रुपये के उर्वरक की रिकॉर्ड बिक्री से 40 अरब रुपये का लाभ कमाया है। हालांकि यह जानकारी नहीं दी जा रही है कि पूर्व सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने पिछले साल नवंबर में रिटायरमेंट से पहले 12 अरब रुपये कैसे जमा किए थे।
कीमती खनिज की लूट जारी
पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान से लाखों डॉलर के लिथियम और अन्य कीमती खनिजों की भी लूट की जा रही है। इसकी तस्करी पाकिस्तान में धड़ल्ले से हो रही है लेकिन इसका कोई हिसाब नहीं है। हालात यह है कि पाकिस्तान में सैन्य-मुल्ला-सामंती तिकड़ी ने अपने ही लोगों की जमीनें हड़प ली हैं। न तो पाकिस्तान गरीब है और न ही पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान गरीब हैं। 25 टन वाले एक ट्रक लिथियम की कीमत 53 करोड़ रुपए है लेकिन यह कहां जा रहा है किसी को पता नहीं। यहां के बलूच, सिंधी, पश्तून और पीओजेके-जीबी के लोग सेना की बंदूक के साये में जी रहे हैं। वे किसी भी तरह के राजनीतिक या आर्थिक अधिकारों का उपयोग नहीं कर पाते। उन्हें पिछले 75 सालों से यही सिखाया जा रहा है कि पाकिस्तान अल्लाह की पैदाइश है और हिंदू देश भारत उनका दुश्मन है, जो पाकिस्तान को बर्बाद और तबाह करना चाहता है।
कैसे बन चुके हैं हालात
यहां की स्थिति से परेशान बलूच और पश्तूनों ने अब हथियार उठा लिया है और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर सहित गिलगित-बाल्टिस्तान की सड़कों पर उतर आए हैं। इनकी वजह से ही अब पाकिस्तान की तिकड़ी का नियंत्रण उनके हाथ से फिसलता जा रहा है। फिलहाल मौजूदा आर्थिक संकट एक ही दिशा में आगे बढ़ता जा रहा है। बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा प्रांतों में पाकिस्तानी सेना द्वारा बनाई गई अधिकांश चौकियों को सैनिकों ने छोड़ दिया है। पाकिस्तान और पड़ोसी अफगानिस्तान के बीच तनाव चरम पर है। वहीं चीनी कंपनियों द्वारा प्रदान की जाने वाली सर्विस और सामानों का भुगतान नही हो पा रहा है. इस वजह से चीन भी पीओजेके-जीबी में अपनी परियोजनाएं बंद कर रहा है। वर्तमान हालात को देखें तो यह बहुत संभव है कि पाकिस्तान का विभाजन हो जाए। हालांकि यह तभी संभव है जब पाकिस्तान से मुक्ति पाने के लिए पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर, गिलगित-बाल्टिस्तान, बलूचिस्तान, सिंध और खैबर पख्तूनख्वा की परेशान जनता एक साथ खड़ी हो जाए।
(लेखक पीओजेके के मीरपुर के रहने वाले हैं और मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं। वे वर्तमान में ब्रिटेन में निर्वासन झेल रहे हैं)
नोट- यह आर्टिकल मूल रूप से AwazTheVoice में पब्लिश हुआ है। उनसे स्पष्ट अनुमति मिलने के बाद यहां प्रस्तुत किया जा रहा है।