राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सोमवार को भले ही शक्ति प्रदर्शन कर दिया लेकिन अभी उनकी कुर्सी पर मंडरा रहा संकट खत्म नहीं हुआ। यही कारण है कि कांग्रेस नाराज चल रहे डिप्टी सीएम सचिन पायलट को मनाने में जुटी है, जिससे सरकार पर संकट ना आए।
जयपुर. राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सोमवार को भले ही शक्ति प्रदर्शन कर दिया लेकिन अभी उनकी कुर्सी पर मंडरा रहा संकट खत्म नहीं हुआ। यही कारण है कि कांग्रेस नाराज चल रहे डिप्टी सीएम सचिन पायलट को मनाने में जुटी है, जिससे सरकार पर संकट ना आए। लेकिन जानकारों का मानना है कि पायलट जानबूझ कर समय काट रहे हैं ताकि बागी विधायकों की संख्या और बढ़ाई जा सके।
कांग्रेस नेताओं को भी इस बात की भनक है कि भले ही पायलट के पास अभी विधायकों की संख्या कम है, लेकिन भाजपा के साथ मिलकर वे राजस्थान को मध्यप्रदेश बना सकते हैं।
'राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन कांग्रेस के हित में'
उधर, पायलट के करीबी वरिष्ठ विधायक हेमाराम चौधरी ने साफ कर दिया कि उनके नेता भाजपा में नहीं जा रहे हैं। लेकिन वे अपनी मांग पर टिके हुए हैं। क्योंकि राज्य में नेतृत्व परिवर्तन 'कांग्रेस के हित' में है।
क्या भाजपा से डील कर चुके पायलट
एनबीटी की रिपोर्ट के मुताबिक, कांग्रेस सूत्रों ने कहा है कि पायलट भले ही दावा कर रहे हैं कि उनके पास 30 विधायक हैं। लेकिन उनके पास 21 का समर्थन है। इतना ही नहीं पायलट भाजपा के साथ डील भी कर चुके हैं। उधर, पायलट ने इन अटकलों से इनकार नहीं किया कि वे कांग्रेस में नहीं लौंटेंगे। उधर, कांग्रेस को पायलट की ताकत और मध्यप्रदेश का सबक है, इसलिए अभी तक उनके लिए दरवाजे खुले रखे गए हैं।
राहुल, प्रियंका समेत तमाम नेताओं ने की बात
गहलोत ने भले ही विधायक दल की बैठक में बहुमत साबित करने का दावा किया हो, लेकिन सचिन पायलट का कहना है कि सरकार के पास पर्याप्त संख्या बल नहीं है। उधर, कांग्रेस अलाकमान लगातार पायलट को मनाने में जुटी है। लेकिन बागी सचिन पायलट अपनी जिद पर अड़े हैं। बताया जा रहा है कि उनसे राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, अहमद पटेल, पी चिंदबरम जैसे नेताओं ने फोन पर बात की। लेकिन वे समझौते पर तैयार नहीं हुए।
पायलट के पास क्या हैं विकल्प?
पायलट ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। इसलिए उनके पास तीन विकल्प हैं। पहला- वे कांग्रेस में लौट जाएं, लेकिन सवाल ये है कि क्या उनकी मांगे मानी जाएंगी। दूसरा- भाजपा में चले जाएं, लेकिन उनके करीबियों ने इससे इंकार कर दिया है। तीसरा विकल्प है क्षेत्रीय पार्टी बनाने का।