
MK Chandrasekhar Death (तिरुवनंतपुरम): केरल भाजपा अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर के पिता एयर कमोडोर (रिटायर्ड) मंगत्तिल करक्कड़ चंद्रशेखर का निधन हो गया। वे लंबे समय से बेंगलुरु के एक अस्पताल में भर्ती थे। एमके चंद्रशेखर का जीवन देशभक्ति, वीरता और निष्ठा का प्रतीक रहा। 1954 में भारतीय वायु सेना (Indian Air Force) में शामिल होकर उन्होंने 1986 में एयर कमोडोर के पद से रिटायरमेंट लिया। उनका जन्म केरल के त्रिशूर ज़िले के देशमंगलम में हुआ था। परिवार में उनकी पत्नी आनंदवल्ली, बेटे राजीव चंद्रशेखर, बेटी-बहू और पोते-पोतियां हैं।
अपने पिता को याद करते हुए राजीव चंद्रशेखर ने सोशल मीडिया पर लिखा, ‘मेरे पिता आज हमारे बीच नहीं रहे। उन्होंने लंबा और प्रेरक जीवन जिया। मेरी जिंदगी के हर कदम में उनकी सीख और प्रेम की छाया रही। वे एक एयर वॉरियर, देशभक्त और अद्भुत इंसान थे। लेकिन मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण, वे एक महान पिता और मार्गदर्शक थे।’
भारतीय वायुसेना के जांबाज और अनुशासन और देशभक्ति के प्रतीक एयर कमोडोर मंगत्तिल करक्कड़ चंद्रशेखर का करियर देश के लिए प्रेरणा का स्रोत है। वे 17 जुलाई 1954 को भारतीय वायुसेना में शामिल हुए। उन्होंने 32 साल तक देश की सेवा की और 25 दिसंबर 1986 को स्वेच्छा से रिटायर हुए। अपनी अद्वितीय क्षमताओं और समर्पण के कारण उन्हें A1 इंस्ट्रक्टर रेटिंग से सम्मानित किया गया।
फ्लाइंग ऑफिसर: 17 जुलाई 1955
फ्लाइट लेफ्टिनेंट: 17 जुलाई 1959
स्क्वाड्रन लीडर: 17 जुलाई 1965
विंग कमांडर: 1 अप्रैल 1974
एक्टिंग ग्रुप कैप्टन: 20 जून 1977
ग्रुप कैप्टन: 1 अप्रैल 1978
एक्टिंग एयर कमोडोर: 5 जनवरी 1981
एयर कमोडोर: 1 जुलाई 1982
एयर कमोडोर एमके चंद्रशेखर को उनकी अद्भुत सेवाओं और असाधारण योगदान के लिए कई सम्मान से नवाजा गया। उन्हें 26 जनवरी 1964 को विशिष्ट सेवा पदक (VSM) प्रदान किया गया, जो उनकी उत्कृष्ट नेतृत्व क्षमता और अद्वितीय कर्तव्यनिष्ठा का प्रतीक है। इसके बाद, उनकी वीरता और वायुसेना में योगदान को देखते हुए उन्हें 26 जनवरी 1970 को वायुसेना पदक (VM) से सम्मानित किया गया। ये दोनों अलंकरण उनके गौरवशाली करियर और राष्ट्र के प्रति समर्पण की गवाही देते हैं।
एमके चंद्रशेखर का नाम भारतीय वायु सेना की डकोटा DC-3 VP905 'परशुराम' से भी जुड़ा है। यह वही ऐतिहासिक विमान है, जिसने 1947-48 में कश्मीर घाटी को पाकिस्तानी घुसपैठियों से बचाने के लिए भारतीय सेना के जवानों को श्रीनगर तक पहुंचाया था। एमके चंद्रशेखर ने एक बार खुद याद करते हुए बताया था कि अगर उस समय डकोटा न होता, तो कश्मीर को बचाना संभव नहीं था। यह विमान भारत के शुरुआती ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट में गिना जाता है और भारतीय वायुसेना की शान रहा है।
राजीव चंद्रशेखर ने अपने पिता की याद में इस 1940 विंटेज डकोटा विमान को छह साल की मेहनत के बाद फिर से रिस्टोर करवाया। 2018 में गाज़ियाबाद के हिंडन एयरबेस पर भव्य समारोह में इसे औपचारिक रूप से भारतीय वायुसेना में शामिल किया गया। तब एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ ने एयर कमोडोर (रिटायर्ड) एमके चंद्रशेखर से इस विमान की चाबी ली थी। यह पल न सिर्फ परिवार के लिए बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का क्षण था।
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