जब सीढ़ियों से उतरते वक्त लड़खड़ाए नेहरू को कवि दिनकर ने दिया सहारा, पॉलिटिक्स को लेकर कही थी इतनी बड़ी बात

भारत इस साल आजादी का अमृत महोत्सव (Aazadi Ka Amrit Mahotsav) मना रहा है। 15 अगस्त, 2022 को भारत की स्वतंत्रता के 75 साल पूरे हो रहे हैं। आजादी की लड़ाई में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के साथ ही कई महान कवियों का भी बड़ा योगदान रहा है। इन्हीं में से एक हैं राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर। 

India@75: भारत इस साल अपनी आजादी का अमृत महोत्सव (Aazadi Ka Amrit Mahotsav) मना रहा है। 15 अगस्त, 2022 को भारत की स्वतंत्रता के 75 साल पूरे हो रहे हैं। इस महोत्सव की शुरुआत पीएम नरेंद्र मोदी ने 12 मार्च, 2021 को गुजरात के साबरमती आश्रम से की थी। वैसे, भारत की आजादी में कई लोगों का योगदान रहा है। इनमें महान कवि और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामधारी सिंह दिनकर का नाम भी शामिल है। राष्ट्रकवि दिनकर का साहित्य में क्या योगदान है, इसके लिए उनकी कालजयी रचनाएं संस्कृति के चार अध्याय, रश्मिरथी और परशुराम की प्रतीक्षा खुद-ब-खुद बयां करती है। 

बचपन में ही हो गया था पिता का निधन : 
रामधारी सिंह दिनकर का जन्म बिहार में बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव में 23 सितंबर, 1908 को हुआ था। दिनकर जब दो साल के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया था। उन्हें और उनके भाई-बहनों को उनकी मां ने पाल-पोस कर बड़ा किया था। उन्होंने पटना यूनिवर्सिटी से इतिहास, राजनीति विज्ञान में बीए किया। बीए के बाद वे एक स्कूल में टीचर की नौकरी करने लगे। वो मुजफ्फरपुर कॉलेज में हिंदी विभाग के प्रमुख थे और भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में काम करते थे। उसके बाद उन्हें भारत सरकार का हिंदी सलाहकार बनाया गया।

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जब-जब राजनीति लड़खड़ाएगी, साहित्य सहारा देगा : 
1952 में जब भारत की पहली संसद बनी तो रामधारी सिंह दिनकर को  राज्यसभा सदस्य बनाया गया और वो दिल्ली पहुंच गए। रामधारी सिंह दिनकर ने भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से लेकर महात्मा गांधी पर भी लिखा। एक बार दिल्ली में हो रहे कवि सम्मेलन में पंडित नेहरू पहुंचे। सीढ़ियों से उतरते वक्त वो अचानक लड़खड़ाए, इसी बीच दिनकर ने उनको सहारा दिया। नेहरू ने उन्हें धन्यवाद कहा। इस पर दिनकर तपाक से बोले-जब जब राजनीति लड़खड़ाएगी, तब-तब साहित्य उसे सहारा देगा। रामधारी सिंह दिनकर की प्रसिद्ध पुस्तक 'संस्कृति के चार अध्याय' की प्रस्तावना तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लिखी है। इस प्रस्तावना में नेहरू ने दिनकर को अपना 'मित्र' बताया है। 

कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किए गए दिनकर : 
रामधारी सिंह दिनकर की पहली रचना 'रेणुका' है, जो 30 के दशक में प्रकाशित हुई थी। इसके कुछ साल बाद जब उनकी रचना 'हुंकार' प्रकाशित हुई, तो देश के युवा उनकी लेखनी से काफी प्रभावित हुए। दिनकर जी को उनकी रचना 'संस्कृति के चार अध्याय' के लिए 1959 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 'उर्वशी' के लिए भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया। भारत सरकार ने उन्हें 1959 में पद्म भूषण से नवाजा। 24 अप्रैल, 1974 को 65 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।

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