
नई दिल्ली: बत्तीस साल पुराने मनी ऑर्डर धोखाधड़ी के एक मामले में एक रिटायर्ड सब-पोस्टमास्टर को तीन साल की जेल की सज़ा सुनाई गई है। साथ ही, दस हज़ार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। हापुड़ के पिलखुवा के रहने वाले महेंद्र कुमार के खिलाफ यह सज़ा नोएडा, गौतम बुद्ध नगर के एडिशनल चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट मयंक त्रिपाठी ने सुनाई। यह फैसला उस मामले में आया है जो 12 अक्टूबर, 1993 को शुरू हुआ था।
नोएडा के सेक्टर 15 में रहने वाले अरुण मिस्त्री ने बिहार के समस्तीपुर में अपने पिता मदन महातो को 1,500 रुपये का मनी ऑर्डर भेजा था। उस समय, महेंद्र कुमार नोएडा के सेक्टर 19 पोस्ट ऑफिस में सब-पोस्टमास्टर के तौर पर काम कर रहे थे। अरुण ने 1,500 रुपये और 75 रुपये कमीशन के साथ पैसे दिए थे। लेकिन ये पैसे मदन महातो को नहीं मिले।
जब पैसे नहीं मिले, तो 3 जनवरी 1994 को मिस्त्री ने पोस्ट ऑफिस सुपरिटेंडेंट सुरेश चंद्रा से शिकायत की। इसी दौरान अरुण मिस्त्री को पता चला कि पोस्ट ऑफिस से मिली रसीद नकली थी। विभागीय जांच में यह भी पाया गया कि ये 1,575 रुपये सरकारी खाते में जमा ही नहीं किए गए थे। इसके बाद, पोस्टल सुपरिटेंडेंट सुरेश चंद्रा ने आरोपी महेंद्र कुमार के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।
विभागीय जांच में अपना जुर्म कबूल करते हुए महेंद्र कुमार ने 8 फरवरी, 1994 को 1575 रुपये सरकारी खाते में जमा कर दिए। उन्होंने यह भी कहा कि वह दोबारा ऐसी गलती नहीं करेंगे। लेकिन, पुलिस द्वारा दर्ज मामले में कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की गई और सुनवाई शुरू हुई। नोएडा कोर्ट ने 1988 के राम शंकर पटनायक बनाम उड़ीसा राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि गबन की गई रकम लौटा देने से अपराध खत्म नहीं हो जाता। अदालत ने कहा कि एक सरकारी कर्मचारी से पूरी ईमानदारी से काम करने की उम्मीद की जाती है। ऐसे अपराध सरकारी व्यवस्था को कमजोर करते हैं और इससे लोगों का सरकारी सिस्टम पर से भरोसा कम होता है। कोर्ट ने महेंद्र कुमार को इस शर्त पर सज़ा सुनाई है कि अगर जुर्माना नहीं भरा तो उन्हें एक साल की अतिरिक्त कैद काटनी होगी।