नेताजी सुभाष चंद्र बोस और RSS का लक्ष्य एक, भारत को महान राष्ट्र बनाने का काम अभी बाकी: मोहन भागवत

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत सोमवार को शहीद मीनार मैदान में संगठन द्वारा आयोजित नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।

Netaji Subhash Chandra Bose Jayanti: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने दक्षिणपंथी संगठन आरएसएस और नेताजी सुभाष चंद्र बोस में समानता होने की बात कही है। भागवत ने कहा कि नेताजी और आरएसएस का लक्ष्य समान है। दोनों भारत को एक महान राष्ट्र बनाने का लक्ष्य तय किए। नेताजी सुभाष चंद्र बोस या आरएसएस दोनों एक ही लक्ष्य पर काम किए हैं कि भारत एक महान राष्ट्र के रूप में उभरे। उन्होंने कहा कि नेताजी का जो सपना था, वह अभी पूरा नहीं हो सका है। हमें भारत को महान राष्ट्र बनाने के लिए अभी काम करना होगा।

नेताजी की जयंती पर बोलते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि बोस के गुणों और शिक्षाओं को आत्मसात कर, उनके बताए रास्ते पर चलते हुए इस देश को विश्वगुरु बनाया जा सकता है। नेताजी के लक्ष्यों को सुनिश्चित करने के लिए उनके आदर्शों व गुणों को भी आत्मसात करना होगा।

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परिस्थितियां व रास्ते अलग हो सकते लेकिन मंजिल एक ही है...

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत सोमवार को शहीद मीनार मैदान में संगठन द्वारा आयोजित नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि परिस्थितियां और रास्ते अलग-अलग हो सकते हैं लेकिन मंजिल एक ही है। अलग-अलग रास्ते हो सकते हैं, और इन्हें 'वाद' (विचारधारा) के रूप में वर्णित किया जाता है जो भिन्न हो सकते हैं लेकिन जो महत्वपूर्ण है वह लक्ष्य है। भागवत ने कहा कि हमारे पास सुभाषबाबू के आदर्शों का पालन करना है। उनके जो लक्ष्य थे वे हमारे लक्ष्य भी हैं... नेताजी ने कहा था कि भारत दुनिया का एक छोटा संस्करण है और देश को दुनिया को राहत देनी है। हम सभी को इसके लिए काम करना होगा।

आजादी मिलने के बाद नेताजी को जीवित रखने का कोई प्रयास नहीं हुआ

संघ प्रमुख भागवत ने कहा कि आज़ादी के बाद भी नेताजी के विरासत को जीवित रखने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किए गए, फिर भी लाखों भारतीयों के दिलों में नेताजी की विरासत ज़िंदा है। भागवत ने कहा कि यह स्वतंत्रता सेनानियों का निःस्वार्थ जीवन, संघर्ष और तपस्या थी जो लोगों को प्रेरित करती रही। नेताजी ने देश के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया। उन्होंने कभी स्वार्थ को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। वे उच्च शिक्षित थे और एक शानदार जीवन जी सकते थे। लेकिन उन्होंने वनवास को चुना।

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