सद‌्गुरु की अपील- जाति-पंथ के भेद को मिटाकर हिंदू जीवन शैली को मजबूत करें

सद‌्गुरु ने सोमवार को भारतीय संस्कृति को पुनर्जीवित करने, भारत की शिक्षा प्रणाली को पुनर्जीवित करने, हमारे समय में सनातन धर्म की प्रासंगिकता जैसे मुद्दों की सीरीज को संबोधित किया।

कोयम्बटूर। पेजावरा अधोक्षजा मठ के 34वें चातुर्मास्य महोत्सव में बोलते हुए ईशा फाउंडेशन के संस्थापक सद्गुरु ने कहा कि हमें इस बात की चिंता करने की ज़रूरत नहीं है कि कोई हिंदू जीवन शैली को खत्म करने की कोशिश कर रहा है। अगर हम इसे मजबूत करते हैं और इसे लोगों के लिए आकर्षक बनाते हैं, जाति और पंथ के भेदों को दूर करते हैं ताकि सभी हिंदू ढांचे में सम्मान के साथ रह सकें, कोई भी इसे नष्ट नहीं कर सकता।

सद‌्गुरु ने सोमवार को भारतीय संस्कृति को पुनर्जीवित करने, भारत की शिक्षा प्रणाली को पुनर्जीवित करने, हमारे समय में सनातन धर्म की प्रासंगिकता जैसे मुद्दों की सीरीज को संबोधित किया। वह ईशा योग केंद्र, कोयंबटूर से लाइव वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए संबोधित कर रहे थे। 

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राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कुछ लोगों के प्रतिरोध पर डॉ. आनंदतीर्थाचार्य नागसंपिगे के एक सवाल के जवाब में सद्गुरु ने कहा कि जब शिक्षा की बात आती है तो हम सभी को यह समझना चाहिए कि शिक्षा दक्षिण (विंग) या लेफ्ट (विंग) के बारे में नहीं है, शिक्षा आपके और मेरे बारे में नहीं है, शिक्षा आने वाली पीढ़ियों और उनके भविष्य के बारे में है। आने वाली पीढ़ियों के लिए जो सबसे अच्छा है, वही होना चाहिए। 

संस्कृति एक जीवित चीज

उन्होंने आज की पीढ़ी को भारतीय संस्कृति के महत्व के बारे में भी बताते हुए कहा कि यह देखने के बजाय कि जीवन को हमारी संस्कृति में कैसे रखा जाए, हम इसे संरक्षित करने का प्रयास कर रहे हैं। संरक्षित संस्कृति अच्छी नहीं है। संस्कृति एक जीवित चीज है। हमें इसे जीवंत रूप से जीवंत बनाना होगा। अगर आने वाली पीढ़ियों को हमारी संस्कृति के तत्वों को अपनाना है, तो यह बेहद जरूरी है कि इसे इस तरह से प्रस्तुत किया जाए जो उनके लिए आकर्षक हो।

 

क्या युवा राष्ट्र नायकों के योगदान से अनभिज्ञ है?

वेदांत शिक्षक श्यामाचार्य बंदी ने सवाल किया कि क्या देश के युवा भारत के राष्ट्रीय नायकों के योगदान से अनभिज्ञ हैं? इस सवाल के जवाब में सद्गुरु ने कहा कि युवा भ्रष्ट हैं, कहना अच्छा नहीं है। युवा भ्रष्ट नहीं हैं। हमने नई पीढ़ी को अपना इतिहास और संस्कृति ठीक से नहीं दी है। हमें इसे वैसे ही बताना होगा जैसा वे समझते हैं। युवा कुछ नहीं लेंगे क्योंकि आप कहते हैं कि यह मूल्यवान है। आपको उन्हें मूल्य दिखाना होगा, आपको उन्हें यह देखना होगा कि यह कैसे काम करता है। इसके बाद ही वे इसे उठाएंगे।

क्या हर दिन दस मिनट के ध्यान का हमारे जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता?

एक पैनलिस्ट के इस सवाल के जवाब में कि क्या हर दिन दस मिनट के ध्यान का हमारे जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, सद्गुरु ने कहा कि ध्यान कोई क्रिया नहीं है, ध्यान एक निश्चित गुण है। यदि आप अपने शरीर, मन, भावनाओं और ऊर्जा को परिपक्वता के एक निश्चित स्तर तक विकसित करते हैं, तो आप ध्यानपूर्ण हो जाएंगे। यह सिर्फ एक गहरी समझ का सवाल है कि मानव प्रणाली कैसे काम करती है, यह कितने समय का सवाल नहीं है।

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