चुनाव से पहले ममता बनर्जी की बढ़ी मुश्किलें, CBI का दावा- 'रिलीफ फंड से दी गई इस कंपनी के लोगों को सैलरी'

पश्चिम बंगाल में 2021 में चुनाव होने वाले हैं और चुनाव होने से पहले सीएम ममता बनर्जी की मुश्किलें बढ़ती दिख रही है। सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में दावा किया है कि राज्य में मुख्यमंत्री राहत कोष के पैसे से तारा टीवी के कर्मचारियों को सैलरी दी गई है।

नई दिल्ली. पश्चिम बंगाल में 2021 में चुनाव होने वाले हैं और चुनाव होने से पहले सीएम ममता बनर्जी की मुश्किलें बढ़ती दिख रही है। सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में दावा किया है कि राज्य में मुख्यमंत्री राहत कोष के पैसे से तारा टीवी के कर्मचारियों को सैलरी दी गई है। बताया जा रहा है कि इस कंपनी का नाम घोटाले में फंसा है। कहा जा रहा है कि सीएम राहत कोष से कर्मचारियों को 23 महीनों तक सैलरी का पैसा दिया गया है। सरकारी फंड से प्राइवेट कंपनी के कर्मचारियों को सैलरी देने का ये पहला मामला है। हर महीने दिए गए 27 लाख रुपए...

मीडिया रिपोर्ट्स में CBI के हवाले से बताया जा रहा है कि मई 2013 से लेकर अप्रैल 2015 के बीच तारा टीवी के कर्मचारियों की सैलरी के लिए हर महीने सीएम रिलीफ फंड से 27 लाख रुपए दिए गए हैं और इस दौरान तारा टीवी एंप्लाइज वेलफेयर एसोसिएशन को 6.21 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया। हालांकि, अभी इस मामले में और भी जांचें जारी है।  

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CBI ने कोर्ट में किया दावा 

सीबीआई ने कोर्ट में कहा कि कोलकाता हाईकोर्ट ने कर्मचारियों को कंपनी के फंड से सैलरी देने को कहा था, लेकिन बंगाल सरकार ने सीएम रिलीफ फंड का पैसा दे दिया। CBI ने ये भी कहा कि 'सीएम रिलीफ फंड में जनता की तरफ से आपदा और दूसरी इमरजेंसी के लिए रकम दान की जाती है और इसका इस्तेमाल सैलरी देने के लिए कर लिया गया। इस मामले में आगे जांच के लिए पश्चिम बंगाल के चीफ सेक्रेटरी से जानकारी मांगी गई थी, लेकिन राज्य सरकार ने आधे-अधूरे दस्तावेज ही मुहैया करवाए।'

इसके अलावा सीबीआई ने ममता के करीबी और कोलकाता के पूर्व पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार की गिरफ्तारी की मांग की थी। दरअसल, कोर्ट सीबीआई ने कहा था कि राजीव कुमार जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं, इसलिए उनकी गिरफ्तारी जरूरी है। बता दें, राजीव कुमार को पिछले साल अक्टूबर में कोर्ट से जमानत मिली थी।

राजीव कुमार ने ही की की थी घोटाले की शुरुआती जांच

शारदा चिटफंड घोटाले की शुरुआती जांच के लिए ममता सरकार ने जिस SIT गठन किया था, उसी में राजीव कुमार भी शामिल थे। 2014 में सुप्रीन कोर्ट ने दूसरे चिटफंड मामलों के साथ शारदा घोटाले की जांच भी सीबीआई को सौंप दी थी। 

TMC के कई नेता इस घोटाले में फंसे

शारदा चिटफंड घोटाले के मामले में टीएमसी के कई नेता फंसे हैं। इसमें डायरेक्टर्स सुदीप्त सेन, देबजानी मुखर्जी जैसे कई नाम इस घोटाले में शामिल हैं। सीबीआई का कहना है कि 'राजीव कुमार ने टॉप टीएमसी नेताओं और शारदा चिट फंड्स के डायरेक्टर्स को बचाने की कोशिश की। इसके लिए उन्होंने कॉल रिकॉर्ड डेटा के साथ छेड़छाड़ का सबूत मिटाने का काम किया था।' 

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2460 करोड़ का है ये घोटाला 

शारदा चिटफंड ग्रुप ने पश्चिम बंगाल में कई फेक स्कीम्स चलाई थीं, जिसमें कथित तौर पर लाखों लोगों के साथ फ्रॉड किया गया था। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो शारदा ग्रुप की चार कंपनियों का इस्तेमाल तीन स्कीमों के जरिए पैसा इधर-उधर करने में किया गया था। ये तीन स्कीम थीं- फिक्स्ड डिपॉजिट, रिकरिंग डिपॉजिट और मंथली इनकम डिपॉजिट।

रिपोर्ट्स की मानें तो कहा जा रहा है कि इस घोटाले की रकम 2,460 करोड़ रुपए तक अनुमानित है। 2013 में जब इसका खुलासा हुआ तो लोगों के करोड़ों रुपए डूब गए। उसी साल प्रोमोटर सुदीप्त सेन को गिरफ्ताप कर लिया गया था। पश्चिम बंगाल पुलिस और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि 80 फीसदी जमाकर्ताओं के पैसे का भुगतान किया जाना बाकी है।

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