SC का फैसला- राज्यपाल के पास है अधिकार, जब सरकार बहुमत में न हो तो फ्लोर टेस्ट का आदेश सही

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने मध्यप्रदेश में हुए सियासी घटनाक्रम को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ओर से दायर याचिका पर फैसला सुनाया है। सर्वोच्च अदालत का कहना है कि मार्च में हुए मामले में राज्यपाल के द्वारा फ्लोर टेस्ट का आदेश देना सही था।
नई दिल्ली. देश में कोरोना का संकट गहराता जा रहा है। देश में संक्रमित मरीजों की संख्या 9200 के पार पहुंच गई है। जबकि 300 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। इन सब के बीच  सुप्रीम कोर्ट का कामकाज जारी है। अदालत वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अहम मामलों पर सुनवाई कर रही है। इसी क्रम में सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने मध्यप्रदेश में हुए सियासी घटनाक्रम को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ओर से दायर याचिका पर फैसला सुनाया है। सर्वोच्च अदालत का कहना है कि मार्च में हुए मामले में राज्यपाल के द्वारा फ्लोर टेस्ट का आदेश देना सही था। इस दौरान कोर्ट ने कांग्रेस की दलील को नकार दिया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि राज्यपाल ऐसा आदेश नहीं दे सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि राज्यपाल ने तब खुद निर्णय नहीं लिया, बल्कि सिर्फ फ्लोर टेस्ट कराने को कहा। एक चलती हुई विधानसभा में दो तरह के ही रास्ते बचते हैं, जिसमें फ्लोर टेस्ट और नो कॉन्फिडेंस मोशन ही है। अदालत ने इस दौरान राज्यपाल के अधिकारों को लेकर एक विस्तृत आदेश भी जारी किया है। 

गवर्नर ने कहा था- सरकार साबित करे बहुमत 

मध्य प्रदेश के गवर्नर लालजी टंडन मार्च महीने में तत्कालीन कमलनाथ सरकार को सियासी उठापटक के बीच विधानसभा में फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया था। लेकिन, जब 16 मार्च को सदन की शुरुआत हुई तो विधानसभा स्पीकर ने सदन को कोरोना वायरस के चलते 26 मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया था। जिसके बाद सीएम शिवराज सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए फ्लोर टेस्ट कराए जाने का आदेश देने की मांग की थी। 

फ्लोर टेस्ट पर पहले ही दिया था आदेश

विधानसभा का सत्र स्थगित किए जाने के बाद भाजपा की ओर से याचिका दाखिल की गई थी। जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन कमलनाथ सरकार को आदेश दिया था कि 20 मार्च को शाम 5 बजे तक विधानसभा में बहुमत साबित करें। लेकिन सरकार के पास बहुमत न होने के कारण तत्कालीन सीएम कमलनाथ ने को इस्तीफा देना पड़ा था। 

17 दिन के सियासी ड्रामे के बाद कांग्रेस सरकार गिरी थी

4 मार्च से शुरू हुए सियासी ड्रामे का अंत 20 मार्च को हुआ था। 4 मार्च को कांग्रेस नेता दिग्विज सिंह ने भाजपा पर खरीद फरोख्त का आरोप लगाया। जिसके बाद कांग्रेस पार्टी के आधा दर्जन विधायक हरियाणा चले गए। इसकी खबर मिलते ही कमलनाथ सरकार ने अपने दो कैबिनेट मंत्रियों को भेजा और वो उन्हें मना कर वापस लाए। जिसके बाद 9 मार्च की रात कांग्रेस के बागी 22 विधायक बंग्लौर चले गए। इसके अगले ही दिन कांग्रेस से नाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। जिसके बाद सिंधिया खेमे विधायकों ने अपना इस्तीफा राज्यपाल और विधानसभा अध्यक्ष को भेज दिया। 

कांग्रेस नेता कई दिन तक बेंगलुरु के रिसॉर्ट में ठहरे विधायकों को मनाने की कोशिश करते रहे। राज्यपाल ने मुख्यमंत्री कमलनाथ को फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया, लेकिन मुख्यमंत्री ने असंवैधानिक करार देते हुए इससे इनकार कर दिया। बाद में भाजपा और कांग्रेस नेताओं की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में फ्लोर टेस्ट पर सुनवाई हुई और कोर्ट ने 20 मार्च को शाम 5 बजे तक इसकी प्रक्रिया पूरी कराने का आदेश दिया था। इस बीच, स्पीकर ने बेंगलुरु में ठहरे 22 विधायकों के इस्तीफे मंजूर कर लिए और कांग्रेस सरकार अल्पमत में आ गई थी। कमलनाथ ने फ्लोर टेस्ट से 4.30 घंटे पहले ही प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस्तीफे का ऐलान कर दिया था।

यह है विधानसभा का कुल गणित

मध्यप्रदेश के 2 विधायकों के निधन के बाद कुल सीटें = 228
इस्तीफा देने वाले कांग्रेस के विधायक = 22
22 विधायकों के इस्तीफे मंजूर होने के बाद सदन में सीटें (228-22) = 206
इस स्थिति में बहुमत के लिए जरूरी = 104
भाजपा = 107 (बहुमत से 3 ज्यादा)
*कांग्रेस+ = 99 (बहुमत से 5 कम)
कांग्रेस के पास 92 विधायक हैं।   

 

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