Electoral Bonds पर सुप्रीम कोर्ट में दूसरे दिन बहस, सॉलिसिटर जनरल ने रखा सरकार का पक्ष

इलेक्टोरल बांड पर सुप्रीम कोर्ट में दूसरे दिन भी सुनवाई की गई। इस दौरान कोर्ट ने कहा कि यह गुमनामी जैसा प्रतीत होता है। वहीं, केंद्र सरकार का पक्ष भी कोर्ट के सामने रखा गया।

 

Electoral Bonds Case. राजनैतिक दलों को चंदा देने के लिए इलेक्टोरल बांड का इस्तेमाल किया जाता है। अब इस पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में दूसरे दिन सुनवाई की गई। सॉलिसिटर जनरल ने सरकार का पक्ष रखा और कई बातें कहीं। एसजी ने कहा कि मेरा निजी तौर पर मानना है कि कई बार चंदा देने वालों को उस पार्टी में बिजनेस की परिस्थितियां सही लगती हैं। बिजनेस में ज्यादा अवसर मिलने की उम्मीद में लोग अलग-अलग पार्टियों का चयन करते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

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इलेक्टोरल बांड पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि चुनावी बांड केवल गुमनामी और गोपनीयता प्रदान करते हैं। क्योंकि इसे खरीदने का रिकॉर्ड भारतीय स्टेट बैंक के पास उपलब्ध नहीं हैं और न हीं जांच एजेंसियों तक यह जानकारी पहुंच पाती है। गुमनाम दान बड़ी मात्रा में राजनीतिक चंदे काले धन में तब्दील कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट चुनावी बांड योजना की कानूनी वैधता को चुनौती देने वाली चुनौतियों की सुनवाई के दूसरे दिन भी की है। एसजी ने कहा कि देश में तेजी से डिजिटल पेमेंट बढ़ रहा है। कहा कि सरकार ने पहला कदम यही उठाया है कि शेल यानि फर्जी कंपनियों के डी रजिस्ट्रेन को बढ़ावा दिया गया है। 2 लाख से ज्यादा फर्जी कंपनियों को डी रजिस्टर्ड किया गया है।

क्या होता है इलेक्टोरल बांड

इलेक्टोरल बांड ऐस ऐसा माध्यम है जिससे संस्थान, कंपनी यहा कोई व्यक्ति किसी भी राजनैतिक पार्टी को पैसे दान में देता है। देश में अलग-अलग कीमतों के बांड मिलते हैं। यह 1 हजार, 10 हजार, 1 लाख, 1 लाख और 1 करोड़ रुपए तक के हो सकते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसे खरीदने वाले की पहचना को गुप्त रखा जाता है। इलेक्टोरल बांड की शुरूआत इसलिए की गई थी ताकि राजनैतिक दलों को मिलने वाले चंदे में ट्रांसपैरेंसी लाई जा सके। हालांकि इसका विरोध करने वालों का मानना है कि इससे चुनावी प्रक्रिया ट्रांसपैरेंट नहीं रह जाती है चंदा देने वाली की पहचान भी जनता के सामने नहीं आ पाती है।

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