पूरी दुनिया महामारी से जूझ रही है। कोरोनावायरस, जिसका आधिकारिक नाम COVID-19 है, ने अब तक करीब 13 हजार लोगों की जान ले ली है। इससे करीब 3 लाख से ज्यादा लोग अभी संक्रमित हैं। जब तक इसका इलाज नहीं मिलता, दुनिया इसके उपाय और प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने पर सोचने के लिए मजबूर है।
पूरी दुनिया महामारी से जूझ रही है। कोरोनावायरस, जिसका आधिकारिक नाम COVID-19 है, ने अब तक करीब 13 हजार लोगों की जान ले ली है। इससे करीब 3 लाख से ज्यादा लोग अभी संक्रमित हैं। जब तक इसका इलाज नहीं मिलता, दुनिया इसके उपाय और प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने पर सोचने के लिए मजबूर है।
क्या भारतीय संस्कृति में ऐसा कुछ है, जो इसका समाधान बन सके। भारत ने अपने सांस्कृतिक और सभ्यता परख ज्ञान से दुनिया को हजारों सालों तक प्रभावित किया है। हमने अपने धर्मग्रंथों, गुरुओं और योगियों से धार्मिक परंपरा को देखा है, जो बौद्धिक, कलात्मक, राजनीतिक ज्ञान के साथ-साथ हमारी आत्मा और शरीर को एकजुट करने में मदद करती है। इस नई महामारी ने हमें एक बार फिर से अपने ज्ञान को पुनर्जीवित करने के लिए मजबूर कर दिया है।
दुनिया भर में डॉक्टरों द्वारा कोरोना से बचाव का मुख्य उपाय हाथ धोना बताया जा रहा है। क्या ये हमें बचपन में नहीं सिखाया गया? कुछ भी करने से पहले अपने हाथों को धोना, बाहर से आने के बाद अपने हाथों और पैरों को धोना और खाने से पहले और बाद में हाथ धोना हमारी संस्कृति में शामिल है।
यह हमारे घरों की पवित्रता और स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए हमेशा से किया जा रहा है, और अब इसे इस घातक वायरस से लड़ने के लिए सबसे अहम उपाय बताया जा रहा है।
फिजिकल कॉन्टेक्ट से बचने के लिए आज दुनिया हाथ मिलाने के बजाए नमस्ते को महत्व दे रही है। यह देखना वास्तव में चौंकाने वाला है कि कैसे पहले इसे मजाक के तौर पर देखा जाता था, लेकिन अब महामारी के वक्त सब इसी को अपना रहे हैं।
दुनियाभर के डॉक्टर प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं। यह पहले ही साबित हो गया है कि आंवला, गिलोय, शिलाजीत और नीम जैसी जड़ी-बूटियों से हमारी प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है। यह इस वायरस से भी लड़ाई में मदद करता है। आयुर्वेद के कई डॉक्टर आंवला, गिलोय, नीम, तुलसी ऐसी आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां हैं जो ना केवल हमारे इम्युनिटी सिस्टम को मजबूत करती हैं, बल्कि इंफेक्शन भी खत्म करती हैं।
हमारी दादी और नानी के घरेलू नुस्खे आज फिर इस्तेमाल में वापस आ रहे हैं। लोग वास्तव में अब दवाइयों का इस्तेमाल कम कर इन घरेलू उपायों को अजमा रहे हैं। इनसे कोई नुकसान भी नहीं है। इसके अलावा ये स्वस्थ माध्यम से शरीर की सभी बीमारियों से रक्षा भी करते हैं। आयुर्वेद और योग भारत की अंदरुनी शक्ति का सबसे बड़ा स्रोत रहे हैं। फिर भी हम इनका पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं! भारत अभी भी आयुर्वेदिक प्रथाओं को पूरी तरह से अपनाने में संघर्ष कर रहा है। जबकि हंगरी ने आयुर्वेद को अपने प्राकृतिक चिकित्सा के पाठ्यक्रम में शामिल किया और इसे 1997 में अनिवार्य हिस्सा बना दिया।
हमारी भारतीय संस्कृति पूरक है और इसमें भारतीय तकनीक, वैदिक भौतिकी, आयुर्वेद और योग शामिल हैं। योग वास्तव में ह्यूस्टन, टेक्सास में हार्वर्ड विश्वविद्यालय, एमडी एंडरसन और बेंगलुरु में NIMHANS जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों द्वारा आयोजित यादृच्छिक नियंत्रण परीक्षणों के माध्यम से पूरी तरह से मान्य किया गया है।
योग को हार्वर्ड, ह्यूस्टन में एमडी एंडरसन, टेक्सास यूनिवर्सिटी और बेंगलुरु में NIMHANS जैसे संस्थानों द्वारा तमाम ट्रायलों के बाद पूरी तरह से मान्यता मिली है। हाल ही में संसद में भारतीय चिकित्सा प्रणाली के लिए राष्ट्रीय आयोग विधेयक- 2019 पर चर्चा के दौरान सांसद विनय पी सहस्रबुद्धे ने कहा, हमारी भारतीय संस्थाओं से ज्ञान को बढ़ावा तभी मिल सकता है, जब इन्हें संस्थाओं के निर्माण के वक्त ही शामिल किया जाए।
इन संस्थानों का एक मजबूत नेटवर्क बनाया जाना चाहिए ताकि सभी के पास संसाधनों का एक संयुक्त बैंक हो और जरूरत पर एक दूसरे की मदद कर सकें। मजबूत नेटवर्क के बाद ही हम इसे विश्व स्तर पर फैला सकते हैं। इस दौरान उन्होंने आयुष मंत्रालय को एक सुझाव भी दिया। सहस्रबुद्धे ने कहा, आयुर्वेद के लिए लैंसेट जैसी पत्रिका बनाना चाहिए जिससे हमारे ज्ञान को दूर-दूर तक फैलाया जा सके।
आयुर्वेद और योग भारत द्वारा पूरे मानव समाज और पृथ्वी को दिया अनमोल उपहार है। यह स्वस्थ्य रहने के उन स्थाई उपायों में है जो हमारी पृथ्वी की देखभाल करते हैं। हमें स्वस्थ रहने के लिए, न केवल अपने शरीर बल्कि अपने पर्यावरण का भी ध्यान रखना चाहिए। आयुर्वेद और योग ने लोगों को समान रूप से जागरूक किया है। इसलिए, इन दोनों के महत्व को देखते हुए, भारत के लिए अपनी अंदरुनी शक्ति और अपनी सभ्यतागत शक्ति का विस्तार करना जरूरी है।
यह न केवल हमारी राष्ट्रीय एकता के लिए, बल्कि वैश्विक स्तर पर भारत को पैर जमाने में भी मदद करेगा। भारत के पास विश्व की शांति और उच्च चेतना के नए युग में नेतृत्व करने की शक्ति और ज्ञान है, जो हमारी सांस्कृतिक और सभ्यता की वजह से हैं। लेकिन ऐसा करने के लिए, हमें मजबूत राजनीतिक और कूटनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है और इसे हम हल्के में नहीं ले सकते। इसलिए, मैं सरकार से अपील करता हूं कि वह इसपर ध्यान दे और भारत को अपने सभ्यतागत मूल्यों से विश्व का नेतृत्व करे।
कौन हैं अभिनव खरे
अभिनव खरे एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीईओ हैं, वह डेली शो 'डीप डाइव विद अभिनव खरे' के होस्ट भी हैं। इस शो में वह अपने दर्शकों से सीधे रूबरू होते हैं। वह किताबें पढ़ने के शौकीन हैं। उनके पास किताबों और गैजेट्स का एक बड़ा कलेक्शन है। बहुत कम उम्र में दुनिया भर के 100 से भी ज्यादा शहरों की यात्रा कर चुके अभिनव टेक्नोलॉजी की गहरी समझ रखते है। वह टेक इंटरप्रेन्योर हैं लेकिन प्राचीन भारत की नीतियों, टेक्नोलॉजी, अर्थव्यवस्था और फिलॉसफी जैसे विषयों में चर्चा और शोध को लेकर उत्साहित रहते हैं। उन्हें प्राचीन भारत और उसकी नीतियों पर चर्चा करना पसंद है इसलिए वह एशियानेट पर भगवद् गीता के उपदेशों को लेकर एक सफल डेली शो कर चुके हैं।
मलयालम, अंग्रेजी, कन्नड़, तेलुगू, तमिल, बांग्ला और हिंदी भाषाओं में प्रासारित एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीईओ अभिनव ने अपनी पढ़ाई विदेश में की हैं। उन्होंने स्विटजरलैंड के शहर ज्यूरिख सिटी की यूनिवर्सिटी ETH से मास्टर ऑफ साइंस में इंजीनियरिंग की है। इसके अलावा लंदन बिजनेस स्कूल से फाइनेंस में एमबीए (MBA) भी किया है।