
बेंगलुरु। बेंगलुरु के हलसुरु इलाके में स्थित 12वीं सदी का चोल-कालीन सोमेश्वर मंदिर, जो सदियों से हिंदू शादियों के लिए बेहद पवित्र स्थान माना जाता रहा है, अब शादियां करवाना बंद कर चुका है। यह फैसला न केवल भक्तों के लिए चौंकाने वाला है, बल्कि इसने लोगों में कई सवाल भी खड़े कर दिए हैं। मंदिर में शादियों की परंपरा इतनी पुरानी थी कि यहां रोजाना कई जोड़े भगवान शिव के सामने सात फेरे लेते थे। लेकिन हाल के वर्षों में तलाक के मामलों में भारी बढ़ोतरी, भागे हुए जोड़ों द्वारा नकली दस्तावेज़ दिखाने की घटनाएं और पुजारियों को बार-बार कोर्ट में गवाही के लिए बुलाए जाने ने इस ऐतिहासिक मंदिर को एक बड़ा निर्णय लेने पर मजबूर कर दिया।
हलसुरु सोमेश्वर मंदिर के पुजारियों के लिए सबसे बड़ी मुश्किल यह थी कि शादी के गवाह के तौर पर उन्हें न सिर्फ रस्में करवानी पड़ रही थीं, बल्कि बाद में जब जोड़े अलग होने लगे तो उन्हें कोर्ट में गवाही देने के लिए भी बुलाया जाने लगा। रिपोर्ट्स के अनुसार, पिछले दो सालों में मंदिर को 50 से ज्यादा तलाक या विवाह विवाद से जुड़े मामलों में शामिल होना पड़ा। जबकि लगभग एक दशक पहले हर साल ऐसे मामलों की संख्या पांच से भी कम थी यानी तलाक के केस कई गुना बढ़ गए और इसका सीधा असर मंदिर प्रशासन और पुजारियों पर पड़ा।
द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में मंदिर प्रशासन के अधिकारी वी. गोविंदराजू ने बताया कि कई युवा जोड़े घर से भागकर आते थे और शादी के लिए फर्जी कागजात दिखाते थे। जब ये शादियां परिवारों को पता चलतीं-तो माता-पिता मंदिर पहुंच जाते, विवाद होता, शिकायतें होतीं और बात कई बार कोर्ट तक पहुंच जाती। मंदिर प्रशासन का कहना है कि ऐसी घटनाओं ने मंदिर की प्रतिष्ठा पर असर डालना शुरू कर दिया था। कई मामलों में माता-पिता आरोप लगाते थे कि मंदिर ने बिना उचित जांच के शादी करवा दी।
सोमेश्वर मंदिर चोल काल में बना था और इसकी वास्तुकला, इतिहास और धार्मिक महत्व की वजह से यह बेंगलुरु में शादियों के लिए सबसे पसंदीदा जगहों में से एक था। मंदिर के गोपुरम के नीचे होने वाली वैदिक शादियां यहाँ की पहचान थीं। लेकिन तलाक के बढ़ते मामलों ने इस पवित्र परंपरा को सीधे चुनौती दी। मंदिर के एग्जीक्यूटिव ऑफिसर ने एक ऑफिशियल कम्युनिकेशन में साफ लिखा कि “पुजारियों को कानूनी परेशानियों से बचाने के लिए शादियां रोकने का फैसला लिया गया है।” अब कई भक्त इसे मंदिर की सुरक्षा और सम्मान बचाने का कदम बता रहे हैं, जबकि कुछ का कहना है कि यह सांस्कृतिक रीतियों का नुकसान है।
सुप्रीम कोर्ट के वकील अमीश अग्रवाल के मुताबिक, मंदिर प्रशासन ने फिलहाल शादियां रोक दी हैं, लेकिन भविष्य में पॉलिसी की समीक्षा की जा सकती है। यानी यह कदम स्थायी नहीं है, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए यह फैसला जरूरी माना जा रहा है। दक्षिण भारत में मंदिरों में शादी करना शुभ माना जाता है और कई परिवार बड़े होटल या मैरिज हॉल की जगह ऐसे प्राचीन मंदिरों को चुनते हैं। लेकिन जब ऐसी जगहें खुद कानूनी विवादों में फंसने लगे।
यह पूरा मामला सिर्फ एक मंदिर का निर्णय नहीं है। यह इस बात की ओर भी इशारा करता है कि समाज में बदलती सोच, रिश्तों में बढ़ती अस्थिरता और भागकर शादी करने के बढ़ते मामलों ने धार्मिक संस्थाओं पर भी सीधा असर डालना शुरू कर दिया है। बेंगलुरु का यह प्राचीन मंदिर एक बड़ी मिसाल बन गया है कि आधुनिक समय में परंपराओं को भी कानूनी जिम्मेदारियों और सामाजिक बदलावों के अनुसार कदम उठाने पड़ रहे हैं।