धनुष नाम के एक कॉलेज के लड़के की माँ अपनी सहेली को बेटे के हालिया व्यवहार के बारे में बता रही थीं। बेटा इन दिनों अपने कमरे से बाहर ही नहीं आता था। घरवालों से आँखें मिलाकर बात नहीं करता था। हमेशा उदास रहता था। लेकिन घर आने वाली लड़कियों से उसके व्यवहार के बारे में शिकायतें आ रही थीं। इससे उसकी माँ को बहुत शर्मिंदगी होती थी। लेकिन एक बार जो हुआ वो उनके लिए निगलने वाला कौर बन गया। उस रात माँ आधी रात को पानी पीने के लिए उठीं तो बेटे के कमरे में लाइट जल रही थी। क्या है देखने गईं तो बेटा किसी से बातें कर रहा था। पास जाकर सुना तो पता चला कि बेटा सेक्स चैट कर रहा है। वो माँ क्या करें कुछ समझ नहीं आया और वापस आ गईं। यह ऐसा था जैसे न उगला जा सके न निगला जा सके। अपने पति को बताने से डर लग रहा था कि वो गुस्से में बेटे को मारेंगे। इसलिए अपनी सहेली को बताना पड़ा। ऐसी समस्या सिर्फ़ धनुष के घर में ही नहीं, आजकल ज़्यादातर लड़के-लड़कियों के घरों में देखने को मिलती है। इससे माता-पिता को होने वाला दुःख कम नहीं होता।
अश्लील वीडियो देखने की लत कैसे भी शुरू हो सकती है। एक-दो बार क्यूरियोसिटी में देखने से तुरंत खुशी मिलती है तो इसका मतलब है कि आगे चलकर यह बड़ी समस्या पैदा करेगी। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि अश्लील वीडियो देखना किसी के भी जीवन में अगर अचार जितना हो तो ठीक है, लेकिन अगर यह खाना बन जाए तो शरीर-मन सब बर्बाद हो जाता है। आजकल ऑनलाइन दुनिया में अश्लील वीडियो देखने वालों की संख्या 30% है। इसमें उम्र, लिंग का कोई भेदभाव नहीं है। लेकिन 60% युवा ऐसे वीडियो देखते हैं। इनमें से 74% अपने फ़ोन पर ही देखते हैं, यह अध्ययन से साबित हुआ है।
दुनिया में हर 30 मिनट में एक अश्लील फिल्म बनती है। हर सेकंड 30,000 लोग अश्लील वीडियो देखते हैं। हाल ही के एक सर्वे के अनुसार, अश्लील वीडियो देखने की लत वाले लोगों के अपने जीवनसाथी को धोखा देने की संभावना 300% ज़्यादा होती है। एक और दुखद बात यह है कि अश्लील वीडियो देखने की लत वाले 40% लोग अपने पार्टनर को खो देते हैं।
लत से छुटकारा पाने की इच्छा रखने वालों को वीडियो देखने की तीव्र इच्छा को कुछ देर के लिए, पाँच या दस मिनट के लिए टालना चाहिए। बदलने की चाह रखने वालों को फ़ोन का हिस्ट्री और ऐसा डेटा डिलीट कर देना चाहिए। कुछ मेडिटेशन और रिलैक्सेशन तकनीकें लत से छुटकारा पाने में मदद कर सकती हैं। योगाभ्यास से भी मदद मिलती है। अगर इन सब से भी मदद न मिले तो मनोवैज्ञानिक की मदद लेना ज़रूरी है।
किशोरों और माता-पिता को यह पता होना चाहिए कि बच्चों के मोबाइल में पेरेंटिंग गाइड ऐप डालना चाहिए। बच्चों के स्वभाव पर ध्यान दें। अगर वो किसी से बात न करें, अकेले रहना पसंद करें, उनका मूड अचानक बदल जाए, उदास रहें, रोएँ या चिड़चिड़े हो जाएँ तो सावधान हो जाना चाहिए। सबसे ज़रूरी है कि आप खुद ऐसी लत से दूर रहें। बच्चे सुनकर नहीं सीखते, देखकर सीखते हैं। माता-पिता को हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए।