ऐसे लोग तेजी से फैलाते हैं कोरोना, मुंह में लार और अलग होता है छींकने का तरीका

पूरा विश्व इस समय कोरोना वायरस के तेजी से बढ़ते संक्रमण से परेशान है। कोरोना फैलाने वाले लोगों को सुपर स्प्रेडर का नाम दिया गया है। कई बार इनमें संक्रमण के बावजूद लक्षण नहीं दिखते हैं।

Asianet News Hindi | Published : Nov 24, 2020 2:23 PM IST / Updated: Nov 24 2020, 08:02 PM IST

नई दिल्ली. पूरा विश्व इस समय कोरोना वायरस के तेजी से बढ़ते संक्रमण से परेशान है। कोरोना फैलाने वाले लोगों को सुपर स्प्रेडर का नाम दिया गया है। कई बार इनमें संक्रमण के बावजूद लक्षण नहीं दिखते हैं। इस बात से अंजान ये सुपर स्प्रेडर लोगों के बीच जाते हैं और कई लोगों को संक्रमित कर देते हैं। अमेरिका की सेंट्रल फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने सुपर स्प्रेडर को पहचानने के लिए रिसर्च की है। 

इस मामले के रिसर्चर माइकल किन्जेल का कहना है, संक्रमित इंसान ही वायरस फैलाने का सबसे बड़ा सोर्स होता है। यह पहली ऐसी स्टडी है जो बताती है कि इंसान में नाक का फ्लो मुंह के दबाव पर असर डालता है। यही तय करता है कि मुंह से निकले ड्रॉप्लेट्स कितनी दूर तक जाएंगे। रिसर्चर्स का कहना है, दांत छींक की तेजी को और बढ़ाते हैं। जिन लोगों के दांतों की संख्या पूरी है उनमें से ज्यादा ड्रॉप्लेट्स निकलते हैं। दो दांतों के बीच बनी झीरियों से निकलने वाले ड्रॉप्लेट्स शक्तिशाली होते हैं। जिन इंसानों की नाक साफ नहीं है और मुंह में पूरे दांत हैं वे 60 फीसदी तक ज्यादा खतरनाक ड्रॉप्लेट्स जनरेट करते हैं।

ऐसे होती है सुपर स्प्रेडर की पहचान 
रिसर्च बताती है कि जब नाक साफ होती है तो नाक या मुंह से निकलने वाले ड्रॉप्लेट्स की दूरी घट जाती है। यानी ये ज्यादा दूर तक नहीं जाते। वहीं, जिस इंसान की नाक के आखिरी हिस्से में अड़चन या गंदगी होती है, तो ऐसा दबाव बनता है कि ड्रॉप्लेट्स तेज रफ्तार से बाहर निकलते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि मुंह की लार भी छींक के ड्रॉप्लेट्स को फैलाने में मदद करती है। रिसर्च के दौरान वैज्ञानिकों ने लार को तीन कैटेगरी में बांटकर समझाया। बेहद पतली, मध्यम और गाढ़ी लार। लार पतली होने पर ड्रॉप्लेट्स छोटे होते हैं। ये हवा में लम्बे समय तक रहते हैं। अगर संक्रमित इंसान के मुंह से ड्रॉप्लेट्स निकलकर स्वस्थ इंसान तक पहुंचते हैं तो संक्रमण हो सकता है। 
 

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