Sufi Saint Ajan Fakir. 17वीं सदी के महान सूफी संत अजान फकीर अपने भाई के साथ बगदाद से असम पहुंचे थे। उन्होंने असम के रहने के दौरान धर्म को लेकर कई काम किए थे। वे वर्तमान के शिवसागर के पास सोरागुरी सापोरी में बसे थे। एक किंवदंती के अनुसार हजरत शाह मीरन को अजान फकीर को संत की उपाधि स्थानीय लोगों ने ही दी थी। वे असमिया मुस्लिमों को अजान सुनाना सिखाते थे, जिसके बाद उन्हें अजान फकीर ही कहा जाने लगा।
अजान पीर ने अपनी दोनों आंखें निकालकर राजा को भेजी
असम के विख्यात इतिहासकारों में से एक एसके भुइयां ने कहा है कि अजान फकीर असम की मुस्लिम जनता के बीच इस्लाम के वास्तविक महत्व को प्रसारित करने में सफल रहे। ऐसा कहा जाता है कि अजान पीर का उद्देश्य मुख्य सिद्धांतों और प्रथाओं से इस्लाम को स्थिर करना था। क्योंकि असम के मुसलमान उत्तर भारत के अपने सह-धर्मियों से बहुत दूर रहते थे। कहा जाता है कि जब इसकी सूचना तत्कालीन राजा को दी गई तो उन्होंने दोनों आंखे निकालने का हुक्म दे दिया था। किंवदंती है कि तब अजान पीर ने अपनी दोनों आंखें खुद ही निकालकर प्याले में रखकर राजा के सैनिकों के सुपुर्द कर दिया था।
अजान पीर के बारे में क्या कहते हैं इतिहासकार
असम के प्रसिद्ध इतिहासकार एसके भुइयां ने सैयद अब्दुल मलिक की पुस्तक असोमिया जिकिर अरू जरी की प्रस्तावना में उल्लेख किया है। यह अहोम राजा गदाधर सिंह (1681-1696) के शासनकाल के दौरान का किस्सा है। उसी वक्त लोगों ने अजान पीर की आध्यात्मिक शक्तियों की महानता को महसूस किया था। जिसके बाद पीर को भूमि दान दी गई और सेवक भी उपलब्ध कराए गए ताकि वे आसानी से काम और आराम कर सकें।
अजान पीर ने की थी जिकिरों की रचना
अजान पीर ने जो कुछ भी उपदेश दिया वह असम की प्रचलित संस्कृति में निहित है। महान वैष्णव संत श्रीमंत शंकरदेव (1449-1569 सीई) ने भक्तिपूर्ण रूपों की एक समृद्ध विरासत को पीछे छोड़ा था। जिसमें बोर्गेट, भोना (पारंपरिक धार्मिक नाटक) और सत्त्रिया नृत्य शामिल थे। अजान फकीर ने ज्यादातर बोरगीत पर आधारित अपने जिकिरों की रचना की और भक्ति गीत और संगीत की एक ही शैली का इस्तेमाल किया। गाने भगवान या अल्लाह की महिमा से जुड़े होते थे लेकिन उनका उद्देश्य मानवीय शांति थी।
कंटेंट सोर्स- आवाज द वॉयस
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