AI से लैस हुआ Russia का Sukhoi SU-57M फाइटर जेट, भारत को भी मिलेगी नई टेक्नोलॉजी का फायदा

Published : May 20, 2025, 05:56 PM IST

Sukhoi SU-57M AI Fighter Jet: रूस ने Sukhoi SU-57M का AI Assisted वर्जन किया टेस्ट, फाइटर जेट खुद करेगा उड़ान और टारगेटिंग। भारत के पास पहले से है 250 से अधिक Sukhoi जेट्स, जानें कैसे मिलेगा नई तकनीक का फायदा।

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एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी के इतिहास में एक मील का पत्थर

Sukhoi SU-57M AI Fighter Jet: रूस ने अपने एडवांस फाइटर जेट Sukhoi SU-57M का AI Assisted Version सफलतापूर्वक टेस्ट कर लिया है। इस ऐतिहासिक परीक्षण में फाइटर जेट में एकमात्र पायलट कॉकपिट में मौजूद था लेकिन उड़ान भरने से लेकर लक्ष्य भेदन तक की सभी जिम्मेदारी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) ने संभाली। यह परीक्षण न सिर्फ रूस के लिए बल्कि एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी के इतिहास में एक मील का पत्थर माना जा रहा है।

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इंसानी दखल के बिना फाइटर जेट!

AI ने उड़ान, फ्लाइट कंट्रोल, नेविगेशन, और दुश्मन के टारगेट को चुनने जैसे सभी फैसले खुद लिए। यानी इंसानी दखल के बिना फाइटर जेट को मिलिट्री मिशन पर भेजने का सपना अब हकीकत बनने के करीब है।

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AI से बढ़ेगी सटीकता और फैसले लेने की क्षमता

विशेषज्ञों का मानना है कि Sukhoi SU-57M का यह नया वर्जन युद्ध के समय तेज और High-Risk Decision Making में बेहद कारगर साबित होगा। AI न केवल दुश्मन की गतिविधियों पर बारीकी से नजर रखेगा बल्कि रियल टाइम में रिस्पॉन्स भी करेगा, जिससे टारगेट को सटीकता से नष्ट किया जा सकेगा।

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PAK-FA प्रोग्राम और SU-57M की ताकत

रूस साल 1999 से PAK-FA (Perspective Aviation Complex of Frontline Aviation) नाम का एक प्रोग्राम चला रहा है जिसका उद्देश्य था पांचवीं पीढ़ी के स्टील्थ फाइटर जेट्स बनाना। SU-57 इसी प्रोग्राम का हिस्सा है, लेकिन अब जो SU-57M वर्जन सामने आया है वह न केवल पहले से एडवांस है, बल्कि अमेरिका के F-22 Raptor और F-35 Lightning II जैसे जेट्स को सीधी टक्कर देने की क्षमता रखता है।

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भारत को कैसे मिलेगा फायदा?

भारत के पास पहले से ही 250 से अधिक SU-30MKI फाइटर जेट्स हैं, जो भारत और रूस के बीच हुए रक्षा समझौते के तहत हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा भारत में असेंबल और मैन्युफैक्चर किए गए हैं। अब जब रूस SU-57M जैसे एडवांस AI लैस जेट्स विकसित कर रहा है, तो भविष्य में भारत को भी इस तकनीक से लाभ मिल सकता है। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि भारत यदि इस टेक्नोलॉजी को हासिल करता है तो इससे उसकी वायुसेना की क्षमताएं कई गुना बढ़ जाएंगी।

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