वन रैंक वन पेंशन पर केंद्र सरकार को राहत, HC ने इसमें कोई दोष नहीं माना, 2015 में इसे लागू किया था

भारत सरकार ने 7 नवंबर 2015 को निर्णय लेते हुए वन रैंक वन पेंशन लागू करने का आदेश दिया। सरकार ने इसे ऐतिहासिक फैसला बताया था। इसका लाभ 1 जुलाई 2014 से प्रभावी हुआ। इस योजना के दायरे में 30 जून, 2014 तक सेवानिवृत्त हुए सैन्य बल कर्मी आते हैं। इसे मनमाना बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई गई थी।

नई दिल्ली. वन रैंक वन पेंशन मामले में आज(16 मार्च) सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से केंद्र सरकार को राहत मिली है। यानी सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार का फैसला बरकरार रखा है। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि उसे इसके सिद्धांतों और 7 नवंबर 2015 को जारी अधिसूचना में कोई संवैधानिक दोष नहीं दिखता। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इस मामले फैसला सुनाया। इस पीठ में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ भी शामिल थे। वन रैंक वन पेंशन नीति के खिलाफ इंडियन एक्स सर्विसमेन मूवमेंट ने याचिका दाखिल की थी। न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी। इस मामले में 16 फरवरी का सुनवाई हुई थी। तब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा था कि वन रैंक वन पेंशन(OROP) की अभी तक कोई वैधानिक परिभाषा नहीं है। तमाम दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।

यह भी पढ़ें-यूक्रेन संकट के कारण तेल की कीमतें बढ़ीं तो सरकार हस्तक्षेप करेगी, वित्त राज्यमंत्री ने कही राहत देने वाली बात

Latest Videos

decision in One Rank One Pension: इसे मनमाना बताया था
यह याचिका एक भूतपूर्व सैनिक आंदोलन(IESS) लगाई थी। इसमें वन रैंक वन पेंशन को केंद्र सरकार का मनमाना फैसला बताया था। याचिका में कहा गया था कि इससे वर्ग के भीतर एक और वर्ग पैदा होगा। सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई में कहा था कि वन रैंक वन पेंशन केंद्र सरकार की तरफ से एक आकर्षण तस्वीर पेश करती है, लेकिन हकीकत में कुछ सशस्त्र बलों को इतना कुछ मिला ही नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा था कि OROP कैसे लागू किया जा रहा है और इससे कितने लोगों को लाभ हुआ है? 

यह भी पढ़ें-आपरेशन गंगा के स्टेकहोल्डर्स से पीएम मोदी ने की बात, फंसे भारतीयों को निकालने के अनुभवों को किया साझा

2015 में लागू की थी वन रैंक वन पेंशन
भारत सरकार ने 7 नवंबर 2015 को निर्णय लेते हुए वन रैंक वन पेंशन लागू करने का आदेश दिया। सरकार ने इसे ऐतिहासिक फैसला बताया था। इसका लाभ 1 जुलाई 2014 से प्रभावी हुआ। सरकार का दावा है कि योजना की वजह से पड़ने वाले भारी वित्तीय बोझ के बावजूद सरकार ने योजना लागू की जो पूर्व सैन्यकर्मियों के कल्याण को लेकर उसकी प्रतिबद्धता को दिखाता है। इस योजना के दायरे में 30 जून, 2014 तक सेवानिवृत्त हुए सैन्य बल कर्मी आते हैं। रक्षा पेंशन की विशालता और जटिलता को ध्यान में रखते हुए, ओआरओपी के कार्यान्वयन पर सरकारी आदेश जारी करने से पहले विशेषज्ञों और पूर्व सैन्यकर्मियों के साथ व्यापक विचार-विमर्श किया गया था।

यह भी पढ़ें-हिजाब बैन पर हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, छात्रा ने कहा- हाईकोर्ट ने हमारे साथ अन्याय किया

यह भी जानें
सरकार का कहना था कि पूर्व सैन्यकर्मी करीब 45 वर्षों से ओआरओपी के कार्यान्वयन की  मांग के लिए आंदोलन करते आ रहे थे लेकिन 2015 से पहले इसे कभी लागू नहीं किया गया।

ओआरओपी का मतलब है कि सेवानिवृत्त होने की तारीख से इतर समान सेवा अवधि और समान रैंक पर सेवानिवृत्त हो रहे सशस्त्र सैन्य कर्मियों को एक समान पेंशन दिया जाएगा। इस तरह से ओआरओपी का मतलब आवधिक अंतरालों पर वर्तमान और पिछले सेवानिवृत्त सैन्यकर्मियों की पेंशन की दर के बीच के अंतर को पाटना है।

Read more Articles on
Share this article
click me!

Latest Videos

Dehradun Car Accident CCTV Video: हादसे से पहले कैमरे में कैद हुई इनोवा | ONGC Chowk
'मुझे लव लेटर दिया... वाह मेरी महबूबा' ओवैसी का भाषण सुन छूटी हंसी #Shorts
CM योगी आदित्यनाथ ने गिना दिया बंटने से अब तक क्या-क्या हुआ नुकसान #Shorts
'जब तक कलेक्टरनी की मेंहदी न उतार दूं...' नरेश मीणा का एक और वीडियो हुआ वायरल
Dev Diwali 2024: देव दिवाली आज, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त और सबसे खास उपाय