Supreme Court ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर लगाई रोक, SBI को 3 सप्ताह में देनी होगी रिपोर्ट, बताना होगा किसे मिला कितना पैसा

चुनावी बॉन्ड एक वित्तीय साधन के रूप में काम करते हैं। ये व्यक्तियों और व्यवसायों को अपनी पहचान उजागर किए बिना, राजनीतिक दलों को विवेकपूर्ण तरीके से धन योगदान करने की अनुमति देता है।

इलेक्टोरल बॉन्ड। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (15 फरवरी) को चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता को रद्द कर दिया। कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर रोक लगा दी है। इसके साथ ही SBI से तीन सप्ताह यानी 6 मार्च तक रिपोर्ट देने को कहा है।  SBI को बताना है कि चुनावी बांड योजना से किस पार्टी को कितने पैसे मिले। SBI द्वारा 2019 से इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम के तहत मिले पैसे पर रिपोर्ट दी जाएगी। कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा है कि वह SBI से जानकारी ले। इसके बाद चुनाव आयोग 13 मार्च तक यह जानकारी अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करे।

सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने यह मामला सुनाया। कोर्ट ने सर्वसम्मति से फैसला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना राजनीतिक दलों को गुमनाम फंडिंग की अनुमति देती है। इसमें कहा गया है कि राजनीतिक दल चुनावी प्रक्रिया में प्रासंगिक इकाइयां हैं और चुनावी विकल्पों के लिए राजनीतिक दलों के वित्तपोषण के बारे में जानकारी आवश्यक है। इस पर सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि गुमनाम चुनावी बॉन्ड योजना अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा कि जनता को यह जानने का अधिकार है कि किस पार्टी को कितना चंदा मिला है। कोर्ट ने कहा कि इनकम टैक्स एक्ट में 2017 में किया गए बदलाव के तहत चंदे की जानकारी रखना असंवैधानिक है।

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कब शुरू हुई थी सुनवाई

बीते साल 31 अक्टूबर सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई शुरू की थी। उस दौरान SC ने 2 नवंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने पिछले साल 2 नवंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। वहीं 2 जनवरी 2018 को सरकार द्वारा शुरू की गई चुनावी बॉन्ड योजना को नकद दान को बदलने और राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ाने के समाधान के रूप में देखा गया था।

चुनावी बॉन्ड एक वित्तीय साधन के रूप में काम करते हैं। ये व्यक्तियों और व्यवसायों को अपनी पहचान उजागर किए बिना, राजनीतिक दलों को विवेकपूर्ण तरीके से धन योगदान करने की अनुमति देता है। इस योजना से जुड़े प्रावधानों के तहत भारत का कोई भी नागरिक या देश में निगमित या स्थापित इकाई चुनावी बॉन्ड खरीद सकती है।

चुनावी बॉन्ड को लेकर दिया गया तर्क

पिछले साल सुप्रीम कोर्ट की नवंबर की सुनवाई से पहले अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने चुनावी बॉन्ड को तर्क दिया था।  उन्होंने कहा था कि संविधान नागरिकों को चुनावी बांड के जरिए राजनीतिक दलों के वित्तपोषण के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले धन के स्रोत के बारे में जानकारी को लेकर पूर्ण अधिकार की गारंटी नहीं देता है। चुनावी बांड योजना चुनावों में पारदर्शिता और स्वच्छ धन को बढ़ावा देती है। बता दें कि सुनवाई के पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना, बीआर गवई, जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा शामिल थे।

चुनावी बॉन्ड खरीदने की शर्त

जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत राजनीतिक दल और लोकसभा या राज्य विधान सभा चुनावों में कम से कम 1 प्रतिशत वोट हासिल करने वाले दल ही चुनावी बांड प्राप्त करने के पात्र हैं। देश में जारी चुनावी बॉन्ड अलग-अलग दामों में मिलती है। इसकी कीमत 1 हजार से लेकर 1 करोड़ रुपये तक है। इन्हें कोई भी व्यक्ति भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के सारे ब्रांच से खरीद सकता है।

 देश की राजनीतिक पार्टियों को दान के रूप में दिया जाने वाला चुनावी बॉन्ड ब्याज मुक्त है। इसको खरीदने वाली की जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाती है। हालांकि, सरकार और बैंक फंडिंग स्रोतों की वैधता सुनिश्चित करने के लिए ऑडिटिंग उद्देश्यों के लिए खरीदने वाले की जानकारी रिकॉर्ड के तौर पर रखी जाती है। 

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