'जय श्रीराम' का नारा किसी भी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत नहीं करता है। इस तरह नारा लगाना गलत नहीं' कहकर हाईकोर्ट ने मामला रद्द कर दिया था।
नई दिल्ली: दक्षिण कन्नड़ जिले के कडबा की एक मस्जिद में जय श्रीराम के नारे लगाने वालों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को रद्द करने के कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, 'जय श्रीराम कहना अपराध कैसे हो सकता है?' इसी के साथ अगली सुनवाई जनवरी के लिए तय कर दी गई है।
हैदर अली द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस संदीप मेहरा की पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील देवदत्त कामत से पूछा, 'मस्जिद के अंदर आकर नारे लगाने वालों की पहचान कैसे की गई? आप कह रहे हैं कि वह दृश्य सीसीटीवी में कैद हो गया था। लेकिन उनकी पहचान किसने की?' इस पर कामत ने कहा कि इसका जवाब राज्य पुलिस को देना चाहिए।
इसके बाद पीठ ने सुनवाई जनवरी तक के लिए टाल दी। इसी दौरान, वकील कामत ने पीठ का ध्यान इस ओर दिलाया कि जब मामले की जांच चल रही थी, उसी दौरान हाईकोर्ट ने केस रद्द कर दिया। यह सही नहीं है। इस पर पीठ ने स्पष्ट किया कि 'यह घटना आईपीसी की धारा 503(4, धमकी) या 447 (आपराधिक अपराध के लिए सजा से संबंधित) के तहत नहीं आती है।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था, 'जय श्रीराम के नारे से किसी समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंच सकती है, यह कहने का कोई मतलब नहीं है। साथ ही, इससे समाज में किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं हुई है। शिकायत में यह भी नहीं बताया गया है कि नारे किसने लगाए थे।'
मामले की पृष्ठभूमि:
2023 में दक्षिण कन्नड़ के कडबा की बदरिया जुमा मस्जिद में दो लोगों ने जय श्रीराम के नारे लगाए थे। मुसलमानों को धमकी देते हुए कहा था कि 'बारी (मुस्लिम) को चैन से जीने नहीं देंगे'। इस मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा था कि 'जय श्रीराम' का नारा किसी भी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत नहीं करता है। इस तरह नारा लगाना गलत नहीं है' और मामला रद्द कर दिया था।