राइट टू प्रोटेस्ट का मतलब नहीं की जहां मन हुआ प्रदर्शन करने लगे, SC ने बताया ऐसा करना क्यों गलत है?

सीएए के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग में हुए प्रदर्शन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने फैसले पर पुनर्विचार करने से इनकार कर दिया है। शनिवार को जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस कृष्ण मुरारी ने कहा कि विरोध का अधिकार कभी भी और कहीं भी नहीं हो सकता है।

Asianet News Hindi | Published : Feb 13, 2021 7:48 AM IST / Updated: Feb 13 2021, 01:25 PM IST

नई दिल्ली. सीएए के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग में हुए प्रदर्शन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने फैसले पर पुनर्विचार करने से इनकार कर दिया है। शनिवार को जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस कृष्ण मुरारी ने कहा कि विरोध का अधिकार कभी भी और कहीं भी नहीं हो सकता है।

12 कार्यकर्ताओं ने लगाई थी याचिका
सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश में 2019 में दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता विरोधी कानून के विरोध प्रदर्शन को लेकर समीक्षा याचिका को खारिज कर दिया। 12 कार्यकर्ताओं ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर की थी। जस्टिस एसके अतुल की तीन जजों की बेंच ने कहा, विरोध का अधिकार कभी भी और हर जगह नहीं हो सकता। कुछ सहज विरोध हो सकते हैं, लेकिन लंबे समय तक असंतोष या विरोध के मामले में सार्वजनिक स्थान पर दूसरों के अधिकारों को प्रभावित करता है। तीन न्यायाधीशों वाली पीठ ने दोहराया कि विरोध प्रदर्शनों के लिए सार्वजनिक स्थानों पर कब्जा नहीं किया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने अक्टूबर 2020 के अपने फैसले में कहा था, इस तरह के विरोध प्रदर्शन स्वीकार्य नहीं हैं।

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अक्टूबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा  था?
1- कोर्ट ने कहा था कि सार्वजनिक स्थानों पर अनिश्चित काल तक कब्जा नहीं किया जा सकता है। चाहे वह शाहीन बाग में हो या कहीं और। 
2- संविधान में विरोध का अधिकार है तो आवागमन का भी अधिकार है। विरोध के अधिकार की सीमा होती है। 
3- सार्वजनिक जगह को इस तरह से अनिश्चित काल तक नहीं घेरा जा सकता। इस तरह का विरोध स्वीकार्य नहीं। 

शाहीन बाग में 3 महीने तक चला था प्रदर्शन
दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता कानून के विरोध में 14 दिसंबर 2019 से विरोध प्रदर्शन हुआ था। यह तीन महीने तक चला। प्रदर्शन में बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे शामिल हुए थे। सुप्रीम कोर्ट ने 17 फरवरी को सीनियर सीनियर वकील संजय हेगडे और साधना रामचंद्रन को शाहीन बाग में प्रदर्शनकारियों से बातचीत कर मुद्दे को सुलझाने की जिम्मेदारी दी थी। लेकिन इससे भी बात नहीं बनी। बाद में कोरोना के चलते 24 मार्च को प्रदर्शनकारियों को हटा दिया गया था। दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी यह मुद्दा जोर-शोर से छाया रहा।

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