बड़ी जीत : सेना में महिलाओं को मिलेगा स्थाई कमीशन, SC ने कहा, केंद्र की याचिका पूर्वाग्रह से ग्रसित

सेना में स्थाई कमीशन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने साल 2010 में सुनाई गए हाईकोर्ट के फैसले पर मुहर लगाई है। साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा, जब फैसला आ गया था तो उसपर अमल क्यों नहीं हुआ। 

Asianet News Hindi | Published : Feb 17, 2020 5:35 AM IST / Updated: Feb 17 2020, 03:36 PM IST

नई दिल्ली. सेना में महिलाओं को स्थाई कमीशन देने पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने महिलाओं को स्थाई कमीशन देने को मंजूरी दे दी है। यह हाईकोर्ट के साल 2010 के फैसले पर ही मुहर है। फैसले में केंद्र सरकार को भी फटकार लगाई गई। कोर्ट ने कहा कि जब कोर्ट के फैसले पर रोक नहीं लगाई, फिर आदेश पर अमल क्यों नहीं हुआ। 2010 में हाईकोर्ट ने महिलाओं को सेना में स्थायी कमीशन देने की बात कही थी। केंद्र ने इसके खिलाफ याचिका दायर की थी। 

 सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बड़ी बातें

1 - सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हाईकोर्ट के फैसले के बाद केंद्र को महिलाओं को सेना में स्थाई कमीशन देना चाहिए था। केंद्र ने ऐसा न करके पूर्वाग्रह दिखाया है।

2 -कोर्ट ने कहा, केंद्र की दलील परेशान करने वाली है। केंद्र के मुताबिक शारीरिज सीमाओं और सामाजिक मानदंडो के चलते महिला अफसरों को स्थाई कमीशन नहीं मिलना चाहिए। 

3 - कोर्ट के मुताबिक, मानसिकता बदलने की जरूरत है। 70 साल बाद भी सरकार को सशस्त्र बलों में लैंगिक आधार पर भेदभाव खत्म करना होगा।

4 - कोर्ट ने कहा कि महिलाओं की क्षमताओं पर संदेह पैदा करना न सिर्फ महिलाओं का बल्कि सेना का भी अपमान है।

5 - कोर्ट में फैसले में कहा गया, महिलाओं को 10 विभागों में स्थाई कमीशन मिलेगा। इस फैसले से 14 साल से ऊपर सेवा दे चुकी महिलाओं को लाभ मिलेगा।

6 - कोर्ट ने कहा,स्थायी कमीशन पाने वाली महिलाओं को सिर्फ प्रशासनिक पद देने की नीति गलत है। काबिलियत के हिसाब से कमांड पद मिलेना चाहिए।

7 - यह आदेश कॉम्बेट (सीधे युद्ध) को छोड़कर 10 विभागों में लागू होगा। 3 महीने के अंदर आदेश को लागू करना होगा। 

केंद्र सरकार को लगाई फटकार

सुनवाई के बाद जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, हाईकोर्ट के फैसले के बाद केंद्र को महिलाओं को सेना में स्थायी कमीशन देना चाहिए था। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर केंद्र की याचिका में पूर्वाग्रह दिखाई देता है।

केंद्र सरकार ने क्या दलील दी थी?

केंद्र सरकार ने अपनी दलील में कहा था, महिलाओं को सेना में कमांड पोस्ट नहीं दी जा सकती, क्योंकि उनकी शारीरिक क्षमता की सीमाओं और घरेलू दायित्वों की वजह से वो सैन्य सेवाओं की चुनौतियों और खतरों का सामना नहीं कर पाएंगी। सरकार ने अपनी दलील में यह भी कहा था, सैन्य अधिकारी महिलाओं को अपने समकक्ष स्वीकार नहीं कर पाएंगे क्योंकि सेना में ज्यादातर पुरुष ग्रामीण इलाकों से आते हैं।

17 साल की लंबी लड़ाई लड़ी

महिलाओं ने इस फैसले के लिए 17 साल लंबी लड़ाई लड़ी है। 2003 में दिल्ली हाईकोर्ट में पहली याचिका दायर हुई थी। 2010 में हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया। अब साल 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे सही ठहराया है। कोर्ट ने कहा कि कॉम्बैट रोल छोड़कर बाकी क्षेत्रों में महिला अपसरों को स्थाई कमीशन दिया जाए।

शॉर्ट सर्विस और परमानेंट कमीशन में क्या अंतर है?
शॉर्ट सर्विस कमीशन में 10 साल तक सेना में रह सकते हैं। इसे 14 साल तक बढ़ाया जा सकता है। केवल पुरुषों के लिए स्थाई कमीशन में जाने का विकल्प भी दिया जाता है। वहीं परमानेंट कमीशन में अधिकारी रिटायरमेंट की उम्र तक सेना में रह सकता है।
शॉर्ट सर्विस कमीशन में सीडीएस और ओटीए की लिखित परीक्षा और इंटरव्यू के आधार पर एंट्री शारीरिक मापदंड़ों को पास करना होता है। स्थाई कमीशन के लिए कॉमन डिफेंस सर्विस का एग्जाम पास करना होता है। यह सिर्फ पुरुषों को लिए होता है।

 

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