'एक रुपया' वाले बंगाली डॉक्टर सुशोवन बंद्योपाध्याय नहीं रहे, PM Modi ने याद किए मुलाकात के भावुक पल

Dr. Sushovan Bandyopadhyay डॉक्टर सुशोवन बंद्योपाध्याय डॉक्टर के साथ साथ राजनेता भी थे। उन्होंने 60 सालों तक मरीजों का इलाज किया। इलाज के लिए वह महज एक रुपया ही लेते थे। लोग प्यार से 'एक तकर डॉक्टर' (एक रुपये का डॉक्टर) के नाम से पुकारते व जानते थे।
 

Dheerendra Gopal | Published : Jul 26, 2022 2:34 PM IST / Updated: Jul 26 2022, 08:34 PM IST

कोलकाता। बंगाल के 'एक रुपये के डॉक्टर' के नाम से मशहूर सुशोवन बंद्योपाध्याय का मंगलवार को कोलकाता के एक अस्पताल में निधन हो गया। वह बंद्योपाध्याय 84 वर्ष के थे। डॉ.सुशोवन, करीब दो साल से किडनी संबंधी बीमारियों से पीड़ित थे। बंद्योपाध्याय के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शोक जताया है।

मोदी ने किया ट्वीट, लिखा-बंद्योपाध्याय मानवता के प्रतीक

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पीएम मोदी ने ट्वीट किया, "डॉ सुशोवन बंद्योपाध्याय ने सर्वश्रेष्ठ मानवीय भावना का प्रतीक है। उन्हें एक दयालु और बड़े दिल वाले व्यक्ति के रूप में याद किया जाएगा, जिन्होंने कई लोगों को ठीक किया। मुझे पद्म पुरस्कार समारोह में उनके साथ अपनी बातचीत याद है। उनके निधन से दुखी हूं। उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति संवेदना। ओम शांति।

 

ममता बनर्जी ने भी दी श्रद्धांजलि

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ट्वीट किया कि परोपकारी डॉक्टर सुशोवन बंद्योपाध्याय के निधन के बारे में जानकर दुख हुआ। बीरभूम के प्रसिद्ध एक रुपये के डॉक्टर को उनके जन-हितैषी परोपकार के लिए जाना जाता था, और मैं अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करती हूं।

60 साल से महज 1 रुपये में करते थे इलाज

डॉक्टर सुशोवन बंद्योपाध्याय डॉक्टर के साथ साथ राजनेता भी थे। उन्होंने 60 सालों तक मरीजों का इलाज किया। इलाज के लिए वह महज एक रुपया ही लेते थे। लोग प्यार से 'एक तकर डॉक्टर' (एक रुपये का डॉक्टर) के नाम से पुकारते व जानते थे।

गिनीज बुक में दर्ज है उनका नाम

डॉ.सुशोवन बंद्योपाध्याय को 2020 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। वर्ष 2020 में उनका नाम सबसे अधिक रोगियों के इलाज के लिए गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया था।

बोलपुर से विधायक भी रहे हैं डॉ.सुशोवन

एक रुपया वाले डॉक्टर, पश्चिम बंगाल के बोलपुर विधानसभा सीट से विधायक रहे हैं। उन्होंने 1984 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी। वह अतीत में तृणमूल कांग्रेस के सदस्य थे और इसके बीरभूम जिले के अध्यक्ष थे, लेकिन बाद में उन्होंने पार्टी छोड़ दी थी।

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