तमिलनाडु विधानसभा चुनाव: चिनम्मा के संन्यास के पीछे आखिर क्या है भाजपा की चुनावी गणित?

तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले शशिकला (Sasikala) के राजनीति से संन्यास लेने के फैसले ने सबको हैरान किया है, लेकिन कहते हैं कि प्रेम-युद्ध और राजनीति में कुछ भी संभव है। जानिए शशिकला के संन्यास के पीछे की कहानी...

चेन्नई. तमिलनाडु की राजनीति में इस समय शशिकला (Sasikala) के संन्यास की चर्चा छाई है। तमिलनाडु में चिनम्मा(मौसी) के नाम से लोकप्रिय शशिकला के इस फैसले पर मुख्यमंत्री एडापट्टी पलानीस्वामी (Edappadi Palaniswami) मानते हैं कि यह चुनाव काफी अहम है। अगर वे जीतते हैं, तो कोई ताकत AIADMK को हिला नहीं सकती है। माना जा रहा है कि शशिकला के संन्यास के पीछे भाजपा की चुनावी रणनीति काम कर रही है। अगर शशिकला अगर चुनाव में सक्रिय होतीं, तो वोट बंट सकते थे।

जानें पूरा गणित
शशिकला के संन्यास की घोषणा इसलिए भी चौंकाती है, क्योंकि अगर शशिकला पूरी ताकत से चुनाव में उतरतीं, तो वे अकेले ही एआईएडीएमके के वोट बैंक यानी 234 सीटों में से 60-70 में विभाजित कर सकती थीं। शशिकला के इस फैसले से सत्तारूढ़ पार्टी को राहत की सांस मिली है। यानी अब एआईएडीएमके विपक्षी दलों से सीधी जंग ले सकता है। एआईएडीएमके से निलंबित हुईं और पूर्व सीएम जयललिता की खास सहयोगी रहीं वीके शशिकला ने एआईएडीएमके के कार्यकर्ताओं से एकजुट होकर डीएमके को हराने की अपील की है। वे डीएम को दुष्ट शक्तियां मानती हैं। शशिकला के संन्यास का भाजपा के तमिलनाडु प्रभारी सीटी रवि ने स्वागत किया। उन्होंने कहा कि यह खबर अच्छी है। अब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन(NDA) सत्ता वापसी करेगी। तमिलनाडु बीजेपी अध्यक्ष एल मुरुगन भी शशिकला के फैसले से खुश हैं।

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भाजपा का चुनावी गणित
माना जा रहा है कि शशिकला को राजनीति से संन्यास लेने के लिए भाजपा ने ही राजी किया। यह एक बड़ी चुनावी रणनीति का हिस्सा है। जब शशिकला को उनकी पुरानी पार्टी AIADMK ने दुबारा लेने से मना किया, तो उन्होंने अन्नाद्रमुक के मौजूदा नेतृत्व के खिलाफ शक्ति प्रदर्शन किए थे। बता दें कि भ्रष्टाचार के मामल में 4 साल बेंगलुरु जेल में रहने के बाद शशिकला हाल में रिहा हुई हैं।

थेवर कम्यूनिटी से ताल्लुक रखने वाली शशिकला अगर अपनी पार्टी बना लेतीं, या विरोधी खेमे में शामिल हो जातीं, तो AIADMK को एंटी इनकंबेंसी का नुकसान उठाना पड़ता। ऐसे में शशिकला को भी नुकसान होता। अगर  AIADMK सत्ता से बेदखल हो जाती, तो शशिकला का भविष्य धूमिल हो जाता। DMK को जरूर शशिकला के इस निर्णय से सदमा-सा लगा है। वो चाहती थी कि शशिकला  AIADMK के खिलाफ खड़ी हों। इससे उसे फायदा मिलता। हालांकि भाजपा ने पहले शशिकला, पलानीसामी और पन्नीरसेल्वम के गुट में समझौता कराने की कोशिश की,लेकिन बात नहीं बनी। उधर, शशिकला भी भाजपा को नाराज नहीं करना चाहतीं।


बता दें कि दिसंबर 2016 में जयललिता के निधन के बाद शशिकला को AIADMK का महासचिव बनाया गया था। अब सबकी नजरें उनके भतीजे दिनाकरण पर टिकी हैं।  दिसंबर 2017 में उन्होंने आरके नगर की महत्वपूर्ण सीट पर उपचुनाव में DMK और AIADMK को हराया था। 
 

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