Taslima Nasreen on Hijab Row :एक इंटरव्यू में तस्लीमा ने कहा कि मेरा मेरा मानना है कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में शिक्षण संस्थानों को अपने छात्रों के लिए सेक्यूलर ड्रेस कोड अनिवार्य करने का अधिकार है। स्कूल और कॉलेज छात्रों को अपनी धार्मिक पहचान घर पर रखने के लिए कहते हैं तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है।
नई दिल्ली। हिजाब विवाद (Hijab Congroversy) को लेकर पूरे देश में हंगामा मचा है। कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High court) में मामले की सुनवाई जारी है। बुधवार को भोपाल की सांसद साध्वी प्रज्ञा (Bhopal MP Sadhvi Pragya) के बाद अब जानीमानी लेखिका तस्लीमा नसरीन (Taslima Nasreen) ने इसे लेकर अपनी राय दी है। उन्होंने कहा कि हिजाब महिलाओं को सेक्स ऑब्जेक्ट बनाता है। उन्होंने कहा कि 21वीं सदी में 7वीं सदी के कानून क्यों लागू होने चाहिए। तस्लीमा ने देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil code) लागू करने का समर्थन किया है।
शिक्षण संस्थानों में धार्मिक कट्टरता की जगह नहीं हो
फर्स्टपोस्ट डॉट कॉम को दिए गए एक इंटरव्यू में तस्लीमा ने कहा कि मेरा मेरा मानना है कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में शिक्षण संस्थानों को यह अधिकार है कि वे छात्रों के लिए ड्रेस कोड अनिवार्य कर सकते हैं। स्कूल और कॉलेज छात्रों को धार्मिक पहचान घर पर रखने के लिए कहते हैं तो इसमें गलत क्या है? शिक्षा के इन संस्थानों में धार्मिक कट्टरता, कट्टरवाद और अंधविश्वास के लिए जगह नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि स्कूलों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता, लैंगिक समानता, उदारवाद, मानवतावाद और वैज्ञानिक सिद्धांतों को पढ़ाया जाना चाहिए।
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जल्द बंद करनी चाहिए हिजाब और बुर्का प्रथा
तसलीमा ने कहा कि हिजाब, नकाब और बुर्का का एक ही उद्देश्य है महिलाओं को सेक्स ऑब्जेक्ट के रूप में बदलना। उन्होंने कहा कि तथ्य यह है कि महिलाओं को पुरुषों से छिपाने की जरूरत है, जो उन्हें देखकर लार टपकाते हैं। यह बहुत ही अपमानजनक है। इस प्रथा को जल्द से जल्द बंद कर देना चाहिए। तस्लीमा का कहना है कि हिजाब इस्लाम से जुड़ा है या नहीं, ये मुद्दा नहीं है। मुद्दा ये है कि हम 21वीं सदी में रह रहे हैं और सातवीं सदी में बने कानून अभी लागू नहीं हो सकते हैं। जरूरी नहीं है कि यह हर महिला की पसंद हो। तस्लीमा ने कहा कि परिवार के सदस्य महिलाओं को हिजाब और बुर्का पहनने को मजबूर करते हैं।
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समान नागरिक संहिता की वकालत
हिजाब विवाद के बीच यूनिफॉर्म सिविल कोड की चर्चा भी तेज चल रही है। इस पर तसलीमा का कहना है कि किसी भी धर्मनिरपेक्ष देश में समान नागरिक संहिता होनी चाहिए। उन्होंने सवाल किया- किसी समुदाय के लिए अलग कानून क्यों होना चाहिए? मुसलमानों को यह समझना चाहिए कि मुख्यधारा का हिस्सा बनकर वे गरीबी, लैंगिक और धार्मिक भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ सकते हैं। इससे पहले केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने भी कहा था कि यूनिफॉर्म सिविल कोड से मुसलमानों को कोई खतरा नहीं है। इसके बारे में जो भी अफवाहें और गलतफहमियों हैं, वह दूर की जानी चाहिए।
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