तेलंगाना में क्यों हाशिए पर हैं पसमांदा मुसलमान? नई एक्शन कमेटी के गठन से आएंगे 'अच्छे दिन'

तेलंगाना के पसमांदा मुसलमानों की समस्याओं को हल करने के लिए हैदराबाद में मीटिंग का आयोजन किया गया। इस दौरान पसमांदा मुसलमानों की समस्या और उनके समाधान पर चर्चा की गई।

Contributor Asianet | Published : Jun 8, 2023 1:05 PM IST / Updated: Jun 08 2023, 06:53 PM IST

Telangana Pasmanda Muslims. तेलंगाना राज्य के पसमांदा मुसलमानों की समस्या को लेकर हैदराबाद में एक बड़ी बैठक का आयोजन किया गया। इसमें स्टूडेंट्स के अलावा पसमांदा समुदाय के वकीलों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, लेखकों और दूसरे फील्ड्स में काम करने वाले प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इस मीटिंग के दौरान पसमांदा मुसलमानों की समस्या पर गहन मंथन किया गया।

तेलंगाना में पसमांदा मुसलानों की कितनी आबादी

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आंकड़ों की मानें तो तेलंगाना में करीब 75.4 प्रतिशत पसमांदा मुसलमान हैं। आरक्षण की व्यवस्था के बावजूद पसमांदा मुसलमानों की सामाजिक और शैक्षिक स्थिति एससी-एसटी से भी बदतर हालत में है। पसमांदा समुदायों के नेताओं ने अक्सर इस मुद्दे को आगे बढ़ाया है लेकिन वे आज भी हाशिए पर हैं। मुस्लिम आबादी के हिसाब से वे बहुसंख्यक हैं, इसके बावजूद उनके पास लीडरशिप की कमी है। इस मीटिंग के आयोजक अदनान कमर के अनुसार वर्तमान में पसमांदा मुसलमानों के पास जमीन, नौकरी, शिक्षा या अन्य अवसरों तक पहुंच न के बराबर है।

क्या है पसमांदा मुसलमानों के पीछे रहने की वजह

धार्मिक विद्वान या फिर नेता अक्सर पसमांदा मुसलमानों को अपने जातिगत बिजनेस को छोड़ने के लिए तरह-तरह के उपाय करते हैं। यही वजह है कि समय के साथ पसमांदा मुसलमानों की स्थिति बिगड़ती चली गई। पसमांदा मुसलमानों की गरीबी तो बढ़ी ही, उनकी अशिक्षा भी बढ़ती गई। पसमांदा मुसलमानों को अपनी संपत्तियां तक बेचनी पड़ी। कुरैशी समाज के नेता इमरान अजीज कुरैशी ने कहा कि अशरफ ने मोदी, आरएसएस और बीजेपी का डर पैदा करके पसमांदा मुसलमानों को गुमराह किया है। इसका राजनैतिक फायदा उठाया गया।

पसमांदा मुसलमानों की प्रैक्टिकल समस्याएं

सामाजिक कार्यकर्ता सनाउल्लाह के अनुसार वर्तमान में मुसलमानों को स्वयं के सामुदायिक संगठनों और अशरफ नेताओं के हाथों भारी नुकसान उठाना पड़ा। नेशनल और स्टेट लेवल पर भी पसमांदा मुसलमानों की व्यावहारिक समस्याओं का समाधान नहीं किया जाता है। केवल बयानबाजी होती है। आवाज संगठन के अध्यक्ष मोहम्मद अब्बास के अनुसार वे पहले ही पसमांदा के 8 मुस्लिम समुदायों तक पहुंच सके हैं। उनकी समस्याओं को हल करने में उनकी मदद कर रहे हैं। फकीर, पाथर, फदुलु, कंचेरा, बोरवाला, पचकांतला तुर्कुलू, सपेरा और पित्तला मुसलमान इसके उदाहरण हैं।

हैदराबाद की बैठक में क्या निर्णय लिया गया

टीम एनजीओ के अध्यक्ष इलियास शम्सी ने सिफारिश की। पसमांदा मुसलमानों को अपनी पहचान स्थापित करनी चाहिए। प्रसिद्ध तेलुगु लेखक और कवि स्काई बाबा ने दावा किया कि पसमांदा समुदायों के कई सदस्यों ने केवल सामाजिक सम्मान हासिल करने के लिए सैयद, खान और पठान को अपने नाम के साथ जोड़ा है। भारत में परिवर्तित मुसलमानों की आबादी 90 प्रतिशत है। विदेशी मुसलमानों की संख्या छोटी है। शहरी इलाकों के उर्दू बोलने वाले अशराफ तेलुगु बोलने पर पसमांदा मुसलमानों का अपमान करते हैं। वे उर्दू को इस्लामी भाषा मानते हैं। बैठक में यह निर्णय लिया गया कि तेलंगाना में जल्द ही एक पसमांदा मुस्लिम एक्शन कमेटी का गठन किया जाएगा। इसका उद्देश्य पसमांदा समुदायों के भीतर सामाजिक परिवर्तन लाना। कई युवा, कार्यकर्ता और स्टूडेंट्स इस मंच से जुड़ रहे हैं। पसमांदा मुसलमानों से जुड़े मुद्दे उठा रहे हैं।

कंटेंट सोर्स- आवाज द वॉयस

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