पत्नी ने खुला मांगा तो मुस्लिम पति नहीं कर सकता इनकार, जानें क्या है तलाक का यह रूप

Published : Jun 26, 2025, 04:00 PM ISTUpdated : Jun 26, 2025, 04:07 PM IST
Telangana High Court

सार

तेलंगाना हाईकोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के तलाक के मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। पति की मर्ज़ी के बिना भी महिलाएं खुला ले सकती हैं, कोर्ट ने कहा। उत्पीड़न के चलते तलाक चाहने वाली महिला के केस में यह फैसला आया।

Telangana High Court: तेलंगाना हाईकोर्ट ने मुसलमान महिलाओं के तलाक से जुड़े मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि एक मुस्लिम व्यक्ति अपनी पत्नी के खुला के अनुरोध को अस्वीकार नहीं कर सकता। खुला मुस्लिम समाज में पत्नी द्वारा शुरू किया गया तलाक है।

कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिला को अपने पति की सहमति के बिना खुला मांगने का अधिकार है। हाईकोर्ट ने यह फैसला उस मामले की सुनवाई के दौरान सुनाया जिसमें एक महिला ने उत्पीड़न के कारण तलाक मांगा था। उसके पति ने मुफ्ती द्वारा दिए गए खुला की वैधता को चुनौती दी थी। पति की आपत्तियों के बावजूद हाईकोर्ट ने खुला के पारिवारिक न्यायालय के समर्थन को बरकरार रखा। जस्टिस भट्टाचार्य और जस्टिस मधुसूदन राव की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया। बेंच ने कहा, "मुस्लिम महिला को खुला लेने का अधिकार है और इसके लिए पति की अनुमति की आवश्यकता नहीं है।"

क्या है खुला, महिलाएं कब ले सकती हैं?

खुला का अरबी में अर्थ छोड़ देना होता है। यह विवाह तोड़ने का एक तरीका है। मुसलमान महिला खुला तब लेती हैं जब वह वैवाहिक बंधन जारी नहीं रखना चाहतीं। वह मुफ्ती से परामर्श करके निजी तौर पर मामले को सुलझा सकती है। खुला प्रक्रिया के माध्यम से महिला अपने पति से मेहर लौटाकर या अपने कुछ अधिकारों को त्यागकर तलाक चाहती है। तलाक लेना महिला का कानूनी अधिकार है। दुर्व्यवहार या उपेक्षा होने पर या पति के साथ तालमेल नहीं बैठने पर महिला खुला के तहत तलाक लेने का फैसला कर सकती है।

2012 में मुस्लिम जोड़े की हुई थी शादी, महिला ने मांगा था खुला

हाईकोर्ट ने जिस मुस्लिम जोड़े के मामले में फैसला सुनाया उसकी शादी 2012 में हुई थी। दोनों शादी के बाद से साथ रह रहे थे। बाद में, पत्नी ने पति पर उत्पीड़न की शिकायत की और खुला नामा शुरू किया। पति तीन बार सुलह सत्र में शामिल नहीं हुआ और जब महिला को मुफ्ती से खुला मिला तो उसने इसे फैमिली कोर्ट में चुनौती दी।

महिला के वकील ने कोर्ट में दलील दी कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार कोर्ट के हस्तक्षेप के बिना भी तलाक लिया जा सकता है। पति के वकील ने दलील दी कि तलाक का आदेश सुनाने का अधिकार सिर्फ खाजी या कोर्ट को ही है। कोर्ट ने उसकी पत्नी द्वारा प्राप्त ‘खुला’ को स्वीकार कर लिया। इसके बाद उस व्यक्ति ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी।

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