लिवर को डैमेज कर रही गिलोय; इस रिसर्च को आयुष मंत्रालय ने बताया भ्रामक व आयुर्वेदिक परंपरा के लिए विनाशकारी

आयुष मंत्रालय ने गिलोय को लेकर हुई रिसर्च और खबर को भ्रामक और अधूरी जानकारी बताया है; जिसमें कहा गया था कि गिलाय के अधिक सेवन से लिवर डैमेज हो रहा है। पतंजलि पहले ही इसे गलत ठहरा चुकी है।

नई दिल्ली. आयुष मंत्रालय ने जर्नल ऑफ क्लिनिकल एंड एक्सपेरिमेंटल हेपेटोलॉजी(Journal of Clinical and Experimental Hepatology) की रिसर्च के आधार पर छपी खबरों को भ्रामक और अधूरी जानकारी वाला बताया है, जिसमें कहा गया कि जड़ी-बूटी गिलोय या गुडुची; जिसे टिनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया(TinosporaCordifolia) यानी TC के सेवन से मुंबई में 6 रोगियों का लिवर फेल हो गया। यह रिसर्च इंडियन नेशनल एसोसिएशन के सहयोग से लिवर पर की गई थी। इस रिसर्च को पतंजलि ने भी गलत बताया है। पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आयुर्वेदाचार्य बालकृष्ण ने कहा कि ऐसे सीमित रिसर्च संतोषजनक नहीं है।

मंत्रालय ने कहा कि इससे सदियों पुरानी आयुर्वेद प्रथा बदनाम होगी
आयुष मंत्रालय ने एक बयान जारी करके कहा कि उसे लगता है कि यह रिसर्च सही जानकारियां सही तरीके से रखने में विफल रही है। आयुष मंत्रालय ने कहा कि गिलोय को लिवर के डैमेज से जोड़ना भारत की पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली के प्रति भ्रम पैदा करेगा। यह विनाशकारी होगा, क्योंकि आयुर्वेद में जड़ी-बूटी गिलोय का उपयोग लंबे समय से किया जा रहा है। कई रोगों में गिलोय काफी असरकार साबित हुई है।

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ठीक ढंग से नहीं किया रिसर्च
आयुष मंत्रालय ने तर्क दिया कि रिसर्च का अध्ययन करने के बाद पता चलता है कि इसे लिखने वालों ने जड़ी-बूटी का ठीक से विश्लेषण नहीं किया, जो रोगियों को दी गई थी वो गिलोय थी या कुछ और। साथ ही इस संबंध में वनिस्पति शास्त्रियों( botanist) से भी परामर्श नहीं किया गया।

गलत असर डाल सकती हैं ऐसी रिसर्च
आयुष मंत्रालय ने कहा कि वास्तव में ऐसी रिसर्च बताती हैं कि जड़ी-बूटियों की ठीक से पहचान नहीं कर पाना गलत परिणाम दे सकते हैं। गिलोय जैसी दिखने वाली बूटी टिनोस्पोरा क्रिस्पा(TinosporoCrispa) का लीवर पर खराब असर पड़ता है। इसलिए गिलोय जैसी इस जहरीली बूटी को ध्यान में रखते हुए रिसर्च से पहले स्टैंडर्ड गाइडलाइन का पालन करते हुए सही पौधे की पहचान की जाना चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। आयुष मंत्रालय ने कहा कि रिसर्च में और भी कई खामियां हैं। इसमें स्पष्ट नहीं है कि रोगियों ने कौन-सी खुराक ली? जड़ी-बूटी को दवाओं के साथ लिया गया नहीं? इसके अलावा रोगियों का पिछला और वर्तमान मेडिकल रिकॉर्ड को भी ध्यान में नहीं रखा गया। ऐसे में अधूरी जानकारियों पर आधारित रिपोर्ट छापना गलत सूचना के दरवाजे खोलेगा। इससे आयुर्वेद की सदियों पुरानी परंपरा बदनाम होगी।

यह है पूरा मामला
कोविड 19 के असर को कम करने गिलोय के सेवन को उपयोगी माना गया है। इसी बीच मुंबई में सितंबर-दिसंबर के बीच यह रिसर्च की गई थी। जिन मरीजों ने गिलोय का इस्तेमाल किया, उनमें जॉन्डिस याना पीलिया और लीथर्जी यानी सुस्ती-थकान देखी गई। इसी रिसर्च को आधार बनाकर कई मीडिया हाउस ने खबरें प्रकाशित की थीं। इस स्टडी के आधार पर लिवर स्पेशलिस्ट डॉ. आभा नागरल ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया था कि 62 साल की एक महिला को पेट में तकलीफ के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था। करीब 4 महीने बाद उसकी मौत हो गई थी।
 
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