20 साल पुराने बलात्कार मामले में हाई कोर्ट से दोषी ठहराया व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट से हुआ बरी, जाने क्या है मामला

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति को यह कहते हुए बलात्कार के आरोप से मुक्त कर दिया कि कोई भी महिला चाकू की नोंक पर यौन शोषण किए जाने के बाद आरोपी को प्रेम पत्र नहीं लिखती और ना ही उसके साथ चार सालों तक लिव-इन-रिलेशन में रहती है। महिला ने करीब 20 साल पहले व्यक्ति पर बलात्कार और वादाखिलाफी का आरोप लगाया था जिसे  झारखंड हाई कोर्ट और ट्रायल कोर्ट ने स्वीकारते हुए व्यक्ति को दोषी ठहराया था। अब सु्प्रीम कोर्ट ने दोनों कोर्ट का यह फैसला बदल दिया है।

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक व्यक्ति को यह कहते हुए बलात्कार के आरोप से मुक्त कर दिया कि कोई भी महिला चाकू की नोंक पर यौन शोषण किए जाने के बाद आरोपी को प्रेम पत्र नहीं लिखती और ना ही उसके साथ चार सालों तक लिव-इन-रिलेशन में रहती है। महिला ने करीब 20 साल पहले व्यक्ति पर बलात्कार और वादाखिलाफी का आरोप लगाया था जिसे  झारखंड हाई कोर्ट और ट्रायल कोर्ट ने स्वीकारते हुए व्यक्ति को दोषी ठहराया था। अब सु्प्रीम कोर्ट ने दोनों कोर्ट का यह फैसला बदल दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कई सबूतों की गहन पड़ताल करते हुए पाया कि घटना के वक्त 1995 में महिला की उम्र महज 13 साल की थी जबकि 1999 में जब उसने प्राथमिकी (FIR) दर्ज कराई तो मेडिकल जांच में उसकी उम्र तब 25 साल की पाई गई। यानी, महिला ने अपनी उम्र झूठ बोलकर आठ साल कम बताई थी । इसका मतलब है कि 1995 में उसकी उम्र 13 साल न होकर 21 साल थी। दरअसल महिला और पुरुष दोनों अलग-अलग धर्म के हैं जो दोनों के विवाह की समस्या बनी। महिला ने एफआईआर में कहा था कि आरोपी ने उससे शादी करने का वादा किया था। इसलिए वो दोनों पति-पत्नी की तरह रह रहे थे। महिला के मुताबिक, चार साल बद 1999 में जब लड़के ने किसी अन्य महिला से शादी कर ली तो उसने बलात्कार और वादाखिलाफी का मुकदमा दर्ज करवा दिया था।

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सुप्रीम कोर्ट की दलील

जस्टिस नवीन सिन्हा ने फैसला लिखते हुए कहा कि लड़का अनुसूचित जनजाति का है जबकि लड़की इसाई है। दोनों की आस्था अलग है। दोनों एक-दूसरे के प्रेम में पागल थे। इस वजह से दोनों ने शारीरिक संबंध भी बनाए और लंबे वक्त तक ऐसा करते रहे। महिला लड़के के घर में भी रही। हमारी नजर में चार साल बाद पुरुष की शादी से ठीक सात दिन पहले एफआईआर दर्ज कराने से महिला की शिकायत पर गंभीर शंका पैदा होती है। बेंच ने कहा, 'महिला को धार्मिक समस्याओं का पता था, फिर भी वह लड़के के साथ शारीरिक संबंध बनाती रही। अगर दोनों की शादी हो गई होती तो महिला बलात्कार का आरोप नहीं लगाती। उसने कहा कि उसने लड़के को चिट्ठी नहीं लिखी, लेकिन सबूत इसके उलट है। दोनों की चिट्ठियों से पता चलता है लड़का उससे शादी करना चाहता था।

पुरूष का परिवार भी अच्छा था

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'सबूतों के आधार पर यह मानना संभव नहीं है कि पुरुष कभी महिला से शादी नहीं करना चाहता था और उसने महिला को झांसा देकर यौन संबंध बनाया। महिला ने अपने प्रेम पत्रों में यह कई बार स्वीकार किया है कि पुरुष के परिवार का उसके प्रति बहुत अच्छा व्यवहार था।'

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