जिस सुलेमानी को ट्रंप ने बताया भारत का दुश्मन, उसने अहम मौकों पर भारत का इस तरह दिया साथ

ट्रंप ने दावा किया है कि जनरल सुलेमानी भारत में आतंकी हमले की साजिश रच रहा था। लेकिन आंकड़ों ने ठीक इसके उलट जवाब दिया है। जिसमें सुलेमानी ने अक्सर भारत का साथ दिया है। वहीं, सुलेमानी के मौत के बाद भारत में भी शिया मुसलमानों ने प्रदर्शन किया। 

Asianet News Hindi | Published : Jan 5, 2020 8:05 AM IST

नई दिल्ली. अमेरिका और ईरान के बीच पहले से ही जारी तनाव अब एक नए स्तर पर पहुंच चुका है। दोनों देश युद्ध के मुहाने पर खड़े है। मीडिया में आई खबरों के अनुसार ईरान ने मस्जिद पर लाल झंडा फहराकर युद्ध के संकेत दे दिए हैं। दरअसल, अमेरिकी ड्रोन हमले में मारे गए ईरान के कुद्स फोर्स के प्रमुख मेजर जनरल कासिम सुलेमानी की मौत के बाद दोनों देशों में तकरार बढ़ गया है। ट्रंप ने दावा किया है कि जनरल सुलेमानी भारत में आतंकी हमले की साजिश रच रहा था। लेकिन आंकड़े और इतिहास इसके उलट है। खुफिया एजेंसियों के मुताबिक़ जनरल सुलेमानी हमेशा से भारत के पक्ष में बयान देता था। 

कुलभूषण के मामले में दिया था साथ 

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कुलभूषण जाधव के मामले में जब पाकिस्तान की सरकार ने ईरान की सरकार को कहा था कि भारत पाकिस्तान विरोधी गतिविधियों के लिए ईरान की धरती का इस्तेमाल कर रहा है तब जनरल सुलेमानी ने पाकिस्तान के दावे को सिरे से खारिज कर दिया था। इसके अलावा कुलभूषण जाधव मामले में भी भारत की सहायता की थी।  भारत ईरान के सहयोग से बन रहे चाहाबार पोर्ट के लिए हुए समझौते में भी सुलेमानी की खास भूमिका रही थी। सुलेमानी की मौत के बाद भारत में भी कारगिल और लखनऊ में शिया समुदाय ने विरोध प्रदर्शन किया। 

खुफिया ऑपरेशन का मास्टर था सुलेमान 

जनरल सुलेमानी की हत्‍या के बाद ईरान ने अमेरिका को इसके परिणाम भुगतने की चेतावनी दे डाली है। जनरल क़ासिम सुलेमानी को खुफिया ऑपरेशन का माहिर माना जाता था। चाहे 2006 का इजराइल हिजबुल्लाह जंग हो, जिसमें जनरल सुलेमानी ने लेबनान में जंग की कमान संभाली थी या सीरिया में कॉन्फ्लिक्ट में ईरानी हस्तक्षेप। जनरल सुलेमानी ने इन सबमें अहम भूमिका निभाई। 

मुसलमानों के बीच थे लोकप्रिय 

पश्चिम एशिया और खाड़ी के शिया मुसलमानों के बीच वह खासे लोकप्रिय थे। ईरानी जनरल सुलेमानी ने दो साल पहले बगदाद में अमेरिका और उसके सहयोगियों से लड़ने के लिए शिया मुसलमानों से अपील की थी जिसके बाद तकरीबन दस हज़ार भारतीय शिया मुसलमानों ने इराक़ी वीजा के लिए आवेदन किया था। हालांकि कितने लोग बगदाद पहुंचे, इसके ठीक ठीक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। 

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