गौतमबुद्ध नगर जेल के अधीक्षक ने व्यक्तिगत रूप से न्यायालय की पीठ के समक्ष पेश होकर यह खुलासा किया कि उसने कारागार में आए मजिस्ट्रेट के मौखिक निर्देश पर आरोपी को जेल से रिहा किया था।
नई दिल्ली. उच्चतम न्यायालय द्वारा आरोपी की जमानत रद्द किये जाने के बावजूद मजिस्ट्रेट के मौखिक आदेश पर उत्तर प्रदेश में गौतमबुद्ध नगर जेल से उसकी रिहाई के मामले में सोमवार को जेल अधीक्षक को शीर्ष अदालत में बहुत ही असहज स्थिति का सामना करना पड़ा। न्यायालय ने सख्त लहजे में कहा कि इसके लिये जिम्मेदार व्यक्ति को इसकी ‘कीमत चुकानी’ होगी। शीर्ष अदालत ने यह उस समय कहा जब गौतमबुद्ध नगर जेल के अधीक्षक ने व्यक्तिगत रूप से न्यायालय की पीठ के समक्ष पेश होकर यह खुलासा किया कि उसने कारागार में आए मजिस्ट्रेट के मौखिक निर्देश पर आरोपी को जेल से रिहा किया था।
न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने इसे बहुत ही अजीब बताते हुये कहा कि यदि जरूरी हुआ तो शीर्ष अदालत संबंधित मजिस्ट्रेट के खिलाफ जांच का आदेश दे सकती है। पीठ ने कहा, ‘‘यह बहुत ही अजीब है कि उन्होंने (जेल अधीक्षक) मजिस्ट्रेट के मौखिक निर्देश पर ऐसा किया। पीठ ने कहा कि यह अजीब है। इस न्यायालय ने उसकी (आरोपी) जेल से रिहाई पर रोक लगाने का आदेश दिया था। इससे पहले, सुनवाई शुरू होते ही सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को सूचित किया कि उसके आदेश का पालन करते हुये जेल अधीक्षक न्यायालय में उपस्थित हैं। इस पर पीठ ने तल्ख लहजे में कहा, कैसा पालन? ये इस न्यायालय के आदेश का पालन नहीं करते। पीठ ने कहा कि इनका (अधीक्षक) कहना है कि उन्होंने मजिस्ट्रेट के मौखिक निर्देश पर ऐसा किया। मजिस्ट्रेट ने मौखिक निर्देश दिया कि उसे (आरोपी) रिहा कर दो और उन्होंने शीर्ष अदालत के आदेश की भी परवाह नहीं की। उन्हें इसका खामियाजा भुगतना होगा।
पीठ ने सारे घटनाक्रम पर नाराजगी व्यक्त करते हुये कहा, इस मामले में हमें उस न्यायाधीश के खिलाफ जांच का आदेश देना पड़ सकता है जिन्होंने मौखिक रूप से यह कहा। मेहता ने कहा कि जेल आने वाले मजिस्ट्रेट ने अधीक्षक से कहा कि आरोपी को रिहा कर दिया जाये। अधिकारी ने ऐसा ही किया। उसने पीठ के अवलोकन के लिये जेल पुस्तिका भी पेश की। पीठ ने टिप्पणी की, मान लीजिये कोई मजिस्ट्रेट जेल आये और ऐसे आरोपी की रिहाई के लिये कहे जो आतंकवादी है, तो क्या जेल उसे रिहा करेंगे। न्यायालय ने इसे बहुत ही गंभीर मामला करार देते हुये दोनों ही पक्षों को, अगर जरूरी हों, दस्तावेज दाखिल करने का निर्देश दिया और इस मामले को नवंबर के लिये सूचीबद्ध कर दिया।
सुनवाई के अंतिम क्षणों में मेहता ने पीठ से कहा कि जेल से रिहा किया आरोपी इस समय जेल में बंद है। इससे पहले, शीर्ष अदालत ने जेल अधीक्षक के खिलाफ दायर अवमानना याचिका विचारार्थ स्वीकार करते हुये उसके नाम गैर जमानती वारंट जारी किया था। पीठ ने यह आदेश एक व्यक्ति द्वारा दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया था। उस व्यक्ति ने आपराधिक मामले में आरोपी को जमानत देने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुये शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी। शीर्ष अदालत ने पिछले साल जुलाई को उप्र सरकार को आरोपी को अगले आदेश तक जेल से रिहा नहीं करने का आदेश दिया था, यदि वह अभी भी हिरासत में है। इसके बाद, न्यायालय ने तीन दिसंबर, 2018 को आरोपी को जमानत देने का उच्च न्यायालय का आदेश निरस्त कर दिया था।
इसके बावजूद उसे जेल से रिहा किये जाने के मामले में अपीलकर्ता ने शीर्ष अदालत में अवमानना याचिका दायर की थी। अवमानना याचिका में कहा गया था कि जेल अधीक्षक ने आरोपी को जेल की हिरासत में रखने के लिये निचली अदालत का नया वारंट मांगा था। अवमानना याचिका में कहा गया कि जेल अधीक्षक ने हिरासत वारंट का इंतजार किये बगैर ही आरोपी को जेल से रिहा कर दिया। याचिका में कहा गया कि उच्चतम न्यायालय के आदेश के बावजूद जेल अधीक्षक ने जानबूझ कर, गैरकानूनी और मनमाने तरीके से आरोपी को जेल से रिहा कर दिया। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि जेल से बाहर आने के बाद आरोपी ने उसकी हत्या करने का प्रयास किया और पुलिस इस मामले में प्राथमिकी दर्ज नहीं कर रही है।
(यह खबर न्यूज एजेंसी पीटीआई भाषा की है। एशियानेट हिंदी की टीम ने सिर्फ हेडलाइन में बदलाव किया है।)