NIA कोर्ट ने कहा- यासीन मलिक को मिला मौका, लेकिन नहीं सुधरा, महात्मा गांधी की बात कर खुद को नहीं बता सकता सही

एनआईए जज प्रवीण सिंह ने  यासीन मलिक (Yasin Malik) को उम्रकैद की सजा सुनाई। प्रवीण सिंह ने कहा कि यह सही हो सकता है कि अपराधी ने 1994 में बंदूक छोड़ दी हो, लेकिन उसने 1994 से पहले की गई हिंसा के लिए कभी खेद व्यक्त नहीं किया।

Asianet News Hindi | Published : May 25, 2022 4:33 PM IST

नई दिल्ली। विशेष एनआईए जज प्रवीण सिंह ने बुधवार को जेकेएलएफ नेता यासीन मलिक (Yasin Malik) को टेरर फंडिंग मामले में उम्रकैद की सजा दी। उन्होंने कहा कि यासीन मलिक को सुधरने का मौका मिला था, लेकिन वह नहीं सुधरा। वह महात्मा गांधी की बात कर खुद को सही नहीं ठहरा सकता। 

प्रवीण सिंह ने कहा कि यह सही हो सकता है कि अपराधी ने 1994 में बंदूक छोड़ दी हो, लेकिन उसने 1994 से पहले की गई हिंसा के लिए कभी खेद व्यक्त नहीं किया। वह हिंसक कृत्यों में लिप्त रहा। यासीन ने 1994 के बाद हिंसा का रास्ता छोड़ने का दावा किया तो भारत सरकार ने इसे उनके फेस वैल्यू पर लिया। सुधार का मौका दिया। उनके साथ सार्थक बातचीत हुई और राय व्यक्त करने के लिए हर मंच दिया गया।

अपराधी महात्मा गांधी का आह्वान नहीं कर सकता 
जज प्रवीण सिंह ने कहा कि मुझे ध्यान देना चाहिए कि अपराधी महात्मा गांधी का आह्वान और उनका अनुयायी होने का दावा नहीं कर सकता। महात्मा गांधी के सिद्धांतों में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं थी, चाहे उद्देश्य कितना भी ऊंचा हो। चौरी-चौरा में हुई हिंसा की घटना के बाद महात्मा गांधी ने पूरे असहयोग आंदोलन को रद्द कर दिया था। घाटी में बड़े पैमाने पर हिंसा के बावजूद दोषी ने न तो हिंसा की निंदा की और न ही विरोध वापस लिया।

विदेशी आतंकवादियों की मदद से किया अपराध
एनआईए कोर्ट ने कहा कि जिन अपराधों के लिए मलिक को दोषी ठहराया गया था, वे बहुत गंभीर प्रकृति के थे। इन अपराधों का उद्देश्य जम्मू-कश्मीर को भारत से जबरदस्ती अलग करना था। अपराध अधिक गंभीर हो जाता है क्योंकि यह विदेशी शक्तियों और आतंकवादियों की सहायता से किया गया था। अपराध की गंभीरता इस तथ्य से और बढ़ जाती है कि यह एक कथित शांतिपूर्ण राजनीतिक आंदोलन के परदे के पीछे किया गया था।

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बता दें कि एनआईए अदालत ने मलिक को उम्रकैद की सजा सुनाते हुए 10 लाख रुपए से अधिक का जुर्माना भी लगाया। उन्हें दो बार आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई (एक राष्ट्र के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए और एक यूएपीए की धारा 17 में आतंकवादी कृत्य के लिए धन जुटाने के लिए)। एनआईए ने मलिक के लिए मौत की सजा की मांग की थी, जिसे 19 मई को दोषी ठहराया गया था। 

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