top 10 most controversial judgements: भारत के विभिन्न हाईकोर्ट्स ने कई विवादास्पद फैसले सुनाए हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट के ताजा फैसले से लेकर बॉम्बे और दिल्ली हाईकोर्ट के चर्चित मामलों तक, जानिए न्यायिक निर्णयों पर उठे सवाल।
Top 10 most controversial judgements: भारतीय न्यायपालिका (Indian Judiciary) ने कई ऐतिहासिक फैसले दिए हैं लेकिन कुछ ऐसे भी रहे हैं जो विवादों में घिर गए। हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) का फैसला जिसमें एक नाबालिग लड़की के यौन उत्पीड़न को रेप (Rape) की श्रेणी से बाहर रखा गया। हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा (Justice Ram Manohar Narayan Mishra) की बेंच ने कहा कि पीड़िता के ब्रेस्ट को पकड़ना या पायजामे की डोरी तोड़ना रेप (Rape) या रेप की कोशिश नहीं माना जा सकता। यह 'गंभीर यौन उत्पीड़न'की श्रेणी में आता है। इस फैसला के आने के बाद न्यायपालिका पर भी लोग सवाल उठाने लगे हैं तो तमाम लोग सुप्रीम कोर्ट से स्वत: संज्ञान लेने की अपील कर रहे। आइए जानते हैं ऐसे ही 10 हाईकोर्ट के विवादास्पद फैसलों के बारे में, जिन्होंने न्यायिक व्यवस्था पर गंभीर प्रश्न उठाए।
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के कासगंज (Kasganj) में 11 वर्षीय बच्ची के साथ यौन उत्पीड़न (Sexual Assault) के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला दिया कि किसी नाबालिग के स्तन को पकड़ना और उसके पायजामे की डोरी तोड़ना रेप या रेप का प्रयास नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने इसे 'गंभीर यौन उत्पीड़न' (Aggravated Sexual Assault) की श्रेणी में रखा, जिससे इस फैसले की कड़ी आलोचना हुई।
बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने एक मामले में कहा कि अगर किसी अपराध में सीधे त्वचा से त्वचा का संपर्क नहीं हुआ है तो उसे यौन उत्पीड़न नहीं माना जा सकता। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इस फैसले को खारिज करते हुए इसे कानूनी रूप से गलत और अन्यायपूर्ण बताया।
दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) में वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) को अपराध घोषित करने को लेकर मतभेद रहा। एक जज ने इसे अपराध नहीं माना जिसके बाद महिलाओं के अधिकारों और उनके शरीर पर स्वामित्व को लेकर राष्ट्रीय बहस छिड़ गई।
कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta High Court) ने एक विवादास्पद टिप्पणी में कहा था कि लड़कियों को अपने यौन विचारों पर संयम रखना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर नाराजगी जताई और कहा कि यह संविधान के मूल अधिकारों के खिलाफ है।
कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment) के एक मामले में आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया कि महिला ने स्पष्ट रूप से विरोध नहीं किया था। यह फैसला सहमति (Consent) की कानूनी परिभाषा पर सवाल खड़े करता है।
गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High Court) ने एक नाबालिग लड़की के बलात्कार के मामले में आरोपी को बरी कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि लड़की का व्यवहार उसकी सहमति दर्शाता है। इस फैसले ने 'विक्टिम ब्लेमिंग' (Victim Blaming) को लेकर व्यापक आक्रोश पैदा किया।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) ने फैसला दिया कि अगर किसी महिला ने आपसी सहमति से शारीरिक संबंध बनाए हैं और बाद में शादी से इनकार कर दिया तो इसे बलात्कार नहीं माना जाएगा। यह फैसला सहमति और रिश्तों में वादों की कानूनी व्याख्या पर गंभीर सवाल खड़ा करता है।
यूपी के इलाहाबाद हाईकोर्ट (High Court) ने कहा कि अगर पीड़िता ने तुरंत रिपोर्ट नहीं किया तो रेप के दावे पर संदेह किया जा सकता है। यह निर्णय देरी से रिपोर्ट करने वाली पीड़िताओं के लिए न्याय की राह को मुश्किल बना सकता है।
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट (Himachal Pradesh High Court) ने कहा कि यौन अपराधों पर न्यायिक निर्णय नैतिक मूल्यों (Moral Values) के आधार पर लिए जाने चाहिए। इस तरह की टिप्पणी ने न्यायिक निष्पक्षता पर सवाल उठाए।
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab and Haryana High Court) ने एक आरोपी को बरी करते हुए कहा कि अगर यौन शोषण के दौरान शारीरिक बल (Physical Force) का उपयोग नहीं किया गया, तो इसे गंभीर अपराध नहीं माना जा सकता। इस फैसले ने यौन उत्पीड़न के कानूनी दायरे पर बहस छेड़ दी।