मोदी का समर्थन करते हुए 13 रिटा. जज समेत 302 प्रतिष्ठित लोगों ने BBC के खिलाफ लिखा लेटर, कहा- गुजरात दंगों पर बनी डॉक्यूमेंट्री एकतरफा
देश के कुल 302 प्रतिष्ठित नागरिकों ने बीबीसी के खिलाफ एक साइन किया पत्र जारी किया है। इसमें 13 रिटायर्ड जज, 133 रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स, 33 राजदूत और 156 रिटायर्ड आर्मी अफसर शामिल हैं। सभी ने इसे बीबीसी की दूषित मानसिकता करार दिया है।
Kartik samadhiya | Published : Jan 21, 2023 11:42 AM IST / Updated: Jan 21 2023, 05:13 PM IST
नई दिल्ली. देश के कुल 302 प्रतिष्ठित नागरिकों ने गुजरात दंगों पर बनी बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री के खिलाफ एक साइन किया पत्र जारी किया है। इसमें 13 रिटायर्ड जज, 133 रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स, 33 राजदूत और 156 रिटायर्ड आर्मी अफसर शामिल हैं। सभी ने इस डॉक्यूमेंट्री को बीबीसी की दूषित मानसिकता करार दिया है। बता दें, बीबीसी ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाई है। इसका पहला एपिसोड 17 जनवरी को रिलीज किया गया था, जिसके बाद भारत सरकार ने BBC की गुजरात दंगो पर बनी डॉक्यूमेंट्री को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और देश के लिए प्रोपेगैंडा बताया था। इस डॉक्यूमेंट्री को ब्लॉक करने का आदेश सरकार की तरफ से दिया गया था। अब इसी पर पूर्व जज और अफसरों की प्रतिक्रिया सामने आई है।
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क्या है पूरा मामला? दरअसल, 17 जनवरी को पहला एपिसोड टेलिकास्ट हुआ था। अगले दिन सरकार ने इसे हटा दिया था। इस एपिसोड का नाम 'द मोदी कैंश्चन'है, इसे यूट्यूब पर रिलीज किया गया था। इसका दूसरा एपिसोड 24 जनवरी को टेलिकास्ट होना था। इससे पहले ही सरकार ने पहले एपिसोड को यूट्यूब से हटा दिया। इस एपिसोड के डिस्क्रिप्शन में लिखा कि यह डॉक्यूमेंट्री भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुस्लिम अल्पसंख्यकों के बीच तनाव पर नजर डालती है। साथ ही लिखा था कि 2002 में हुए दंगों में नरेंद्र मोदी की भूमिका के दावों की भी जांच करती है। बता दें, गुजरात दंगो में नरेंद्र मोदी को सुप्रीम कोर्ट की गठित एक समिति ने क्लीन चिट दे दी थी।
पत्र में क्या लिखा ?
बीबीसी की तरफ से रिलीज की गई डॉक्यूमेंट्री से एक बार फिर देश के खिलाफ नकारात्मक मानसिकता और पूर्वाग्रह सामने आया है।
पत्र में रिटायर्ड जज और अधिकारियों ने बीबीसी की सीरीज को भ्रामक और स्पष्ट रूप से एकतरफा रिपोर्टिंग बताया है। इस डॉक्यूमेंट्री की निष्पक्षता पर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं। भारत पिछले 70 सालों से अपने लोगों की इच्छा के अनुसार काम कर रहा है।
रिपोर्टिंग में कथित शब्द का बार-बार उपयोग किया गया है। जो फैक्चुअल नहीं है।
इस डॉक्यूमेंट्री में कई तरह की फैक्चुअल जानकारी को दरकिनार किया गया है। जबकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को स्पष्ट रूप से क्लीन चिट दी है।
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने 452 पन्नों के व्यापक फैसले पर जांच के बाद जारी की गई क्लोजर रिपोर्ट को बरकरार रखा था। यह रिपोर्ट SIT ने फाइल की थी।
इस तरह की डॉक्यूमेंट्री बीबीसी की मानसिकता को दिखाता है, साथ ही बताता है कि कैसे एक मीडिया संस्था सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को भी दरकिनार करता है।
जिस तरह की रिपोर्ट्स भी इस डॉक्यूमेंट्री में दिखाई गई है, वो सभी कुछ सुप्रीम कोर्ट की तरफ से खारीज कर दी गई है। अधिकारियों ने सवाल किया है कि एक ब्रिटिश मीडिया आउटलेट ने इस डॉक्यूमेंट्री को तैयार किया तो इसे सच मान लेना चाहिए?
डॉक्यूमेंट्री के कई फैक्ट्स पर भी पत्र में सवाल उठाया गया है। इसमें साफ लिखा है कि सीएए को मुस्लिमों के प्रति अन्याय बताया गया है। जबकि यह कानून हिन्दू, सिख, ईसाई, बौद्ध और जैन धर्म की सुरक्षा के लिए बनाया गया है।
इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में लिए गए कड़े फैसलों का जिक्र पत्र में किया गया है। इसमें साफ तौर पर कहा है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ही कोरोना महामारी में दुनिया को पहुंचाने वाली मदद, आर्टिकल 370 हटाना, त्रिपल तलाक कानून लाना जैसे कुछ फैसले प्रधानमंत्री की छवि के लिए काफी है।
इस पत्र में अधिकारियों ने साफ तौर पर लिखा है कि बीबीसी देश के लोगों की राष्ट्रभक्ति को कम आंकता है। जब भी इस देश की बात होती है तो हिन्दुस्तानी एक हो जाते हैं। दुनिया में हम भारतीय कहीं भी रहें, देश के लिए एकजुटता में कभी पीछे नहीं रहते।