पिछले 10 वर्षों में बढ़ी है ट्रेनों की सुरक्षा, पहले हर साल होते थे औसतन 171 हादसे
पिछले 10 वर्षों में भारतीय रेलवे ने इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास, आधुनिकीकरण और सुरक्षा में सुधार के लिए अनेक कदम उठाए हैं। इसके चलते ट्रेन हादसे कम हुए हैं।
Vivek Kumar | Published : Jun 18, 2024 2:11 PM IST
नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में सोमवार को एक मालगाड़ी ने पीछे से कंचनजंघा एक्सप्रेस को टक्कर मार दी। इस हादसे में 9 लोगों की मौत हो गई। इसके बाद भारत में ट्रेनों की सुरक्षा को लेकर सवाल उठ रहे हैं।
दुनिया की चौथी सबसे बड़ी रेलवे सिस्टम है भारतीय रेलवे
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भारतीय रेलवे दुनिया की चौथी सबसे बड़ी रेलवे सिस्टम है। इससे पहले अमेरिका, रूस और चीन का स्थान है। पिछले कुछ वर्षों में भारतीय रेलवे ने इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास, आधुनिकीकरण और सुरक्षा में सुधार के लिए अनेक कदम उठाए हैं। इसके चलते ट्रेन हादसे कम हुए हैं।
बढ़ी है भारत में ट्रेनों की सुरक्षा
रेलवे द्वारा सुरक्षा को लेकर उठाए गए कदम का असर ट्रेन हादसे कम होने के रूप में दिखे हैं। 2000-01 में 473 रेल हादसे हुए थे। यह 2022-23 में घटकर 40 रह गया। 2004 से 2014 तक हर साल औसतन 171 रेल हादसे हुए। वहीं, 2014 से 2024 तक हर साल औसतन 68 हादसे हुए।
ट्रेन परिचालन की सुरक्षा के लिए किए गए ये उपाय
राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष (RRSK) को 2017-18 में पांच साल के लिए 1 लाख करोड़ रुपए के कोष के साथ शुरू किया गया था। 2017-18 से 2021-22 तक सुरक्षा से जुड़े काम पर 1.08 लाख करोड़ रुपए खर्च हुए। 2022-23 में केंद्र सरकार ने 45,000 करोड़ रुपए का बजट समर्थन देकर RRSK को और पांच साल के लिए बढ़ा दिया।
कवच प्रणाली को राष्ट्रीय ATP (Automatic Train Protection) सिस्टम के रूप में अपनाया गया है। अब तक कवच को 1,465 रेलवे किलोमीटर और 121 इंजनों पर लगाया गया है।
सुरक्षा को और बढ़ाने के लिए 31 मई 2024 तक 6,586 स्टेशनों को इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग (ईआई) से लैस किया गया है। 31 अक्टूबर 2023 तक अधिक व्यस्त मार्गों के 4,111 आरकेएम पर ऑटोमैटिक ब्लॉक सिग्नलिंग (एबीएस) लागू किया गया है। जनवरी 2019 तक ब्रॉड गेज रूट पर सभी मानव रहित क्रॉसिंग को खत्म कर दिया गया है।
सभी इंजनों को अब सतर्कता नियंत्रण उपकरणों (VCD) से लैस किया गया है। कोहरा प्रभावित क्षेत्रों में पायलटों को जीपीएस आधारित कोहरा सुरक्षा उपकरण (FSD) दिए गए हैं।
ट्रैक की सुरक्षा के लिए उन्नत ट्रैक रिकॉर्डिंग कारों की शुरुआत की गई है। इससे ट्रैक के रखरखाव में क्रांतिकारी बदलाव आया है। ट्रैक की सुरक्षा जांचने के लिए रेल की अल्ट्रासोनिक जांच की जाती है।
2004-14 की तुलना में 2014-24 तक रेलवे का सुरक्षा प्रदर्शन
सुरक्षा संबंधी काम पर खर्च 2.5 गुना बढ़ाया गया है। 2004-14 में 70,273 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। 2014-24 के दौरान 1.78 लाख करोड़ रुपए हुए।
नए ट्रैक लगाने पर खर्च 2.33 गुना बढ़ा है। 2004-14 में 47,018 करोड़ रुपए खर्च हुए। 2014-24 के दौरान 1,09,659 करोड़ रुपए खर्च हुए।
वेल्ड विफलताओं में 87% की कमी आई है। यह 2013-14 में 3,699 से घटकर 2023-24 में 481 हो गई है। रेल फ्रैक्चर में 85% की कमी आई है। यह 2013-14 में 2,548 से घटकर 2023-24 में 383 हो गई है।
लेवल क्रॉसिंग हटाने पर 2004-14 तक 5,726 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। 2014-24 के दौरान इसे 6.4 गुना बढ़कर 36,699 करोड़ रुपए किया गया।
31.03.2014 तक देश में मानव रहित लेवल क्रॉसिंग की संख्या 8,948 थी। 31.01.19 में इसे जीरो कर दिया गया।
इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग (स्टेशन) की संख्या 2004-14 के दौरान 837 थी। 2014-24 के दौरान यह 3.5 गुना बढ़कर 2,964 हो गई।
2004-14 के दौरान ऑटोमैटिक ब्लॉक सिग्नलिंग 1,486 किमी तक थी। 2014-24 के दौरान इसे बढ़ाकर 2,497 किमी किया गया।
फॉग पास सुरक्षा उपकरणों की संख्या में 219 गुना वृद्धि हुई। 31.03.14 को यह 90 थी। यह बढ़कर 31.03.24 को 19,742 हो गई।
एलएचबी कोचों का निर्माण 15.8 गुना बढ़ा। 2004-14 तक 2,337 कोच बने थे। 2014-24 के दौरान 36,933 कोच बने।
2014 तक एसी कोचों में आग और धुआं पहचान प्रणाली नहीं थी। 2024 तक 19,271 हो गई। गैर-एसी कोचों में अग्निशामक यंत्रों की संख्या 2014 में शून्य से बढ़कर 2024 में 66,840 हो जाएगी।