पैदा होते ही मां-बाप ने छोड़ा, दुख से भरी है ट्रांसजेंडर सुनैना की कहानी, धनबाद में दे रहीं भाजपा को टक्कर

झारखंड के धनबाद लोकसभा सीट पर भाजपा के दुलु महतो को 35 साल की ट्रांसजेंडर सुनैना सिंह टक्कर दे रहीं हैं। जन्म के बाद उन्हें माता-पिता ने हॉस्पिटल में छोड़ दिया था।

 

धनबाद। झारखंड के धनबाद लोकसभा सीट पर चुनावी लड़ाई रोचक है। यहां भाजपा उम्मीदवार दुलु महतो को 35 साल की ट्रांसजेंडर सुनैना सिंह चुनौती दे रहीं हैं। सुनैना के जीवन की कहानी दुख और संघर्ष से भरी है। पैदा हुई तो माता-पिता उसे हॉस्पिटल में छोड़कर भाग गए थे।

सुनैना उत्तर प्रदेश की नकी भारतीय एकता पार्टी (NBEP) की प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहीं हैं। उन्होंने धनबाद के पीके रॉय मेमोरियल कॉलेज से जूलॉजी में स्नातक की पढ़ाई की है। धनबाद में 22.54 लाख मतदाता हैं। इनमें से 78 ट्रांसजेंडर हैं। यहां 25 मई को मतदान होगा। यहां से अभी तक INDIA ब्लॉक के प्रत्याशी के नाम का ऐलान नहीं हुआ है।

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सुनैना बोली- शिक्षा और बेरोजगारी मेरा मुद्दा

सुनैना ने कहा, "धनबाद में विकास का कोई काम नहीं हुआ है। धनबाद कोयले का बड़ा सप्लायर है। यहां हत्या और रंगदारी के मामले कई गुना बढ़ गए हैं। मेरा एजेंडा साफ है। मैं शिक्षा को लेकर काम करना और रोजगार के मौके दिलाना चाहती हूं। धनबाद में बहुत अधिक बेरोजगारी है। यहां तक कि पढ़े लिखे युवाओं को भी नौकरी नहीं मिल रही है। मैं भ्रष्टाचार के खिलाफ भी लड़ूंगी। यह राज्य के विकास में बड़ी बाधा है।"

सुनैना सिंह ने कहा कि वह शुरू में स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ना चाहती थीं, लेकिन बाद में चौधरी जरार अहमद नकी के नेतृत्व वाली एनबीईपी ने उन्हें टिकट की पेशकश की। चुनाव के लिए पैसे किस तरह जुटेंगे? इस सवाल के जवाब में सुनैना ने कहा कि मुझे अपने समाज के लोगों से मदद मिल रही है। इसके साथ ही आम लोग भी मेरी मदद कर रहे हैं।

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किन्नर मां ट्रस्ट की जिला अध्यक्ष हैं सुनैना

सुनैना 'किन्नर मां ट्रस्ट' की जिला अध्यक्ष हैं। उन्होंने "ट्रांसजेंडर समुदाय के खिलाफ असमानता" पर नाराजगी व्यक्त की है। उन्होंने कहा, "जन्म लेते ही मुझे मेरे माता-पिता ने हॉस्पिटल में छोड़ दिया। हमारे समाज की राज्य अध्यक्ष ने मेरा पालन-पोषण किया। इसके बाद मैंने पढ़ाई की। पढ़ाई करने के बाद मैंने दिल्ली में जॉब खोजने की कोशिश की, लेकिन बहुत अधिक भेदभाव का सामना किया। इसके बाद मैं धनबाद लौट गई और यहां के लोगों की सेवा करने का फैसला किया।"

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