उग्रवादी गुट ULFA से केंद्र सरकार और असम सरकार ने किया शांति समझौता, दिल्ली में पीस डील साइन

Published : Dec 29, 2023, 06:00 PM ISTUpdated : Dec 30, 2023, 12:33 AM IST
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सार

यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असोम (उल्फा), पूर्वोत्तर क्षेत्र में सबसे बड़ा विद्रोही ग्रुप है। हालांकि, परेश बरुआ के नेतृत्व वाला उल्फा (स्वतंत्र) गुट इस बातचीत और समझौता के विरोध में है।

Tripartite peace deal signed: केंद्र सरकार, असम सरकार और उल्फा के बीच शुक्रवार को एक शांति समझौता पर सहमति बनी। नई दिल्ली में तीनों पक्षों ने समझौता पत्र पर साइन किया। यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असोम (उल्फा), पूर्वोत्तर क्षेत्र में सबसे बड़ा विद्रोही ग्रुप है। हालांकि, परेश बरुआ के नेतृत्व वाला उल्फा (स्वतंत्र) गुट इस बातचीत और समझौता के विरोध में है। केंद्र सरकार ने कहा कि शांति समझौते का उद्देश्य इलिगल इमीग्रेशन, स्वदेशी समुदायों के लिए भूमि अधिकार और असम के विकास के लिए वित्तीय पैकेज आदि की पूरा करना है।

शांति और विकास केलिए हुआ समझौता

गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि केंद्र यह सुनिश्चित करेगा कि उल्फा की सभी उचित मांगों को समयबद्ध तरीके से पूरा किया जाएगा। शाह ने कहा: हम उल्फा नेतृत्व को आश्वस्त करना चाहते हैं कि शांति प्रक्रिया की सफलता सुनिश्चित करने के लिए केंद्र में उनके भरोसे का सम्मान किया जाएगा। पूर्वोत्तर में शांति और स्थिरता लाने के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को श्रेय दिया जाना चाहिए।

मुख्य धारा में लाने के लिए सरकार करेगी सहयोग

केंद्र व राज्य सरकार ने उल्फा के एक गुट के साथ किए गए अपने समझौते पर यह आश्वासन दिया है कि वह असम की सांस्कृतिक विरासत से छेड़छाड़ नहीं करेगी। उसे बढ़ावा देगी। असम के लोगों को रोजगार दिया जाएगा। उल्फा में शामिल रहे लोगों को भी रोजगार दिया जाएगा। विद्रोहियों को मुख्य धारा में लाने के लिए उनकी आजीविका के साधन उपलब्ध कराने में सरकार सहयोग करेगी।

उल्फा का गठन 1979 में किया 

यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असोम यानी उल्फा का गठन 1979 में किया गया था। उल्फा का गठन परेश बरुआ ने किया था। इसमें उनके दो अन्य सहयोगी अरबिंद राजखोवा और अनूप चेतिया भी साथ थे। असम को स्वायत्ता और स्वतंत्रता के लिए उल्फा नेताओं ने हथियार उठा लिए थे। 1990 में केंद्र सरकार ने उल्फा को प्रतिबंधित कर दिया था। 1991 में उल्फा के 9 हजार से अधिक विद्रोहियों ने केंद्र सरकार के सामने सरेंडर किया था। 2008 में उल्फा के लीडर अरबिंद राजखोवा को अरेस्ट कर लिया गया। बाद में वह केंद्र के साथ समझौता करने पर राजी हो गए। हालांकि, इसके बाद उल्फा दो गुटों में बंट गया। 2011 से उल्फा का यह गुट हथियार नहीं उठाया है। अब इस संगठन ने शांति समझौते कर बड़ा कदम उठाया है। परेश बरुआ का गुट अभी भी समझौता में शामिल नहीं है।

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