संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी ILO की रिपोर्ट: भारत में शहरी और पढ़े-लिखे बेरोजगारों की तेजी से बढ़ी संख्या, 83 प्रतिशत बेरोजगार युवा

रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में सभी बेरोजगार लोगों में शिक्षित युवाओं की संख्या 54.2% से बढ़कर 65.7% हो गई है। भारत में बेरोजगारी की समस्या युवाओं, विशेषकतर शहरी क्षेत्रों के एजुकेटेड यूथ्स में तेजी से सेंट्रलाइज हो रही।

Dheerendra Gopal | Published : Mar 28, 2024 10:58 AM IST / Updated: Mar 29 2024, 12:44 AM IST

ILO report: संयुक्त राष्ट्र संघ का संगठन इंटरनेशनल लेबर आर्गेनाइजेशन ने भारत के बेरोजगारी का आंकड़ा पेश कर स्थितियों को भयावह बताया है। आईएलओ ने कहा कि भारत में रोजगार का परिदृश्य गंभीर है। भारत में बेरोजगारों की संख्या में 83 प्रतिशत युवा हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में सभी बेरोजगार लोगों में शिक्षित युवाओं की संख्या 54.2% से बढ़कर 65.7% हो गई है। भारत में बेरोजगारी की समस्या युवाओं, विशेषकतर शहरी क्षेत्रों के एजुकेटेड यूथ्स में तेजी से सेंट्रलाइज हो रही। हालांकि, केंद्रीय युवा मामलों के मंत्री अनुराग ठाकुर ने इसे खारिज करते हुए कहा कि भारतीय एजेंसियों के डेटा, यूनाइटेड नेशन्स के डेटा से अलग हैं।

क्या है आईएलओ की रिपोर्ट?

ILO की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बेरोजगारी तेजी से बढ़ी है विशेषकर शहरी युवाओं के बीच बेरोजगारी बेतहाशा बढ़ी है। देश के बेरोजगारों में 83 प्रतिशत युवा आबादी है। संयुक्त राष्ट्र के संगठन ने सुझाव दिया है कि अगर भारत 5 नीतिगत क्षेत्रों पर काम करता है तो अगले दशक में श्रम कार्यबल में 70-80 लाख युवाओं को जोड़ देगा। इन पांच नीतिगत क्षेत्र हैं- रोजगार सृजन; रोजगार की गुणवत्ता; लेबर मार्केट में असमानताएं; एक्टिव लेबर मार्केट के कौशल और नीतियों दोनों को मजबूत करना; लेबर मार्केट पैटर्न और युवा रोजगार पर ज्ञान की कमी को कम करना।

क्या कहा केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने?

अनुराग ठाकुर ने कहा कि 64 मिलियन लोगों ने कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) में रजिस्ट्रेशन कराया है। यह ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और कई अन्य देशों की जनसंख्या से भी बड़ी संख्या है। जो 34 करोड़ मुद्रा ऋण दिए गए, वे नौकरी के अवसर भी पैदा कर रहे हैं। अब वे नौकरी मांगने वाले से नौकरी देने वाले बन गए हैं।

उन्होंने कहा कि भारत वर्षों से अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों पर निर्भर रहा है लेकिन अब उसे घरेलू एजेंसियों के आंकड़ों पर ध्यान देना चाहिए। हमारे पास अभी भी गुलाम मानसिकता है क्योंकि हम हमेशा विदेशी रेटिंग पर निर्भर रहे हैं। हमें इससे बाहर आने और अपने देश के संगठनों पर भरोसा करने की जरूरत है।

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