Explainer:क्या है UPSC में लेटरल एंट्री, सरकार ने क्यों लगाई रोक, आगे क्या होगा?

केंद्र सरकार ने UPSC के जरिए होने वाली लेटरल इंट्री पर रोक लगा दी है। सरकार अब लेटरल इंट्री की कमी दूर करेगी। इसके बाद इसे फिर से लागू किया जा सकता है।

Vivek Kumar | Published : Aug 20, 2024 10:02 AM IST / Updated: Aug 20 2024, 03:39 PM IST

नई दिल्ली। केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने मंगलवार को UPSC (Union Public Service Commission) से कहा कि केंद्रीय मंत्रालयों में टॉप पोस्ट पर लेटरल इंट्री के लिए विज्ञापन रद्द कर दें। पत्र में जितेंद्र सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देशों का हवाला दिया।

पिछले सप्ताह UPSC ने लेटरल एंट्री के सबसे बड़े चरण में 45 संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों की भर्ती के लिए आवेदन मांगे थे। इसका उद्देश्य निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की नियुक्ति करना था। UPSC के विज्ञापन पर राजनीतिक बयानबाजी तेज हो गई थी। विपक्ष ने इसका विरोध किया था। एनडीए के दो सहयोगियों जनता दल (यूनाइटेड) और चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) भी इस कदम के खिलाफ थी।

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क्या थी UPSC में लेटरल एंट्री?

नौकरशाही में लेटरल एंट्री वह व्यवस्था थी, जिसके माध्यम से सरकार के टॉप पोस्ट पर बाहर के लोगों की भर्ती की जाती है। आमतौर पर उच्च पदों पर IAS, IPS, IRS जैसे कैडर के अधिकारी प्रमोशन पाकर पहुंचते हैं। लेटरल एंट्री में सरकार से बाहर के एक्सपर्ट को बड़े पदों पर नौकरी दी गई। उम्मीदवारों को आमतौर पर तीन से पांच साल की अवधि के अनुबंध पर रखा गया। प्रदर्शन के आधार पर सेवा में विस्तार होता है। इसका उद्देश्य सरकार के बाहर के एक्सपर्ट्स को सेवा में लाना था।

क्यों लेटरल एंट्री पर सरकार ने लगाई रोक?

नरेंद्र मोदी सरकार चाहती है कि UPSC के माध्यम से लेटरल एंट्री पारदर्शी व सामाजिक न्याय और आरक्षण के सिद्धांतों के अनुसार हो। इसमें एससी, एसटी और ओबीसी को आरक्षण मिले। इसके चलते सरकार ने लेटरल एंट्री पर तत्काल विराम लगाया है। सरकार इसपर फिर से विचार कर रही है। अभी लेटरल एंट्री सिंगल कैडर पोस्ट के लिए होती थी। भर्ती में आरक्षण का प्रावधान नहीं था। मोदी सरकार इस कमी को दूर कर रही है।

भारत में लेटरल एंट्री का इतिहास

मोदी सरकार से पहले सरकार में लेटरल एंट्री अपारदर्शी तरीके से होती थी। इसकी शुरुआत 1947 में पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित से हुई। विजयलक्ष्मी ने राजनयिक सेवा में प्रवेश किया और 1947 से 1949 तक सोवियत संघ, 1949 से 1951 तक अमेरिका व मैक्सिको, 1955 से 1961 तक आयरलैंड व ब्रिटेन और 1956 से 1961 तक स्पेन में भारत की राजदूत रहीं।

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कांग्रेस के शासनकाल में लेटरल एंट्री सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं थीं। SC, ST और OBC को दरकिनार किया गया था। 2018 में मोदी सरकार ने UPSC के माध्यम से लेटरल एंट्री को संस्थागत रूप दिया। इससे भर्ती में पारदर्शिता आई।

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