मेरे अंदर अब और जीने की इच्छा नहीं बची, डेढ़ साल से जिंदा लाश की तरह हूं...महिला जज ने CJI को लिखा मार्मिक लेटर

सीजेआई को लिखे लेटर में पीड़िता महिला जज ने लिखा: भरी अदालत में मेरा शारीरिक शोषण हुआ। मैं दूसरों को न्याय देती हूं लेकिन खुद अन्याय का शिकार हुई।

UP female Judge ask for Euthanasia: यूपी के एक जिले में तैनात महिला जज ने इच्छा मृत्यु की मांग की है। उन्होंने अपने जिला जज पर शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगाते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर इच्छा मृत्यु की मांग की है। सीजेआई को लिखे लेटर में पीड़िता महिला जज ने लिखा: भरी अदालत में मेरा शारीरिक शोषण हुआ। मैं दूसरों को न्याय देती हूं लेकिन खुद अन्याय का शिकार हुई। महिला ने सीजेआई को लेटर 15 दिसंबर को लिखा है।

कब का है मामला?

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महिला जज के अनुसार, 7 अक्टूबर 2022 को अपने पूर्व के तैनाती जिला में कार्य के दौरान जिला बार एसोसिएशन ने न्यायिक कार्य का बहिष्कार किया था। उसी दिन सुबह 10.30 बजे वह कोर्ट में काम कर रही थी। इस दौरान बार एसोसिएशन के महामंत्री, वरिष्ठ उपाध्यक्ष सहित कई पदाधिकारी व वकील कोर्ट रूम में घुस आए। उन लोगों ने बदसलूकी की और गालीगलौच किया। अगले दिन 8 अक्टूबर को सीनियर जज से शिकायत की तो सुनवाई नहीं हुई। भरी कोर्ट में मेरा इंसल्ट किया और शारीरिक तौर पर प्रताड़ित किया। शिकायत के बाद हाईकोर्ट ने भी संज्ञान नहीं लिया। अब इच्छामृत्यु के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

महिला जज ने सीजेआई को लेटर में क्या लिखा?

ऑनरेबल, लॉर्ड जस्टिस

मैं इस पत्र को बेहद दुख और पीड़ा के साथ लिख रही हूं। इसे लिखने का कोई और मकसद नहीं है। मैं सिर्फ अपने गार्जियन (चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया) से अपनी कहानी बयां करके अपनी इच्छा मृत्यु के लिए प्रार्थना करना चाहती हूं। मैंने न्यायिक सेवा बेहद उत्साह और विश्वास के साथ जॉइन की थी। मेरा लक्ष्य लोगों को न्याय देना था। मुझे नहीं पता था कि मैं जिस भी दरवाजे न्याय मांगने जाऊंगी। वहां मुझसे भिखारियों जैसा व्यवहार किया जाएगा।

नौकरी के दौरान मुझे भरी अदालत में अपमानित किया गया। गालियां दी गईं। मुझे शारीरिक शोषण का शिकार होना पड़ा। मेरे साथ ऐसा व्यवहार किया गया, जैसे मैं कोई कूड़ा हूं। मुझे खुद के कीड़े जैसे होने का एहसास कराया गया।

मैं दूसरों को न्याय दिलाती हूं, मगर मेरे बारे में कौन सोचता है? मैं देश में काम करने वाली हर एक महिला से कहना चाहती हूं कि शारीरिक शोषण के साथ वर्कप्लेस पर जीना सीख लें, ये जीवन का कड़वा सच है। POSH एक्ट भी एक दिखावा है। इस पर कोई सुनवाई नहीं होती है। न कोई पेन लेता है। अगर आप शिकायत करेंगी तो आपको टॉर्चर किया जाएगा।

जब मैं यह कह रही हूं कि कोई सुन नहीं रहा है तो इस लिस्ट में सुप्रीम कोर्ट का नाम भी है। इस पूरे मामले की शिकायत करने और न्याय मांगने के बाद मुझे सुनवाई के लिए महज 8 सेकेंड मिले। ऐसी स्थिति में मैं सुसाइड का सोचने लगी। अगर आप लकी हैं ( मेरी तरह नहीं) तो पहली बार में ही सुसाइड कर लेती। अगर कोई भी महिला सिस्टम के खिलाफ लड़ने के बारे में सोचती है तो मैं बता दूं कि मैं ऐसा नहीं कर सकी जबकि मैं एक जज हूं। न्याय की बात तो छोड़ ही दीजिए, मैं अपने खिलाफ हुए शोषण की निष्पक्ष जांच तक नहीं करवा पाई।

मैं महिलाओं से ये कहना चाहती हूं कि वो एक खिलौना हैं। मेरे सीनियर जज और उनके सहयोगी ने मेरा शारीरिक शोषण किया। मुझे रात में मिलने बुलाया। मैंने इसकी शिकायत 2020 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में की लेकिन आज तक कोई एक्शन नहीं हुआ। मुझसे किसी ने ये पूछने तक कि जहमत नहीं उठाई कि मेरे साथ क्या हुआ है? जुलाई 2023 में मैंने हाईकोर्ट की इंटरनल कंप्लेंट कमेटी से शिकायत की। मैंने 6 महीने में हजारों मेल किए तब जाकर आरोपियों के खिलाफ जांच शुरू हुई। जो जांच शुरू हुई, मुझे उसके बारे में बताने में शर्म आती है क्योंकि जिनके खिलाफ जांच होनी थी, उनके ही अधीनस्थ को इस मामले में गवाह बनाया गया। ये मेरी समझ से परे है कि गवाह आखिर अपने बॉस के खिलाफ कैसे बयान देगा?

आखिर कमेटी ऐसा कैसे सोच रही है? किसी भी जांच का ये बेसिक नियम है कि उसके गवाह की रिपोर्टिंग आरोपी के पास नहीं होनी चाहिए। जांच के दौरान जज (जिन पर आरोप हैं) का ट्रांसफर किया जाना चाहिए था ताकि वो गवाह और सबूतों को प्रभावित न कर सकें। मुझे लगता है कि मेरी जिंदगी, मेरा आत्मसम्मान और मेरी आत्मा मर चुकी है। मैं लोगों को कैसे न्याय दे पाऊंगी, जबकि मैं खुद निराश हो चुकी हूं। मेरे अंदर अब और जीने की इच्छा नहीं बची है। मैं डेढ़ साल से जिंदा लाश की तरह हूं। अब मेरी जिंदगी का कोई मकसद नहीं बचा है। कृपया मुझे अपनी जिंदगी सम्मानजनक तरीके से खत्म करने की अनुमति दें। मेरे भाग्य के लिए कोई भी जिम्मेदार नहीं है।

धन्यवाद

(महिला जज के लेटर का हिंदी अनुवाद)

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